उस ईश्वर का सब कुछ जगत ,और अध्यात्म भी। डॉ. विनोद शर्मा , ज्योतिष एवं पराविद।



हिन्दुस्तान वार्ता।

दुनियाँ का कोई व्यक्ति समझे कि ईश्वर के मायने क्या होता है समझ ही नहीं सकता। वह समझता है कि ईश्वर वह जो आसमान से टपका नहीं, टपकाया गया है। उसे चौबीस अवतारों में से किसी अवतार को मानना या अवतारों की संख्या की पूर्ति का एक स्वरूप मात्र,   ....

आखिर क्या है ईश्वर.......?  यह अंदाजा लगाता रहता है । पर मेरी धारणा  अलग है ।   ईश्वर होता नहीं ईश्वर का स्वरूप गढ़ा जाता है । ईश्वर प्रतिभा है ,  पर यह प्रतिभा उतारी जाती है इतना ही नहीं,  यह प्रतिभा तैयार भी होती है अपने बल पर ईश्वर की इच्छा से प्रकृति की आवश्यकता समझकर। 

 यहाँ कुछ ऐसा ही हुआ है जिस अवतार को" कल्कि " के रूप में प्रकट होना था उसे बीच में ही आना पड़ा। पर  ईश्वर का अंदाजा कुछ और था अकस्मात हुआ। मैं अभी और कुछ अधिक नहीं कहना चाहता हक है मनुष्य को सोचने का। पर कभी-कभी अधिक सोचना हानिकारक होता है। 

यह मेरे लेख का विषय नहीं फिर भी कहना पड़ रहा है प्रकृति की तरफ से। प्रकृति जिसे चाहती है वरण करती है अपनी रक्षा के लिए। अभी यह पहला सवाल है जो धरती के लोगों के मन में उपज सकता है । पर मैं समझता हूँ और मानता भी हूँ कि विकट परिस्थिति में सोचने से ज्यादा करने से काम चलता है। घर में आग लगी हो तो उसे बुझाने का है , सोचने का नहीं।इस समय इस अवतार को कितना क्या करना पड़ रहा है , वह ही जानता है । साधारण जनता तो सवाल उठाती है बस। उसे बस इतना ही कि राम को ही आना पड़ा है धर्म का अवतार बनकर। यह राम का अवतार है जो बार-बार आता है धरती की आवश्यकता को उसकी सुरक्षा को। 

ईश्वर आज्ञा रूप है,आज्ञा है स्वयं। उसकी जो मानता है उसे लाभ मिलता है। क्या छोटा क्या बड़ा कोई मतलब नहीं। उसे तो अपनी आज्ञा को ही देखना है, अन्यथा अपना रास्ता जो चाहे अख्तियार कर सकता है। ईश्वर- प्रज्ञ किसी की इच्छा का दास नहीं, वह स्वयं अपनी इच्छा का मालिक है । मन को टटोलना एक परीक्षा है जीव की कि आखिर उसका भाव कितना है मुझ ईश्वर के प्रति।

आत्म पद की प्रतिष्ठा ही ईश्वर है। ईश्वर कुछ नहीं कहता उसकी शक्तियाँ ही सब कुछ हैं। शक्तियों से  परे वह नहीं, शक्तियाँ उससे हैं। धर्म की प्रतिष्ठा भी वही है। सत्य सनातन का मतलब उस ईश्वर से ही है । गुण गया गुण का स्वाद गया। इसलिए गुण को ही पकड़ो फिर सब कुछ स्वयं आ जायेगा।

