ब्राह्मण संगठनों के सहयोग से "श्री विचित्र वीर हनुमान पुस्तकालय/ग्रंथालय,का रेणुका धाम, रुनकता, आगरा में लोकार्पण।

 




- आज संयुक्त ब्राह्मण समिति (ब्राह्मण प्रोफेशनल एसोसिएशन!!; अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद! एवं अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण महासभा, महिला प्रकोष्ठ जिला आगरा! के संयुक्त समिति) ने   "श्री विचित्र वीर हनुमान पुस्तकालय" को समस्त हिन्दू और सर्व समाज को समर्पित किया।

- संयुक्त ब्राह्मण समिति, श्री विचित्र वीर हनुमान मंदिर के संचालकों का धन्यवाद करती है।

-संयुक्त ब्राह्मण समिति,आगरा के १२/११/२१, को होटल पी एल पैलेस आगरा में हुए "समस्त ब्राह्मणों के आराध्य और हिंदुओं के आस्था स्थल, रुनकता, आगरा क्षेत्र के विकास हेतु" संवाद, में पारित प्रस्ताव "ग्रन्थालय/पुस्तकालय स्थापना", का क्रियान्वयन हुआ।

- पौराणिक माता रेणुका और ऋषि जमदग्नि मंदिर के संत श्री शिवानन्द जी महाराज  और गोवेर्धन से पधारे स्वामी श्री रामप्रपन्नाचार्य जी महाराज और श्री राजनारायणचार्य जी महाराज ने आशीर्वाद दिया और मार्ग दर्शन किया।

- गाँव के निवासियों ने इस पहेल का स्वागत किया।

- आज के लोकार्पण में ब्राह्मण प्रोफेशनल एसोसिएशन और विचित्र वीर हनुमान मंदिर के पधाधिकारियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।                        

हिन्दुस्तान वार्ता।आगरा

वन ,कुंजों,सरोवरों और कल कल के स्‍वर से प्रवाहित होती रहने वाली सदानीरा 'यमुना नदी ' से आच्छादित भूभाग के 'अग्रवन ' से 'आगरा' के रूप में प्रचलित होने तक के कालखंडों  का दौर  व्‍यापक भौगोलिक एवं उन बडे सांस्कृतिक परिवर्तनों से भरपूर रहा है जिनकी आम नागरिकों के द्वारा कल्पना भी मुश्किल है।लेकिन साक्ष्य व प्रमाणों के आधार पर यह सुनिश्चित है कि  लौकिक सुख अनुभूति के साथ हिंदुओं की जीवन पद्धति को प्रभावित करने वाली  तमाम घटनाओं और वृतांतों से यहां की धरा भरपूर है ।

  इसी प्रकार की घटनाओं का साक्षी रहा है , यमुना तटीय गांव ' रुनकता' । यह   मथुरा-आगरा मार्ग पर मथुरा से 35 कि मी तथा आगरा से लगभग 18 कि मी दूरी  पर स्थित है। इस ग्राम का प्राचीन नाम 'रेणुका' क्षेत्र भी कहा जाता है। किंवदंती है कि यहाँ महर्षि जमदग्नि का आश्रम स्थित था। रुनकता ग्राम में एक ऊंचे टीले पर जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका का मंदिर है और अनवरत रूप से वहां पूजा अर्चना का सिलसिला कलयुग में भी यथावत चल रहा है।

रेणुका सतयुग में जन्‍मीं थीं और त्रेतायुग तक रहीं

रेणुका राजा प्रसेनजित ( राजा रेणु ) की पुत्री एवं महर्षि जमदग्नि पत्नी थीं । वृतांतों के अनुसार रेणुका माता प्रतिदिन नदी से पानी भरकर लाया करती थी। इसके बाद जमदग्नि ऋषि मुनि नदी में स्नान  करने के लिए जाते थे। स्नान हो जाने के बाद शिवजी की पूजा अर्चना किया करते थे।  एक दिन माता रेणुका को पानी लाते समय देर हो गई। तभी जमदग्नि ऋषि को यह आभास हुआ कि उनका ब्राह्मणत्व समाप्त हो गया है।

