माननीय मुख्यमंत्री, औद्योगिक विकास मंत्री एवं एमएसएमई मंत्री को लिखे गए पत्र।
पूर्व में भी लीज होल्ड से फ्री होल्ड कराने की की गई है मांग।
औद्योगिक भूखंड फ्री होल्ड होने पर नए नए उद्योगों के लिए 30% भूमि तुरंत होगी उपलब्ध।
नए औद्योगिकीकरण को मिलेगा बढ़ावा।
नवीन रोजगार सृजन के बढ़ेंगे अबसर।
फ्री होल्ड में भू-उपयोग के परिवर्तन की नहीं है आवश्यकता।
*इज ऑफ डूइंग बिजनेस* को मिलेगा बढ़ावा
स्वामित्व परिवर्तन या उत्पाद परिवर्तन के समय आती है जटिलताएं।
गुजरना पड़ता है एक लम्बी प्रक्रिया से।
घोषित व अघोषित खर्चों के होती है समय की बर्बादी।
अधिक समय लगने से कई बार उत्पाद बनाना प्रारम्भ करने से पूर्व ही हो जाता है अप्रचलित।
स्वामित्व परिवर्तन एवं उत्पाद परिवर्तन दोनों हैं स्वाभाविक प्रक्रियाएँ ।
हि वार्ता।आगरा
आज दिनांक 22 जुलाई 2021 को सायं 4:00 बजे चेंबर भवन में अध्यक्ष मनीष अग्रवाल की अध्यक्षता में एक बैठक आयोजित की गयी जिसमें औद्योगिक क्षेत्रों में भूखंडों को लीज होल्ड से फ्रीहोल्ड किये जाने के मुद्दों पर चर्चा की गई।
अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने बताया वर्तमान परिस्थितियों में आर्थिक विकास एवं नवीन रोजगार सृजन हेतु केवल एमएसएमई इकाइयों पर ही सभी की निगाहें टिकी हुई हैं क्योंकि हाल ही में कोरोना काल में यह सिद्ध हो चुका है कि देश की अर्थ व्यवस्था को प्रभावित करने में तथा रोजगार सृजन हेतु एमएसएमई इकाइयां की भूमिका बहुत ही अहम है। औद्योगिकीकरण में तेजी लाने के लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि एमएसएमई इकाइयों को समस्याओं से मुक्त रखा जाए। सबसे अहम् समस्या औद्योगिक क्षेत्रों में भूखंडों के लीज होल्ड की है। इस संबंध में चेंबर विगत कई वर्षों से सरकार का ध्यान आकर्षित करता चला आ रहा है। कई बार सरकार ने इस संबंध में अपना सकारात्मक रुख प्रकट किया है। किंतु किन्ही कारणों से आज तक भूखंडो को लीज होल्ड से फ्री होल्ड करने की नीति नहीं बन सकी है। अब इस विषय को सरकार के समक्ष पुरजोर उठाया जाएगा। माननीय मुख्यमंत्री महोदय, औद्योगिक विकास मंत्री - श्रीमान सतीश महाना एवं एमएसएमई राज्य मंत्री -श्रीमान चौधरी उदयभान सिंह को पत्र लिखकर यह अनुरोध किया गया है कि औद्योगिक क्षेत्रों में लीज होल्ड से फ्री होल्ड किए जाने की समस्या बहुत पुरानी है। अतः इस पर शीघ्र कार्रवाई कर नए औद्योगिकीकरण को अमलीजामा पहनाया जाए।
उद्योग एवं औद्योगिक क्षेत्र विकास प्रकोष्ठ के चेयरमैन मुकेश अग्रवाल ने बताया कि एमएसएमई स्वामी प्रति व्यक्ति कम पूंजी में अधिक रोजगार उपलब्ध कराते हैं एवं वृहद उद्योगों के सापेक्ष प्रति व्यक्ति भूमि की भी कम आवश्यकता होती है। एमएसएमई इकाइयां प्राय असंगठित क्षेत्र एवं छोटी इकाइयों के रूप में कार्यरत होती हैं। इसलिए अपनी अनिवार्य आवश्यकता और उचित मांग को भी प्राय सरकार के समक्ष प्रभावपूर्ण ढंग से रखने में असमर्थ होती हैं। इसी कारण से लंबे समय से औद्योगिक भूखंडों को फ्री होल्ड करने की मांग