व्यायाम और " जिम " में भेद समझें।।
आजकल तो प्रायः सभी व्यायाम के चक्रव्युह में फँसे हुए हैं । किसी को भी पुछो व्यायाम करते हों तो उत्तर मिलेगा कि हाँ में जिम जाता हूँ या जातीं हूँ । किन्तु आयुर्वेद के दृष्टिकोण से व्यायाम का अर्थ जिम जाना नहीं है । आइए जानते हैं कि व्यायाम कैसे करें ।
शरीरं चेष्टा या चेष्टा स्थेर्यार्था बलवर्द्धिनी।
देहव्यायाम संख्याता मात्रया तां समाचरेत्।।
क्रमवृद्ध्या सदारोग्य शरीरं बल पुष्टिदः
आरोग्य बल पुष्टिघ्नः स एवाक्रम सेवितः।
स्वेदागमः श्वास वृद्धिर्गात्रणां चाति लाघवम् ।
हृदयाद्युपरोधश्च इति व्यायाम लक्षणम्।।
अर्थात जो शारीरिक चेष्टाओं के द्वारा मन को आनन्द आता हों, मन को स्थिर कर शरीर में बल का संचार करती हों उसे व्यायाम कहते हैं ।
व्यायाम का साधारण नियम है कि थकने से पहले ही व्यायाम बंद कर देना चाहिये, क्योंकि यही व्यायाम की मात्रा हैं । जब साँस फुलने लगे, जोर जोर से साँस चलने लगे, शरीर से पसीना छुटने लगे, मुँह सूखने लगे तब व्यायाम को बंद कर देना चाहिये, अन्यथा लाभ के बदले क्षति ही होगी ।
अब बात करते हैं कि व्यायाम से क्या लाभ तथा अधिक व्यायाम करने से क्या हानि होगी ।
उचित मात्रा में व्यायाम करने पर शरीर हल्का रहता है, काम करने की इच्छा होती है, मन स्थिर रहता है, दुःख को सहन करने की शक्ति मिलती हैं, वात पित्त तथा कफ आदि का दोष दूर होता है एवं जठर में स्थित अग्नि वृद्धि होती है, शरीर सदा आरोग्य रहता है तथा शरीर में बल का संचार होता है ।
अब हानि की बात करते हैं कि व्यायाम अधिक मात्रा में करने पर शरीर में पित्त की वृद्धि होती है, रक्त की कमी हो जाती है, आरोग्य से शरीर कोसों दूर रहता है, धीरे धीरे दुर्बल होने लगता है, हृदय सम्बन्धी रोग होते हैं, मन में ग्लानि भाव रहता है, धातुऔं का क्षय हो जाता है, बार बार प्यास लगता है, खाने की इच्छा नहीं होती, उल्टी होती हैं, चक्कर आने लगता है, खाँसी तथा ज्वर आदि रोग होने की संभावना है ।
धन्यवाद
✍सत्यवान नायक ।