हर रूप में जानलेवा पॉलीथिन: रजनीश दुबे





हिन्दुस्तान वार्ता, लखनऊ।

पॉलीथिन रोजमर्रा की जरूरत है। इससे होने वाले नुकसान से हर कोई वाकिफ है, लेकिन इसका कोई विकल्प नहीं है। री-साइकिलिंग आदि के मद्देनजर इसके उपयोग के लिए मानक निर्धारित किया गया, लेकिन उसकी भी अनदेखी हो रहती है। पॉलीथिन प्रकृति-पर्यावरण और मानव व जीवों से लेकर आधारभूत संसाधनों तक के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। हमें पॉलीथिन का इस्तेमाल कम से कम करके पर्यावरण को सुरक्षित बनाना है। केवल इस्तेमाल ही नहीं बल्कि चाय-कॉफी या पानी पीकर प्लास्टिक को इधर-उधर फेंकना भी खतरनाक है। यही नहीं सब्जी-फल खरीदारी करने के बाद उपयोग की गई पॉलीथिन को भूमि में गाड़ना भी खतरनाक है। इससे भूमि बंजर बन जाती है। यह पानी को भी दूषित करती है। इस पॉलीथिन के संपर्क में आने वाले पानी के उपयोग से खासी, दमा, आखों में जलन, चक्कर आना, मासपेशियों का शिथिल होना, दिल की बीमारी आदि होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।अपर मुख्य सचिव रजनीश दुबे ने कहा कि पॉलीथिन पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक है। इसको रोकने की जरूरत है। पॉलिथीन और प्लास्टिक लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं। शहर का ड्रेनेज सिस्टम अक्सर पॉलिथीन से भरा मिलता है। नालियां और नाले जाम हो जाते हैं। 40 माइक्रॉन से कम पतली पॉलिथीन पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक होती है। पॉलिथीन की जगह हमें कपड़े या जूट के थैलों का प्रयोग करना चाहिए। पॉलिथीन प्रतिबंध को सफल बनाने के लिए दुकानों, ठेलों व अन्य से लगातार पॉलीथिन जब्त की जा रही। दुकानदारों के साथ-साथ आम जनता से भी पॉलीथिन का प्रयोग नहीं करने की अपील भी की जा रही है। प्रदेश में 50 माइक्रॉन से कम की पॉलिथीन को प्रतिबंधित लगा हुआ है। इसकी बिक्री व इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगी हुई है। बिक्री की निगरानी के लिए नगर निगम के अधिकारियों, नगर पंचायत एवं नगर पालिकाओं के अध्यक्षों को जिम्मेदारी दी गई है और निर्देश दिए गए हैं कि उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी।


विशेषज्ञों के मुताबिक पॉलीथिन को सड़ने-गलने में एक हजार वर्ष से अधिक समय लग जाता है। यह भूमि की उर्वरा शक्ति को खत्म कर देती है। इससे पेड़-पौधों को उनकी जरूरत का पोषक तत्व नहीं मिल पाता है। पॉलीथिन में पैक कर कूड़े को फेंकना भी जानवरों के लिए काफी खतरनाक साबित हो रहा है। जिस पॉलीथिन में हम अपने कूड़े को रखकर बाहर फेंकते हैं, कई बार सड़क पर विचरण कर रहीं गाएं उन्हे खा जाती हैं। यह उसकी मौत का सबसे बड़ा कारण बनती है।पॉलीथिन के बदले कागज या कपड़े के बने कैरी बैग आसानी से उपयोग किए जा सकते हैं। यह किफायती होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिए काफी लाभदायक है। अच्छी बात यह है कि हम खरीदारी के समय अपना झोला देकर भी दुकान से छोटी-छोटी चीजों को घर ला सकते है। इससे पर्यावरण की सुरक्षा होगी।अपर मुख्य सचिव श्री रजनीश दुबे ने कहा कि पॉलीथिन पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक है। इसको रोकने की जरूरत है। पॉलिथीन और प्लास्टिक लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं। शहर का ड्रेनेज सिस्टम अक्सर पॉलिथीन से भरा मिलता है। नालियां और नाले जाम हो जाते हैं। 40 माइक्रॉन से कम पतली पॉलिथीन पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक होती है। पॉलिथीन की जगह हमें कपड़े या जूट के थैलों का प्रयोग करना चाहिए। पॉलिथीन प्रतिबंध को सफल बनाने के लिए दुकानों, ठेलों व अन्य से लगातार पॉलीथिन जब्त की जा रही। दुकानदारों के साथ-साथ आम जनता से भी पॉलीथिन का प्रयोग नहीं करने की अपील भी की जा रही है। प्रदेश में 50 माइक्रॉन से कम की पॉलिथीन को प्रतिबंधित लगा हुआ है। इसकी बिक्री व इस्तेमाल पर पूरी तरह रोक लगी हुई है। बिक्री की निगरानी के लिए नगर निगम के अधिकारियों, नगर पंचायत एवं नगर पालिकाओं के अध्यक्षों को जिम्मेदारी दी गई है और निर्देश दिए गए हैं कि उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी।


कैंसर की संभावना 80 फीसद अधिक 

विशेषज्ञों के मुताबिक पॉलीथिन हर रूप से जानलेवा है। यह बिना जलाए भी खतरनाक गैस छोड़ती है। पॉलीथिन को यदि नहीं भी जलाएं तो यह क्लोराइड, बेंजीन, विनायल और इथेनॉल ऑक्साइड का उत्सर्जन कर हवा में विष घोलती है। इसी वजह से पॉलीथिन फैक्ट्री में कार्य करने वालों में सामान्य लोगों की तुलना में कैंसर का खतरा 70-80 फीसद अधिक होता है। विशेषज्ञों की मानें तो पॉलीथिन से बनने वाली गैस काफी घातक होती है। प्लास्टिक की बोतल, कप आदि से लगातार चाय या पानी पीने से भी कैंसर की संभावना काफी बढ़ जाती है।