को विभिन्न स्तरों पर रखने के उपरांत भी सरकार का ध्यान फ्रीहल्ड की आवश्यकता, उद्यमियों को लाभ, सरकार के राजस्व में एवं नियंत्रण में संभवत कोई कमी लाए बिना रोजगार के अधिक अवसर सृजित होने की प्रबल संभावनाओं और नए औद्योगिकीकरण को बढ़ावा मिलने की स्पष्ट संभावनाओं के उपरांत भी सरकार का ध्यान आकर्षित करने में असफल रही हैं। वर्तमान में उत्तर प्रदेश की जनसंख्या के घनत्व एवं भौगोलिक विस्तार के हिसाब से औद्योगिक क्षेत्र कम है। नए औद्योगिक क्षेत्रों का विकास उद्योग की आवश्यकता को देखते हुए पर्याप्त नहीं हो पा रहा है। नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने के लिए सर्किल रेट से 4 गुना मूल्य पर भूमि अधिग्रहण की नीति के कारण नए औद्योगिक भूमि का विकास बहुत महंगा है। इसके बावजूद स्थानीय स्तर पर असामाजिक तत्वों द्वारा भूमि अर्जन पर अड़चनें उत्पन्न की जाती हैं। इस कारण नए औद्योगिक क्षेत्रों को बनने में पर्याप्त लंबा समय लग जाता है जो कि प्राय 10 वर्ष से अधिक रहता है। पूर्व के औद्योगिक क्षेत्र इस बात की पुष्टि के लिए साक्ष्य हैं।
चैम्बर अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने बताया कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश की जनसंख्या के घनत्व एवं भौगोलिक विस्तार के हिसाब से औद्योगिक क्षेत्र कम है। नए औद्योगिक क्षेत्रों का विकास उद्योग की आवश्यकता को देखते हुए पर्याप्त नहीं हो पा रहा है। नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने के लिए सर्किल रेट से 4 गुना मूल्य पर भूमि अधिग्रहण की नीति के कारण नए औद्योगिक भूमि का विकास बहुत महंगा है। इसके बावजूद स्थानीय स्तर पर असामाजिक तत्वों द्वारा भूमि अर्जन पर अड़चनें उत्पन्न की जाती हैं। इस कारण नए औद्योगिक क्षेत्रों को बनने में पर्याप्त लंबा समय लग जाता है जो कि प्राय 10 वर्ष से अधिक रहता है। पूर्व के औद्योगिक क्षेत्र इस बात की पुष्टि के लिए साक्ष्य हैं। यदि औद्योगिक भूमि को फ्री होल्ड की नीति सरकार द्वारा बनाई जाती है तो तुरंत ही कुल औद्योगिक क्षेत्रों की भूमि की लगभग 30% भूमि का क्षेत्र नए उद्योग लगाने के लिए उपलब्ध होगा क्योंकि जिन उद्यमियों के पास औद्योगिक भूखंड हैं वे उत्पाद की नई तकनीकी के कारण कम जगह में पूर्व से अच्छा उत्पाद, अधिक संख्या में बनाने में सक्षम होने के कारण बची हुई भूमि को नया उद्यम लगाने के लिए स्वयं अथवा नए उद्यमी के साथ संयुक्त उपक्रम में अथवा नए उद्यमियों को किराए पर देकर अथवा उस अतिरिक्त भूमि की विक्री कर नए उद्यम लगाने के लिए दे सकती हैं। जिससे कि सरकार द्वारा नए उद्योगों को बढ़ावा देने की नीति के अंतर्गत तुरंत भूमि उपलब्ध हो जाएगी एवं उद्यमियों को भी लाभ होगा।
