---अमर्यादित ब्राह्मण से मर्यादित चांडाल श्रेयस्कर
---सनातन धर्म शूद्र को अछूत नहीं मानता
---महिलायें साधु-संतों के प्रति श्रद्धा रखें समीप्य नहीं
---परिजनों और परिवार के प्रति कर्तव्यनिष्ठ रहें महिलायें
✍️हिन्दुस्तान वार्ता,पटना।रवीन्द्र दुबे।
सामान्य परिस्थिति में पारंपरिक गुरु को बदला जाता है, पुरोहित को नहीं। पुरोहित पीढ़ी-दर-पीढ़ी के लिए होते है। लेकिन गुरु और पुरोहित यदि अपनी मर्यादा से पतित हो जाये तो उन्हें त्याग कर देना चाहिए। ब्रह्मण एक जाति नहीं यह संस्कृति, संस्कार और सदाचार का प्रेरक है। मर्यादा विहीन ब्राह्मण मर्यादा के साथ जीने वाले चांडाल से भी खराब है। अन्याय और अनाचार से रक्षा करने वाला हो क्षत्रिय होता है। उसका जीवन मर्यादा की रक्षा के लिये समर्पित होना चाहिए। जीव हिंसा करके जीने वाला क्षत्रिय नहीं कहा जाएगा। सारे समाज को एक सूत्र में कर रखने वाला शूद्र कहलाता है। शूद्र अछूत नहीं हैं। उन्हें अछूत कहने वाला शास्त्र और सनातन धर्म से अपरिचित है। उपरोक्त बातें श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी ने ज्ञान यज्ञ में प्रवचन करते हुए कही। स्वामी जी ने कहा कि जाति का मानक कर्म नहीं होता। मनुष्य सुबह से देर रात तक अपने दिनचर्या में सफाई कपड़ा धोने दाढ़ी बनाने जूता साफ करने और भोजन बनाने आदि का काम करता है। अगर कार्य के अनुसार जाति का निर्धारण हो व्यक्ति की जाति 24 घंटे में कई बार बदलेगी। उन्होंने कहा कि कोई मनुष्य अछूत नहीं होता है। अछूत बिजली है, जिसे छूने से जीव की मौत हो जाती है। स्वामी जी ने कहा कि श्री रामानुजाचार्य जी के गुरु खास लोगों को गुप्त रूप से मंत्र देते थे लेकिन एक दिन रामानुजाचार्य जी ने मानव जाति के कल्याणार्थ सभा बुलाकर सार्वजनिक रूप से गुरु-मंत्र की घोषणा कर दी। उनके स्थान से निकलनी वाली भगवान की पालकी को शुद्र ही उठाते हैं। श्री जीयर स्वामी ने कहा कि मर्यादा के विरुद्ध कार्य करने पर शनि जैसे प्रभावशाली ग्रह को भी दंढ भोगना पड़ता है। शनि देव विवाहोपरांत जब वह रात्रि को पत्नी के पास पहुंचे तो वे पूरी रात ईश्वर में ध्यानस्त रहे। सुबह उनकी पत्नी ने पति व्यवहार के अभाव से क्रुद्ध होकर उन्हें श्राप दे दिया कि आप की दृष्टि जिसपर पड़ेगी, उसका अहित हो जाएगा। उसके बाद से शनि सिर झुकाए रहते हैं। स्वामी जी ने कहा कि स्त्रियों को मर्यादा के साथ अपने पति व परिजन की सेवा बिना भेदभाव से करनी चाहिए न कि आश्रम में जाकर गुरु सेवा के नाम पर निवास करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि महिलाएं साधु संत में विश्वास रखें और दान आदि करें लेकिन उनसे नजदीकी संबंध नहीं बनाएं। संत को दूर से प्रणाम करें। उनसे समीप्य का प्रयास कभी न करें।
स्त्रियों की साधू-संतों से अति निकटता धर्म संगत नहीं, क्योंकि वहां भटकाव की संभावना बनी रहती है।