कोरोना, ब्लैक फंगस की दोहरी चुनौती के बीच सुस्त टीकाकरण

 


प्रेम शर्मा,लखनऊ।

देश में कोरोना की दूसरी लहर अप्रैल माह में कहर के रूप में दिखी, दूसरी लहर अभी खत्म नही हुई और इस बीच ब्लैक फंगस ने देश को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। अभी तक ब्लैक फंगस के नौ हजार के आंकड़े को पार कर गया है। ऐसे में इन दोहरी चुनौती के बीच तीसरी लहर की आशंका और देश में जरूरत के सापेक्ष सुस्त क्ैक्सीन निर्माण और वैक्सीकरण तीसरी लहर का खतरा काफी घातक होने की आशंका पैदा कर रहा है। केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि ‘ब्लैक फंगस’ को वे महामारी कानून के तहत अधिसूचित करें और एक-एक मामले की रिपोर्ट की जाए। केंद्र ने आम जनता के लिए कोविड संबंधी जो दिशा-निर्देश जारी किए हैं, उनमें कहा गया है कि कोविड संक्रमण हवा में दस मीटर तक फैल सकता है। इससे बचने के लिए डबल मास्क लगाना चाहिए और बंद जगहों पर ताजा हवा के इंतजाम किए जाने चाहिए। धीरे-धीरे वैज्ञानिक इस बात को मानने लगे हैं कि कोविड के फैलने को लेकर जो समझ पहले थी, उसमें सुधार की जरूरत है। शुरुआत में माना गया था कि कोरोना वायरस हवा में दूर तक नहीं फैलता और मरीज के छींकने या खांसने से जो छोटी-छोटी बूंदें गिरती हैं, उन्हीं से यह बीमारी फैलती है। यह भी माना जा रहा था कि ऐसी बूंदें किसी सतह पर पड़ी रहें, तो वे संक्रमण के फैलने का जरिया बन सकती हैं। इसीलिए शुरू में एक मीटर की दूरी बरतने का निर्देश जारी किया गया था और सतहों को न छूने और उनको कीटाणुरहित करने पर जोर था। कोरोना संक्रमण ने जिस प्रकार देश के  चिकित्सा तन्त्र के साथ ही इसकी संघीय व्यवस्था को उधेड़ कर रख दिया है उसकी कोई दूसरी मिसाल स्वतन्त्र भारत के इतिहास में नहीं मिलती है। यह सच है कि कोरोना की पहली लहर के चलते सभी गफलत में रहे और हमने कोरोना के बदलते स्वरूपों की संभावनाओं को गंभीरता से नहीं लिया मगर अब हम जागे हुए लगते हैं और पूरे देश के 18 वर्ष से ऊपर के लगभग 90 करोड़ लोगों से अधिक को वैक्सीन लगाने की जुगत में लग गये हैं। 

इस बारे में केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त नीति आयोग के सदस्य डा. वी.के. पाल ने विश्वास दिलाया है कि सरकार विश्व की तीन प्रमुख कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों माडरेना, जानसन एंड जानसन व फाइजर के सम्पर्क में पिछले कुछ समय से है और उनसे भारत को वैक्सीन सप्लाई करने के बारे में बातचीत कर रही है तथा कह रही है। डा. पाल के मुताबिक दिसम्बर महीने तक भारत के पास दो सौ करोड़ से अधिक वैक्सीन होंगी। फिलहाल यह विवरण बहुत लुभावना लग रहा है  मगर नीति आयोग का ही यह कर्त्तव्य  बनता था कि वह कोरोना की दूसरी लहर से निपटने के लिए पहले से ही सरकार को सजग करता और इस प्रकार करता कि देश के किसी भी कोने में वैक्सीन की कमी होने के हालात ही पैदा न होते। फिलहाल कोरोना संक्रमण को रोकने का एकमात्र उपाय वैक्सीन ही है तो समय रहते इसकी उपलब्धता बढ़ाने का सुझाव इसने सरकार को क्यों नहीं दिया? हकीकत यह है कि पिछले वर्ष के अगस्त महीने से ही अमेरिका व ब्रिटेन जैसे देशों ने वैक्सीन कम्पनियों को ‘आर्डर’ देने शुरू कर दिये थे। पिछले वर्ष ही हमने लाकडाऊन और इस वर्ष कोरोना कफर्यू लगा कर किसी तरह कोरोना महामारी से निजात पाने के प्रयास किये। 

बहरहाल टीकाकरण की सुस्त होती रफ्तार ठीक नही। इसके आसार पहले से ही नजर आ रहे थे कि जितनी संख्या में प्रतिदिन टीके लगने चाहिए, उतने नहीं लग पाएंगे, क्योंकि पर्याप्त संख्या में टीके उपलब्ध ही नहीं हैं। 

