एमिटी विश्वविद्यालय में ‘‘स्थायी मासिक धर्म” विषय पर वेबिनार का आयोजन।







नोयडा।हिन्दुस्तान वार्ता

छात्रों और शिक्षकों को मासिक धर्म के संर्दभ में जागरूक करने के लिए एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार में सिरोना हाइजीन फांउडेशन की रिसर्च, एडवोकेसी एंड वेलनेस की सीनियर मैनेजर डा आरूषी केहर मल्होत्रा और सिरोना हाइजीन फांउडेशन की मेडिकल डायरेक्टर डा दीक्षा ने ‘‘ स्थायी मासिक धर्म’’ विषय पर जानकारी प्रदान की। इस अवसर पर एमिटी इंस्टीटयूट आफ पब्लिक हेल्थ के निदेशक डा राजीव जनार्दन द्वारा अतिथियों का स्वागत किया गया। कार्यक्रम में एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ पब्लिक हेल्थ की डा मेहक सेगन सहित बड़ी संख्या में छात्र भी उपस्थित थे।

सिरोना हाइजीन फांउडेशन की रिसर्च, एडावोकेसी एडं वेलनेस की सीनियर मैनेजर डा आरूषी केहर मल्होत्रा ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि स्थायी मासिक धर्म को उस अभ्यास से जोड़ा गया है जहां मासिक धर्म उत्पादों के लिए पर्यावरण के अनुकूल विकल्प का उपयोग किया जाये जिससे उत्पाद अपशिष्ट को बढ़ावा ना मिले। यह पुनःउपयोग में आने वाले उत्पाद जैसे क्लोथ पैड, मासिक धर्म कप, बायोडिग्रेडबल सैनिटरी पैड आदि अन्य ऐसे कई उत्पाद जो अपशिष्ट को कम करते है उनको प्रोत्साहित करता है। डा मल्होत्रा ने कहा कि देश में हर वर्ष 43 मिलीयन टन अपशिष्ट का उत्पादन होता है, देश में लगभग 355 मिलियन मेंस्ट्रुएटर है और 36 प्रतिशत को सैनिटरी पैड उपलब्ध हो पाता है। हर साल लगभग 7 बिलियन सेैनटरी नैपकीन को लैडफील में फेंका जाता है और 01 सैनीटरी नैपकीन को नष्ट होने में लगभग 500 से 800 वर्ष का समय लगता है इसके अतिरिक्त 01 सैनीटरी नैपकीन लगभग 4 प्लास्टिक बैग के बराबर होता है। कई सारे सैनीटरी पैड में स्टाइरिन, क्लोरोमिथेन, एसिटोन और क्लोरोइथेन का उपयोग किया जाता है जिसे लेबल पर नही लिखा होता। समय की मांग है कि मासिक धर्म को अपशिष्ट मुक्त, कीमत मुक्त और रोग मुक्त बनाया जाये।

सिरोना हाइजीन फांउडेशन की मेडिकल डायरेक्टर डा दीक्षा ने संबोधित करते हुए कहा कि स्न 1860 और 1870 के यूएसए में मासिक धर्म कप का प्रथम प्रोटोटाइप को पेटेंट कराया गया। प्रथम आधुनिक मासिक धर्म कप जो आज के कप के समान है उसे 1937 में अमेरिकन कलाकार सुश्री लियोना चाल्मरस द्वारा ईजाद किया गया। उन्होनें लैटेक्स रबर से बने कप के डिजाइन को पेटेंट कराया था। डा दीक्षा ने 1987 में विकसित हुए अन्य लैटेक्स रबर कप और 2001 में प्रथम सिलिकाॅन मासिक धर्म कप के बारे में बताते हुए कहा कि आज विभिन्न डिजाइन, आकार और मैटेरियल में बने कप मौजूद है। उन्होनें कप की एनाटाॅमी सहित उसकी फिजियोलाॅजी, उपयोग करने के तरीके और सुरक्षा, स्टरलाइज तकनीकों की जानकारी दी।

             एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ़ पब्लिक हेल्थ के निदेशक डा राजीव जनार्दन ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि मासिक धर्म एक ऐसा विषय जिस पर चर्चा करने से आज भी लोग झिझकते है किंतु महिलाओं के स्वास्थय की रक्षा हेतु इसके संर्दभ में उपयुक्त और सही जानकारी होना आवश्यक है। छात्रों को मासिक धर्म की कुरितियों और महिलाओं की स्वास्थय रक्षा के लिए इस क्षेत्र में हो रही प्रगति की जानकारी प्रदान करने के लिए इस वेबिनार का आयोजन किया गया है।

  प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान छात्रों ने विशेषज्ञों से कई प्रश्न किये और जवाब भी प्राप्त किये।