 सत्य क्या है, यह खोजने की बजाय सत्य को पकड़ो, सत्य को स्वीकार करो। सत्य सनातन ईश्वर है वही वास्तव में सत्य है। "सत्या वाक" जो उसकी वाणी है वह स्वयं "मौन" है। शब्द नहीं ,वह अब्द है। अब्द से मतलब - मौन। इस   मौन को   समझने का मतलब ही सत्य को पा लेना कहलाता है । ईश्वर जो चाहता है वह इस वाणी में ही कहता है । ईश्वर और ईश्वर का सच्चा भक्त ही इस वाणी का उपयोग जानता है समझता है । यह वाणी जब शब्दों का बाना ग्रहणकर धरती पर उतरती है तो ग्रंथ का रूप ले लेती है । क्योंकि  ईश्वर जो चाहता है वह धरती पर पहले ही आ जाता है  "लोमश ऋषि" ने "कागभुशुन्डि" को रामायण का ज्ञान दिया । ऐसे ही बाल्मीकि ने भी उस क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक का शिकारी द्वारा बध  किये जाने पर आत्मा में करुण भाव का उदय इसी वाणी द्वारा हुआ। यह प्रथम रचना संस्कृत की लौकिक रचना बाल्मीकि द्वारा रचित यह उन्हीं के नाम से" बाल्मीकि रामायण"  के नाम से विख्यात हुई। 

इस धरती की आवश्यकता को न तुम हो तुम तो ईश्वर-प्रज्ञ भी नहीं, पर बड़ी-बड़ी बात करते हो। ईश्वर के मायने बहुत बड़ा होता है। वह सबका पालक है सबका रक्षक है। इसलिए ईश्वर को ईश्वर समझने में ही भलाई है।

 ज्ञान न कहता कि तुम पूछकर निकलो वह तो स्वयं ही आता है प्रवासी की तरह रहता है करता है और सब कुछ करता है ईश्वर प्रवासी है वह वक्त पर आता है । इसलिए समझो ईश्वर को सनातन ही ईश्वर है मालिक है यह जगत का, 

वह सबका ईश्वर है । 

हम ईश्वर नहीं हम तो मनुष्य हैं,

और मनुष्यता में रहकर ही कुछ कर पाएं उस ईश्वर के लिए इसमें ही हमारा कल्याण है। ईश्वर के कार्य में दखलअंदाजी देना अथवा  सोचना  अपराध की श्रेणी में आता है। तुम्हें अपना काम करने को दिया है ,तुम कर्म बंधन में हो। पर ईश्वर कर्म -बंधन से मुक्त है वह बंधता नहीं है ,बांधता है सबको। 

"कहने का हक नहीं

 ईश्वर कहलवाता है , 

इसलिए ईश्वर को

 समझो ईश्वर 

सबका भ्राता है ।

भरण करता है वह सबका

 और आज्ञाकारी है ।

इसलिए वह सबका

 और सबका अधिकारी है। 

हम अधिकार नहीं रखते

 इसलिए मनुष्य कहलाते हैं । 

अब समझो फितरत को 

आते हैं आते हैं । 

आते हैं सेवा को

 जो अधिकार रखते हैं । 

वे श्री राम स्वयं हैं

लिखते हैं कहानी अपनी

 वे राम अब हैं  । "

इस अवतार में वे अपनी कहानी खुद लिख रहे हैं । इसलिए किसी को कानोंकान पता नहीं एक कान से दूसरे कान को भी नहीं पता, तो तुम क्या पता लगाओगे । इसलिए उस ईश्वर को जानो पहचानो। ईश्वर के नाम पर ज्यादा छेड़छाड़ तुम्हारे लिए हानिकारक हो सकती है मेरा वाक्य है और यह वाक्य ईश्वर का वाक्य  है। 

करो तो कुछ मनुष्य के स्तर पर ही करो। तुम्हें तुम्हें दूसरे के स्तर को नापने का अधिकार नहीं । 

"तुम्हें भरोसा है राम का

 इसलिए राम को ही भजना है । 

चल रहा है काम अपना 

फिर- फिर करना है। 

बढ़ोगे तुम तो बढ़ाएंगे राम तुम्हें इसलिए तुम्हें बस 

श्री और श्री राम कहना है ।"

जय श्री राम बस तू ही महान। 

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