चेयरमैन मुकेश अग्रवाल ने कहा कि उद्यमियों को लीज पर आवंटन के समय आवंटी से लिए गए मूल्य जो आवंटी से लिया गया है अधिकांश स्थितियों में उस औद्योगिक क्षेत्र के विकास में आई हुई लागत के आधार पर लिया गया है और समय-समय पर भूमि उपलब्ध होने पर अथवा भूमि उपलब्ध न होने पर भी महंगाई दर के आधार पर समय-समय पर बढ़ाया गया है अर्थात सरकार ने लगभग लागत मूल्य पर और बाद में बढ़े हुए मूल्य पर ही यह भूमि लीज पर आवंटित की है। इस भूमि का उद्यमी द्वारा लगभग पूरी लागत मूल्य देने के बाद भी इस भूमि पर केवल घोषित उद्योग पूर्व स्वामित्व में ही चलाने का अधिकार है। यदि परिवार के विस्तार के कारण (जो स्वाभाविक प्रक्रिया है) स्वामित्व में परिवर्तन करता है या उत्पाद के प्रकार में परिवर्तन करता है (यह भी एक स्वाभाविक प्रक्रिया है क्योंकि कोई भी उत्पाद जीवन पर्यंत 90 वर्ष तक बाजार में उपयोग के आधार पर प्रचलित नहीं रह सकता) के बदलाव के लिए विभागों से लीज के कारण अनुमति लेनी होती है। इन अनुमतियों को देने का विभाग में प्रावधान तो है (औद्योगिक क्षेत्र को विकसित करने वाले विभाग को) लेकिन व्यवहारिक रूप में इन अनुमतियों को लेने में बड़ी जटिलताएं हैं एवं लंबा समय भी लग जाता है। साथ ही घोषित और अघोषित खर्चा भी बहुत आता है। कुछ स्थितियों में भूखंड की लीज की रजिस्ट्री भी नई लीज के समान स्टांप शुल्क देकर करानी पड़ती है। जिसको वहन करना, यदि पारिवारिक सदस्य शामिल हो रहा है तो अधिकतर स्थितियों में असंभव के समान हो जाता है। इस कारण उद्योग का विस्तारीकरण रुक जाता है और इस परिवर्तन का प्रावधान होना निरर्थक हो जाता है। लीज के समय भूमि का लगभग लागत मूल्य देने के बाद भी उस भूमि पर उद्यमी का स्वामित्व दिखावटी होता है। वह उस भूमि को , उस भूमि पर चल रहे उद्योग के लिए, लिए जाने वाले ऋण के लिए भूमि को बंधक रखने के अलावा किसी और अन्य व्यापारिक फर्म के लिए अथवा निजी कार्य के लिए अथवा आवश्यकता पड़ने पर विधिक जमानत के रूप में रहन नहीं कर सकता। जबकि स्थानीय संपत्ति पर कर, नगर निगम /नगर पंचायत आदि को कर भूमि के वर्तमान मूल्य के आधार पर देना होता है। जबकि वास्तविकता में वह जमीन का पट्टाधारी होने के कारण वह स्वयं भूमिका स्वामी नहीं है। लेकिन कर स्वामी के समान ही देना होता है।
चैम्बर अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने बताया कि पट्टाधारी औद्योगिक भूमि को फ्री होल्ड करने की नीति बनना बहुत ही आवश्यक है । भूमि के उपयोग में हम कोई परिवर्तन नहीं चाहते हैं। अतः चैम्बर की मांग है कि बिना भू - उपयोग परिवर्तन के इन पट्टाधारी औद्योगिक भूमि को फ्री होल्ड करने की नीति शीघ्र बननी चाहिए। इस सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा हेतु चैम्बर के प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक करने के लिए मुख्यमंत्री महोदय से समय देने की भी मांग की है।
बैठक में अध्यक्ष मनीष अग्रवाल, उपाध्यक्ष अनिल अग्रवाल, उपाध्यक्ष सुनील सिंघल, कोषाध्यक्ष गोपाल खंडेलवाल, औद्योगिक एवं औद्योगिक क्षेत्र विकास प्रकोष्ठ चेयरमैन पूर्व अध्यक्ष मुकेश अग्रवाल, प्रदीप कुमार वार्ष्णेय, योगेंद्र सिंघल, अमर मित्तल, प्रमोद अग्रवाल, अतुल कुमार गुप्ता, भुवेश कुमार अग्रवाल, अशोक कुमार गोयल आदि मुख्या रूप से उपस्थित थे।