मकर संक्रांति पर्व.. प्रकृति में सहायक। डॉ विनोद शर्मा, ज्योतिष एवं पराविद।



हिन्दुस्तान वार्ता।

त्रयंबक स्वरूप "शिव" का है। धरती की शक्ति स्वयं "सीता" है। इस गुण को निखारकर जब भी ज्ञान के क्षेत्र में डुबकी लगाने की बात सामने आती है तो शिव के ज्ञान का रूप स्वयं महाकाल ही याद आता है। यह "खिचड़ी पर्व " जो स्वयं इस हेतु से कि पंच -तत्व की शक्ति प्रबोध  का कारण बने, इस "संक्रांति पर्व "को  ऊर्जित करने का एक उपक्रम है। 

ज्ञान का क्षेत्र स्वयं सूर्य धरती पर 'महाकाल" का रूप है । इसलिए इस शिव के रूप को हम सूर्य से संबद्ध    क्रिया के ज्ञान के रूप में स्वीकारते हैं।

दर्शन का लाभ धरती वाले ही ले पाते हैं ,यह उनका सौभाग्य है । स्वयं शिव की शक्ति सूर्य नहीं , अपितु स्वयं "रुद्र", "विनायक " सब सब इस महाकाल में समाविष्ट हैं ।  इसलिए इस रूद्र शिव को हम "कालात्मिका शक्ति " के रूप में पूजते हैं । अब समझना है इस पर्व को जो चार दिन तक चलता है। ज्ञान का क्षेत्र में  दुँदुभीयुक्त हो जाना चाहता है  इस बार। कारण पंच ग्रह योग बना  इस बार। इसलिए इस पञ्च को ही शिव में पूजना है । 

ध्यान की आधार स्वयं "दुर्गा'" नहीं, 

 " पार्वती" भी है । इसलिए इस पार्वती को शिव में पूजना है। 

काल उस ईश्वर का उस शक्ति  का नाम है जो विश्व ही नहीं ,विश्व ब्रह्मांड की रक्षा करता है। काल समय वाची  ही नहीं ,मृत्युवाची भी है।अब इस काल को जानो यह काल स्वयं सब कुछ समेटे हुए हैं समय की शक्ति  को भी ।  इसलिए जब जो चाहा हुआ जब जो चाहा न हुआ ,यह सब सब अधीन है इस काल के । अब इस पर्व की अधीनता को ही  लो । सब कुछ बदला पर इस पर्व पर जो होना था हुआ। 

"रात्रि सूक्त"  स्वयं "रात्रि - शक्ति "  है।  इस रात्रि पर भी अपनी दारमदारी रखना इसका ही काम है।

ईश्वर के जितने भी रूप हैं, काल उनमें मुख्य है । इसलिए इस काल को हम बड़े आदर के साथ पूजते हैं।  

महाकाल की शक्ति स्वयं में अद्भुत है। यह शक्ति किसी को भी ऊपर नहीं उठने देती है । "घोररूपा 'यह शक्ति  स्वयं और स्वयं वर्तमान सत्ता की ही शक्ति है, जो की अव्यक्त है। अब महाकालों का ज्ञान  सूर्य में ही रहता है । यह सूर्य- शक्ति के नजदीक अपने ज्ञान को प्रकट करने में सहायक तभी होता है जब कोई साधक अपनी साधना से अपने गुणों से इस महाकाल की शक्ति को नवा  दे। वर्तमान सत्ता के दावेदार ने इस काल की शक्ति को ,जो उज्जैन में है नवा दिया है अपने गुणों से ही। इसलिए यह वर्तमान सत्ता की शक्ति का आदर्श बन गई है ।आदर्श का मतलब है जब जैसा चाहे अपनी शक्ति से इसे कर सकता है विधि की महनीयता स्वयं अब वर्तमान सत्ता के के अधीन है ।वह विधि को कितना महान बना सकता है, उसके हक में है। बात तो बहुत सी  हैं पर संक्षेप में इस योग को इस लेख में बखान किया गया है । सच माने तो प्रकृति अपना पर्याय स्वयं ढूंढती है और अपनी रक्षा का उपाय भी । इसलिए यह सब सब उस प्रकृति के अधीन यानी उस सत्ता के अधीन ही है।

जय जय महान। 

२१  फेस २ चैतन्य विहार ,वृंदावन ,मथुरा।

 चलित दूरभाष ७३००५२४८०२