रुनकता और रेणुका धाम के परिप्रेक्ष्य में उपरोक्त  क्रम में ही एक अन्य उल्‍लेख के अनुसार उल्‍लेख  हैं,नियती के विधान अनुसार एक बार  रेणुका राजा नदी में स्‍नान के दौरान चित्ररथ पर मुग्ध हो गयी। उसके आश्रम पहुँचने पर मुनि ( महर्षि जमदग्नि )को दिव्य ज्ञान से समस्त घटना ज्ञात हो गयी। उन्होंने क्रोध के आवेश में बारी-बारी से अपने चार बेटों  'रुक्मवान', 'सुखेण', 'वसु', 'विश्ववानस' से अपनी मां को मार देने को कहा किंतु मातृहंता दोष से अभिशप्त होने के स्थान पर उन्होंने  पिता के कोप से ग्रसित होकर जीवन जीना बेहतर समझा।इस पर ऋषि ने चारों पुत्रों को जड़ बुद्ध होने का शाप दिया। जबकि पांचवें पुत्र   परशुराम ने पिता की आज्ञा को सर्वोपरि मान आज्ञा का पालन किया।

जब जमदग्नि ने प्रसन्न होकर उसे वर माँगने के लिए कहा। तो इस पर परशुराम ने पहले वर से माँ का पुनर्जीवन माँगा और फिर अपने भाईयों को क्षमा कर देने के लिए कहा। जमदग्नि ऋषि ने परशुराम जी को उनके मांगे वर दिये और साथ ही उन्हें अमर होने का वरदान भी दिया।

रेणुका का जीवन एक तपस्‍वनी के रूप में ही बीता और जीवन पर्यंत अपने पति के साथ लोक कल्‍याण के काम में लगी रहीं। जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय थी,जिसे 

सहस्त्रार्जुन ने बलपूर्वक छीन लिया था। बाद में सहस्त्रार्जुन को युद्ध में परुश राम जी ने  मार डाला। बाद में सहस्त्रार्जुन  के पुत्रों ने प्रतिशोध वश परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि को मार डाला। परशुराम की माँ रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गयीं।

चैत्र मास शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को  'माता रेणुका चतुर्दशी' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को माता रेणुका प्राकट्य दिवस भी माना जाता है।इस दिवस पर ब्राह्मण समाज ही नहीं हिन्दू धर्मानुयायी देश भर में स्थानीय परंपरा के अनुरूप माता रेणुका की पूजा करते हैं।

ऋषि जमदग्नि

मूल रूप से इस स्थान की पहचान मर्हिषी जन्‍मदाग्‍नि के तपस्‍थल और आश्रम के रूप में रही है, जो भृगुवंशी ऋचीक के पुत्र थे तथा इनकी गणना सप्तऋषियों(विष्णु पुराण व सातवें मन्वन्तर के अनुसार सप्तऋषि इस प्रकार हैं:- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।) में होती है। रेणुका उनकी पत्नी थीं जबकि  'रुक्मवान', 'सुखेण', 'वसु', 'विश्ववानस' और 'परशुराम' आदि उनके पांच पुत्र थे।परषुराम इनमें सबसे छोटे और अत्यधिक पराकृमी थे।इनके आश्रम में इच्छित फलों को प्रदान करने वाली गाय थी जिसे कार्तवीर्य छीनकर अपनी राजधानी माहिष्मती ले गया। परशुराम को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने कार्तवीर्य को मार दिया ओर कामधेनु वापस आश्रम में ले आए।

मर्हिषी परशुराम

परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के यहाँ जन्मे थे। जो विष्णु के छठा अवतार हैं । पौराणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश के इंदौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में हुआ। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार हैं। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम कहलाए। वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये।

भारत में ऋषि परंपरा के तपस्वी किसी एक राज्य या स्थान पर बंध कर नहीं रहते थे,जिस स्‍थान पर वह ठहरते थे या तपस्या करते थे,वह लोगों में विशेष आस्था स्थल के रूप में स्वीकार कर लिया जाता था। यही कारण है कि एक एक ऋषि के नाम से देश में कई कई स्थान प्रचारित हैं।

