प्रेम शर्मा,लखनऊ।
जी हाॅ बाॅत जो भी रही हो पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, पुडुचेरी, केरल और असम के विधानसभा के साथ उत्तर प्रदेश के भारी भरकम पंचायत चुनाव निपट गए। सभी जगह सरकार बनने की स्थिति स्पष्ट हो चुकी है। इस बीच देश कितना खोया कितना पाया इस बाॅत पर चर्चा का कोई फायदा नही। किसने क्या गल्ती की इस पर चर्चा करना भी व्यर्थ है। लेकिन अब केन्द्र और राज्य सरकारों को कोरोना से निपटने के लिए दूश्मन की तरह उस पर चारो तरफ से वार करना होगा। इसके लिए उसकी सख्त पाबंदी से लेकर संसाधनों की प्रतिपूर्ति एक अग्नि परीक्षा से कम नही है।पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, पुडुचेरी, केरल और असम की हार और जीत पर मंथन और डिबेट को छोडकर अब देश के चारो स्तम्भो को अब कोरोना से वह जंग शुरू करनी है जिसका परिणाम सिर्फ सिर्फ कोरोना का खत्मा होना चाहिए। विपक्ष हो, मीडिया हो, सरकार हो या फिर आम जनता इस बाॅत को समझ ले कि कोरोना ने हमारा बहुत कुछ छीन लिया है। हम विकास के लिए दस वर्ष पीछे चले गए है। आम आदमी कर्जदार हो चुका है।
यानि आगे क्या खोएगें इसकी कल्पना करने से सिहरन पैदा हो रही है। शिक्षा जगत के लिए कोरोना काल सिर्फ दो सत्र का नही बल्कि आगामी पाॅच तक बिगड़ चुका है। कई ऐसे क्षेत्र है जिनकी चर्चा करने से केवल उलझन ही बढ़ेगी। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के जल्द चरम पर पहुंचने के अनुमान पर एक सीमा तक ही यकीन किया जाना चाहिए। यह भी हो सकता है कि लहर आ कर वापस लौट रही हो धीरे धीरे सब सामान्य हो जाएगा। इसके बावजूद इस बाॅत विश्वास करना हो कि पहले यह माना जा रहा था कि अप्रैल के अंत में संक्रमण चरम पर होगा। आज की पहली जरूरत संक्रमण को रोकना और कोरोना मरीजों को उपचार उपलब्ध कराना है।
संक्रमण की चपेट में आने वालों की संख्या जिस तरह प्रतिदिन पाॅच लाख के आंकड़े को पार कर गई, उससे न केवल यह पता चलता है कि संक्रमण बहुत तेज है, बल्कि यह भी कि तमाम उपायों के बाद भी लोग संक्रमित होने से बच नहीं पा रहे हैं। बेहतर होगा कि संक्रमण को थामने के लिए सख्ती और बढ़ाई जाए। राज्य सरकारों और उनके प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोग बिना मास्क घर से न निकलें और शारीरिक दूरी का हर हाल में पालन करें। भीड़-भाड़ वाले स्थानों में तो शारीरिक दूरी का पालन अनिवार्य रूप से होना चाहिए। इसी के साथ इसकी भी चिंता करनी होगी कि आवश्यक सतर्कता बरतते हुए उद्योग-धंधे भी चलते रहें। वैसे तो लाॅकडाउन अंतिम उपाय होना चाहिए, लेकिन जहां इसका सहारा लेना पड़े, वहां यह भी देखा जाए कि आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियां थमने न पाएं। ऐसा संभव है, यदि आम लोग सहयोग दें और अपनी सतर्कता का स्तर बढ़ाएं। जब जीवन-मरण का प्रश्न खड़ा हो जाए तो वह सब कुछ करना चाहिए, जिसकी जरूरत हो। निश्चित तौर से अब देश की जनता भी इस पीढ़ा से कहर उठी है जो भी साप्ताहिक बंदी चल रही है उसमें जनता वास्तव में खुद भागीदारी निभा रही है।
इसके बावजूद यह बुनियादी बात समझी जानी चाहिए कि संक्रमण की तेज लहर को थामने का उपाय यही है कि कम से कम लोग उसकी चपेट में आएं। जो परिस्थतियाॅ उत्पन्न हुई है ऐसे में शासन और समाज को संक्रमण की दूसरी लहर से जूझने में पूरी शक्ति खपाने के साथ तीसरी लहर की भी चिंता करनी होगी और इस क्रम में सबसे अधिक ध्यान कम समय में ज्यादा से ज्यादा लोगों के टीकाकरण पर देना होगा। यह ठीक नहीं कि 18 साल से ऊपर वालों के टीकाकरण का अभियान सही ढंग से शुरू नहीं हो पाया, क्योंकि टीकों की कमी आड़े आ गई। कम से कम अब तो यह सुनिश्चित किया जाए कि टीकों का उत्पादन तेजी से बढ़े और उनकी आर्पूित की व्यवस्था भी दुरुस्त हो।
टीकों का उत्पादन बढ़ाने के साथ उनके आयात की हर संभावना को टटोलने में भी देर नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर से तभी बचा जा सकता है, जब अगले दो-ढाई माह में 50-60 करोड़ लोगों को टीके लग जाएं। लक्ष्य कठिन है, लेकिन असंभव नहीं। इस कठिन लक्ष्य की पूर्ति के लिए मजबूत इरादों के साथ सुनियोजित रणनीति भी जरूरी है।इसके साथ ही हमें यह भी याद रखना होगा कि कोरोना एक वैश्विक महामारी है।कम समय में अधिक से अधिक लोगों का टीकाकरण करके ही मौजूदा संकट से उबरने के साथ ही संक्रमण की तीसरी लहर की आशंका को भी कम किया जा सकता है। जब सरकार और समाज एकजुट होंगे तभी संकट से आसानी से पार पाया जा सकेगा। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से जूझ रहे भारत की ओर अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब समेत करीब 40 देशों ने मदद का जो हाथ बढ़ाया, वह संकट की गंभीरता को बयान करने के साथ ही विश्व समुदाय की चिंता को भी प्रकट कर रहा है। इस मदद से यह भी रेखांकित होता है कि विश्व समुदाय इसी कोरोना काल में भारत की उस सहायता को भूला नहीं है, जो उसने दुनिया के तमाम देशों को दी थी-पहले कुछ दवाओं की आपूर्ति करके और फिर वैक्सीन भेजकर भारत ने अपना फर्ज निभाया था। भारत ने 90 से अधिक देशों को वैक्सीन भेजी। इनमें से कुछ देशों को तो मुफ्त अथवा रियायती दरों पर दी। अब जबकी देश को हर तरह की मदद की दरकार है।
हमें कोरोना से जंग जीतनी है तो इसके लिए टीकाकरण, सैनेटाराइजेश, के साथ अगर जरूरत पड़े तो एक सप्ताह का पूर्ण लाॅकडाउन और वे उपाय जिससे कोरोना की जंग जीत सके उन पर अमल करने का यही वक्त है। सरकार को अब इन बाॅतों पर विचार करना ही होगा कि उसे किस तरह से यह जंग जीतनी है। जब तक दुनिया में कहीं भी इससे लोग पीड़ित रहेंगे, तब तक हम इसके खिलाफ जंग नहीं जीत पाएंगे। इसलिए हमें इससे मिलकर लड़ना होगा। तभी हम सदी में एक बार आने वाली ऐसी आपदा को हरा पाएंगे।