एमिटी विश्वविद्यालय में ‘‘ क्या हम 75 पर पोषक रूप से सुरक्षित है” विषय पर वेबिनार का आयोजन।



नोयडा।हि. वार्ता

एमिटी विश्वविद्यालय में आजादी की 75 वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए आयोजित आजादी का अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में एमिटी फूड एंड एग्रीकल्चर फांउडेशन द्वारा छात्रों, वैज्ञानिकों, शोधार्थियों के लिए वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक और वर्तमान में वैज्ञानिक डा सुरेश वालिया ने ‘‘ क्या हम 75 पर पोषक रूप से सुरक्षित है” विषय व्याख्यान दिया। इस वेबिनार में एमिटी फूड एंड एग्रीकल्चर फांउडेशन की महानिदेशक डा नूतन कौशिक ने डा वालिया का स्वागत किया। इस अवसर पर एमिटी विश्वविद्यालय के डीन - स्टूडेंट वेलफेयर डा मार्शल साहनी और एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ ऑरगेनिक एग्रीकल्चर की निदेशिका डा नलीनी रामावत भी उपस्थित थे।

वेबिनार में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक और वर्तमान में वैज्ञानिक डा सुरेश वालिया ने ‘‘ क्या हम 75 पर पोषक रूप से सुरक्षित है’’ विषय जानकारी देते हुए कहा कि जब देश आजाद हुआ तो उस समय खाद्य उत्पादन अत्यधिक कम था और लोगों को भोजन उपलब्ध करना सबसे बड़ी चुनौती थी। स्न 1947 से 1960 के मध्य अकाल का सामना भी करना पड़ा। ग्रामीण इलाकों में रहने वाली 90 प्रतिशत जनसंख्या आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। एक लंबे वक्त में कृषि अभ्यासों में कोई परिवर्तन नही हुआ। डा वालिया ने कहा कि आज देश में कृषि खाद्यन्न उत्पादन कई गुना बढ़ गया है जो 1950 के 50 मीट्रिक टन से 2019 -20 में 296 मीट्रिक टन हो गया है और 2020 -21 में 303 मीट्रिक टन का अनुमान है। लगभग 75 वर्षो के उपरंात पोषण सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है, खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता की उपलब्धता के बावजूद स्न 2016 - 17 में 195 मिलियन व्यक्ति कुपोषित थे। शिशु, बच्चे, महिलायें, गरीब, कृषक और समाज का शोषित वर्ग, पोषण के संर्दभ में असुरक्षित है। कुपोषण और अविकास के कारण लगभग 47 मिलीयन बच्चे भारत में अपनी पूरी मानवीय क्षमता का उपयोग नही कर पाते। उन्होनें सरकार द्वारा संचालित की जा रही योजनाओं जैसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एक्ट 2013, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय पोषण मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना आदि की जानकारी दी। उन्होनें कहा कि भारत को पोषण सुरक्षा में अपनी क्षमता के विकास हेतु भोज्य और अभोज्य खाद्यान्न में न्यूट्रास्युटिकल एंड फंक्शनल भोज्य का विकास आवश्यक है। डा वालिया ने सब्जियों और फलों में उपलब्ध माइक्रो न्यूट्रीयंट, पोषण के प्रकार को बताते हुए कहा कि न्यूट्रास्युटिकल, पोषण और फार्मास्युटिकल से मिलकर बना है जो भोजन और औषधी के मध्य रिक्त स्थान को भरता है। उन्होने न्यूट्रास्युटिकल की आवश्यकता और चुनौतीयों को बताते हुए कहा कि आज न्यूट्रास्युटिकल का बाज़ार लगभग 38ण्7 बिलियन यूएस डॉलर का है और भारत न्यूट्रास्युटिकल बाजार की हिस्सेदारी वैश्विक बाजार में लगभग 1 प्रतिशत है। भारत में न्यूट्रास्युटिकल सामग्री की उपलब्धता बहुतयात मात्रा में है। डा वालिया ने खाद्य और पोषण सुरक्षा की उपलब्धियों के लिए सलाह देते हुए कहा कि ग्रामीण संरचना के लिए निजी और सरकारी भागीदारी, कृषि आधारित उद्योगों और हॉर्टीकल्चर में अधिक निवेश, किफायती तकनीकों का विकास, उत्पादन की अधिक जीवन, कृषि और हॉर्टीकल्चर का अपशिष्ट पुनउपयोग आदि आवश्यक है।

एमिटी फूड एंड एग्रीकल्चर फांउडेशन की महानिदेशक डा नूतन कौशिक ने डा वालिया का स्वागत करते हुए कहा कि एमिटी मे ंहम कृषि उत्पादन, गुणवत्ता और किसानों की आय को बढ़ाने सहित उन्हे आधुनिक तकनीकें प्रदान करने और उनकी समस्याओं के निवारण हेतु शोध करते है। आने वाले वक्त में एक बड़ी आबादी के लिए भोजन की उपलब्धता के साथ पौष्टिकता भी बड़ी चुनौती होगी जिससे आने वाली पीढ़ीयों का समग्र विकास हो सके। आजादी के 75 वर्ष में हमने पौष्टिक सुरक्षता को किस हद तक हासिल किया है उसकी जानकारी प्राप्त करने हेतु इस वेबिनार का आयोजन किया गया है।

इस अवसर पर छात्रों, शोधार्थियों और वैज्ञानिकों ने डा वालिया ने कई प्रश्न किये और जानकारी प्राप्त भी की।