हिन्दुस्तान वार्ता।
विश्व में अनेक देशों ने चाहे कितनी ही तरक्की कर ली हो पर वास्तु कला (आर्किटेक्चर) में भारत का आज भी कोई सानी नहीं है| दुनिया में चाहे पानी पर होटल बनाया हो या बिना पिलर का पुल बनाया हो ।आठवीं शताब्दी से लेकर 12 वीं शताब्दी तक जो वास्तु कला का बेजोड़ दृश्य, भवन, मंदिर, भारत में देखने को मिलते हैं ,दुनिया उनको देखने के बाद दांतो तले उंगली दबा लेती है |
आज विश्व वास्तु दिवस 1 जून को पूरी दुनिया में वास्तु कला को सम्मान देने के लिए वह उसे बनाने वाले वास्तु कारों को प्रणाम करती है |सर्व प्रथम हम लोगों को यह समझना होगा की वास्तुकला है क्या ,?वास्तु कला विज्ञान तथा तकनीकी की एक सम्मिश्रण कला है |जिसे अंग्रेजी में आर्किटेक्चर कहते हैं| यह भवनों के निर्माण कल्पना उसकी रचना और परिवर्तनशील समय तकनीकी और रूचि के अनुसार मानव की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के सभी को तर्कसंगत एवं बुद्धि संगत निर्माण की कला है |
भारत के प्राचीन सभ्यता में जब भवनों का ,धर्मशालाओं का ,मंदिरों का ,राजमहलों का जो निर्माण हुआ था आज भी अनेक विज्ञान की ऊंचाई छूने के बाद वास्तुकला उस समय की कला को छू नहीं पाई है |
वर्ष 1921 में जब हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की खुदाई हुई तो पूरा विश्व हैरान रह गया| जमीन से निकली विशालकाय भवन भारत की समृद्धि व्यवस्था को दुनिया तक पहुंचाने के लिए और लोहा मनवाने के लिए काफी थी ।पूरे विश्व ने माना की वास्तुकला भारत की ही देन है| आज प्रत्येक भारतीय दक्षिण भारत और उत्तरी भारत के चाहें मंदिर के निर्माण हो या अन्य किसी प्रकार के भवनों के निर्माण हो या नालंदा विश्वविद्यालय या विश्व शांति स्तूप हो इसके सुंदर तथा इसकी कला आज भी विश्व के लोगों को अपनी ओर बरबस खींचता है |यही कारण रहा है नालंदा विश्वविद्यालय को विश्व विरासत का दर्जा मिला है |इसके अलावा अनेक बिल्डिंग भी विरासत हैं|
समय की मांग के अनुसार वास्तु कला के सोच में और रचना में काफी अंतर आया है |पहले जब समय में ना जमीन का अभाव था पशु पक्षी से ख़तरा और प्राकृतिक आपदाओं से बचाने हेतु रचना की जाती थी आज जमीन का अभाव है पशु पक्षियों से मानव द्वारा अनेक रूपों से संरक्षित किया जा सकता है |आज भी प्राकृतिक आपदाएं पहले जैसी हैं |समय में आर्किटेक्चर ( वास्तुकार )की सोच बदल गई है| अब छोटे से जमीन में सारी चीजों को समाहित करना चाहता है| अतः पुरानी वास्तु कला या भवन निर्माण की कला पुस्तकों तक ही सीमित रह गई है लेकिन हाल में ही राजगीर में बनाया गया कन्वेंशन हॉल एक बार फिर हमारी प्राचीन वास्तु कला को पुनर्जीवित करता दिखाई दे रहा है| इस विशालकाय हॉल में हर एक बिंदु पर ध्यान रखा गया है| चाहे भवन के अंदर आने वाली सूर्य की किरणे हो या सीढ़ी तथा दरवाजे का रुख हो हर तरफ से नायाब रचना है|
भारत में आज भी आपको अनेक भवन हर शहर में तंग गलियों में गांव में तहसीलों में देखने को मिल जाएंगे |जब आप उनका वास्तुकार देख के ना केवल अचंभित रहेंगे बल्कि उससे पूर्ण रूप से पर्यावरण और सुखद व आरामदायक भवन का एहसास करेंगे |आज विश्व वास्तुकला दिवस के शुभ अवसर पर पूर्व के सभी दिवंगत वास्तुकारो को हम लोग श्रद्धांजलि देते हैं |
आज शहर में स्मार्ट सिटी के निर्माण की कवायद शुरू हो गई है, परंतु प्राचीन समय में जब किसी शहर का निर्माण किया जाता था तो उसे चारों तरफ से इस प्रकार निर्माण कराया जाता था ताकि हर संभव वाहन मौसम का निवासियों को पूर्ण लाभ मिले| तालाब का निर्माण उसी श्रृंखला की एक कड़ी है जिसे आज हम अपने छोटे से प्रलोभन की वजह से पटाते जा रहे हैं |आज स्मार्ट सिटी का निर्माण आज की आवश्यकता है परंतु मेरा सभी स्मार्ट सिटी में कार्यरत के आर्किटेक्चर( वास्तु विद ) से निवेदन है क्या वह स्मार्ट सिटी निर्माण के वक्त एक नया वास्तु कला का प्रदर्शन कर पाएंगे या केवल भ्रष्टाचार की आड़ में खाली कंक्रीटो सीमेंट की बिल्डिंग जो बाहर से अत्यंत मोहक लगे बिना मजबूती के ।आपने खुद महसूस किया होगा कि जिस घर में या ऑफिस में आप काम करते हैं अगर उसकी बनावट और उसका वास्तु कला का पूर्ण रुप से ध्यान रखा जाता है तो आपको वहां रहने में और काम करने में बहुत ही आनंद आता है |उसके पीछे कारण यह है कि वह वास्तु विद द्वारा अपने कला से इस तरीके से निर्माण करता है ताकि उस में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव हर समय बना रहता है| अंत में पुनः सभी वास्तुकारों व वास्तु कला को शुभकामनाएँ|
राजीव गुप्ता जनस्नेही कलम से
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