रुनकता,आगरा में रुनकता ग्राम पंचायत के तहत आने वाले  रेणुका घाट और रेणुका धाम इसी ऋषि परंपरा के हैं।  ब्राह्मण समाज की इस स्थान के प्रति अगाध आस्था रही है।अब आगरा के ब्राह्मण समाज की कोशिश है कि हिंदू समाज इस पवित्र स्थान के धार्मिक महत्व के अलावा सांस्‍कृतिक महत्‍व को भी समझें। ऋषियों की तपस्या स्थल रहे रुनकता गांव की एक अन्य विशेषता यहां अन्‍य स्‍थानों की अपेक्षा यमुना में हमेशा पर्याप्त पानी रहता है,यही नहीं यहीं से   यमुना नदी पूर्व दिशा की ओर बहते-बहते एकाएक घूमकर कुछ दूर तक पश्चिम की ओर बहती है।

जमदग्नि ऋषि और माता रेणुका के मंदिर परिसर में ही विचित्र वीर्य हनुमान का भी मंदिर है। अब इसी मन्दिर परिसर में ब्राह्मण समाज की ओर से एक ग्रंथालय की परिकल्पना पर कार्य शुरू किया गया है।इस ग्रंथालय में धार्मिक -सामाजिक चेतना को जागरूक करने वाला साहित्‍य तो होगा ही ,साथ ही अध्ययन करने आने वालों के लिये फर्नीचर आदि उपलब्ध करवा के उपयुक्त व्यवस्था की गयी है।  

ब्राह्मण समाज को उम्मीद है कि आगरा के सभी समुदायों और वर्ग के लोगों के लिये यह लाइब्रेरी(ग्रंथालय ) उपयोगी साबित होगा। फिलहाल यह एक प्रतीकात्मक शुरुआत है,लेकिन आने वाले वक्त में यहां धर्म,सामाजिक चेतना, संस्कृति से जुड़े साहित्‍य का बडा संग्रह संभव होगा।

इस अवसर पर ब्राह्मण समाज के इतिहासकार  डॉ आर सी शर्मा,पूर्व विभाग अध्यक्ष, सेंट  जॉन'स कॉलेज,आगरा, श्री ब्रिजेश तिवारी, ब्राह्मण प्रोफेशनल एसोसिएशन के  डॉ पंकज नगायच, सचिव , श्री बी के शर्मा, श्री महेश शर्मा, श्री अश्वनी शर्मा, श्री अनिल कुमार शर्मा, डॉ पंचशील शर्मा, श्री अनिल सारस्वत, श्री आनंद शर्मा (उद्गामी), श्री राजेश कुमार, श्री संदीप दुबे,  श्री विचित्र वीर हनुमान मंदिर के संचालक श्री राजेश पंडित जी, रुनकता के श्री नारायण सिंह और अनिल शर्मा  का आभार व्यक्त करता है,जिन्होंने न केवल प्रयास का समर्थन किया ,अपितु सक्रिय भागीदारी भी निर्वाहन की।

आज के लोकार्पण में  इतिहासकार डॉ आर सी शर्मा, श्री आनंद शर्मा -पूर्व एडिटर दैनिक जागरण, डॉ.श्री भगवान शर्मा , डॉ पंकज नगायच, राजेश पंडित जी , श्री नारायण सिंह, अनिल शर्मा, वरिष्ट  पार्षद श्री शिरोमणि सिंह, श्री राजीव सक्सेना वरिष्ट पत्रिकार, श्री असलम सलीमी वरिष्ट फोटोग्राफर, डॉ.महेश शर्मा, श्री अवधेश उपाध्याय, मास्टर महावीर सिंह, श्री मनमोहन सिंह, श्री नरोत्तम शर्मा, श्री बी डी शर्मा, श्री बबन, श्री अमरपाल, श्री रवि आदि उपस्थित रहे।