लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को भी संविधान में शामिल किया जाये :✍ "गौसेवक" खोजी बाबा



लोकतंत्र के चार ये स्तम्भ हैं ।


१- न्यायपालिका

२- कार्य पालिका

३- विधायिका

४ - पत्रकार जगत


    अब प्रश्न ये है कि चौथा स्तम्भ ( पत्रकार जगत ) संविधान में अंकित नहीं है। सिर्फ भाषा प्रयोग में हैं। और जबकि  कई बार पीएम साहब के भाषणों में उक्त सम्बोधन सुनने को  मिलता रहता है।


       कोरोना काल जब से लगा है, और अभी तक चला आ रहा है। जिसमें तमाम पत्रकारो़ को कोविड के चलते अपनी जान गवानी पडीं। परन्तु सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। मैंने आगरा (उ. प्र.) में ए.सी.एम साहब को कलेक्ट्रेट पर ज्ञापन भी सौंपा था। लेकिन उस पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई ।


     अगर सरकार  संविधान में पत्रकारिता को शामिल करती है, तो वहीं सुविधाएं सरकार को पत्रकारों को भी देनी पडेंगी,जो तीनों स्तम्भों को दी जाती है। 


       अगर पत्रकार ना हो तो खबरों का आदान प्रदान देश की जनता तक कैसे पंहुचेगा कि कब , कहाँ और किसने क्या किया और कहाँ अथवा अब आगे क्या होने वाला है।


हमारा तो मानना ये है कि         संविधान में इस वजह से भी पत्रकारिता को नहीं जोडा जा रहा है कि उक्त तीन स्तम्भों को जो सुख सुविधाएं मिल रही हैं। वे सभी  सुविधाएं पत्रकारों को भी देनी पड जायेंगी।


    मेरा महामहिम राष्ट्रपति (भारत सरकार) एवं भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री मोदी जी से अनुरोध है कि संविधान में इस चौथे स्तंभ को भी शामिल किया जाए। 

तब हम, राम राज की परिकल्पना को अतिशीघ्र साकार रूप दे सकेंगे।

      ✍  - "🐂गौसेवक" पं. मदन मोहन रावत

                                        "खोजी बाबा"