निश्चित तौर पर इसकी एक बड़ी वजह यही रही कि समय रहते उनकी उपलब्धता सुनिश्चित नहीं की जा सकी। यदि दिसंबर और जनवरी में ही अग्रिम राशि देकर बड़ी संख्या में टीके के आर्डर दे दिए गए होते तो ऐसी स्थिति न बनती। शायद औरों की तरह टीकाकरण का काम देख रहे लोग भी यह अनुमान लगा पाने में असफल रहे कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर इतनी जल्दी और इतने भयंकर रूप में आ सकती है।जबकि उन्हें संक्रमण की दूसरी-तीसरी लहर का इंतजार करने के फेर में पड़ना ही नहीं चाहिए था, क्योंकि अन्य देश अपने टीकाकरण अभियान को गति देने में लगे हुए थे। मगर नवम्बर महीने से ही इसके नये उत्परिवर्तन (म्यूटेंट) की खबरें विभिन्न देशों से आने लगी थीं और भारत के मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र राज्यों में इसके संक्रमित लोग भी पाये गये थे। यह म्यूटेंट कितना भयानक हो सकता था इसका वैज्ञानिक विश्लेषण कराने की हमने जरूरत ही नहीं समझी और हम दूसरी लहर की चपेट में इस तरह फंस गये। याद होगा कि उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के नेताओं से लेकर बिहार के कुछ नेताओं ने वैक्सीन को ही गलत बता कर इस पर घटिया राजनीति शुरू कर दी। इस तरह की तमाम और अफवाहे सोशल मीडिया में हावी रही और इसने इस वैक्सीकरण अभियान को प्रभावित किया। 

बहरहाल सवाल यह है कि डा. पाल के मुताबिक यदि दिसम्बर महीने तक हर भारतीय को वैक्सीन लगा भी दी जाती है तो क्या भारत के नौनिहाल सुरक्षित रहेंगे ? भारत बायोटेक को दो वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए वैक्सीन बनाने की इजाजत  हाल में ही दी है और उसने इसका पहला परीक्षण कर भी लिया है तथा दो परीक्षण बाकी हैं। जबकि अमेरिका ने फाइजर कम्पनी की वैक्सीन को 12 से 15 वर्ष तक के किशोरों को लगाना भी शुरू कर दिया है। भारत में 40 करोड़ से ऊपर 18 वर्ष की कम आयु के किशोर व बच्चे हैं। इन्हें भी वैक्सीन लगाना बहुत जरूरी होगा क्योंकि बिना वैक्सीन के बच्चे स्कूलों में सुरक्षित नहीं होंगे। हम कोरोना के खिलाफ लड़ाई को किसी भी स्तर पर राजनीतिक युद्ध में नहीं बदल सकते हैं। केन्द्र सरकार ने जिस तरह कोवैक्सीन उत्पादन के लिए भारत में ही इसका फार्मूला अन्य वांछित फार्मा कम्पनियों को स्थानान्तरित करने का फैसला किया है वह समय की मांग है। यह संकट काल है जिसमें सभी को अपने राजनीतिक आग्रहों से ऊपर उठ कर सीधे जनता को इस महामारी से बचाना होगा। यह समझ लेना की कोरोना की दूसरी लहर के झंझावत से निकल कर हम सुरक्षित हो जायेंगे मृग मरीचिका ही साबित हो सकती है। अतः इस मोर्चे पर हमें बच्चों के लिए वैक्सीन खरीदने की तैयारी भी अभी से कर देनी चाहिए। यह ठीक नहीं कि विदेशी कंपनियों के जिन टीकों का उत्पादन भारत में होना है, उनके बारे में अभी भी बहुत स्पष्टता नहीं है। लगता है कि रूसी टीके स्पुतनिक को छोड़कर अन्य विदेशी टीकों के भारत में उत्पादन को लेकर अभी भी कोई पेच फंसा है। इसी तरह यह भी साफ नहीं कि भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट की टीका उत्पादन क्षमता वास्तव में कब से कितनी बढ़ने वाली है ? बेहतर हो कि इस मामले में केंद्र सरकार ही आगे आए, क्योंकि लगता नहीं कि राज्य अपने स्तर पर अंतरराष्ट्रीय बाजार से टीके खरीदने में सक्षम हो पाएंगे। यह भी सर्वथा उचित होगा कि जैसे आक्सीजन की कमी दूर करने के लिए एक समिति बनाई गई, वैसे ही टीकों की तंगी दूर करने के लिए भी कोई सक्षम समिति बने। अब तक ऐसी कोई समिति बन जाती तो संभवतः ऐसी स्थिति न बनती।