श्री अरबिंदो कॉलेज दिल्ली ने मनाया,अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस ।




-अकादमिक जगत में मातृभाषा को एक विषय के रूप में पढ़ाया जाए: डॉ. सुमन।

हिन्दुस्तान वार्ता।

दिल्ली:अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में श्रीअरबिंदो कॉलेज की नवोन्मेष साहित्य सभा द्वारा हिंदी विभाग की ओर से अंतर महाविद्यालय स्तर पर विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया,जिसमें लघुकथा लेखन , काव्य पाठ तथा निबंध लेखन आदि में विद्यार्थियों ने बढ़ -चढ़कर भाग लिया । कार्यक्रम का शुभारंभ विभाग के प्रभारी डॉ.हंसराज सुमन ने किया। मंच संचालन कु. रिशिता व योगराज सिंह ने किया । इस अवसर पर डॉ.हंसराज सुमन , डॉ.प्रदीप कुमार सिंह व डॉ. शिव मंगल कुमार ने भी अपने विचार रखें ।

  इस अवसर पर कार्यक्रम के शुभारंभ से पूर्व हिंदी विभाग के प्रभारी डॉ. हंसराज सुमन ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि मातृभाषा दिवस मनाने से काम नहीं चलेगा बल्कि मातृभाषाओं की रक्षा तभी संभव है जब अकादमिक जगत में मातृभाषाओं को विषय के रूप में पढ़ाया जाए और अपनी भाषा को महत्त्व देने के लिए युवाओं में जागरूकता फैलाई जाए और अंग्रेजी के वर्चस्व को तभी तोड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी एक सीखी हुई भाषा है जिसमें हमारी सांस्कृतिक पहचान नहीं उभर सकती , ना ही हम पूर्ण रूप से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर सकते ।

आज के समय में अंग्रेजी भाषा को एक माध्यम ही नहीं बल्कि ज्ञान के मिथ के रूप में विकसित कर दिया है जिसे तभी तोड़ा जा सकता है जब मातृभाषा के प्रति जागरूकता और सम्मान की भावना हो।

डॉ. हंसराज सुमन ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा के महत्त्व को समझाते हुए कहा कि मातृभाषा हमारी माँ की तरह सम्माननीय और महत्वपूर्ण है । हम मातृभाषा में जितने सक्षम और स्पष्ट अभिव्यक्ति कर सकते है उतना किसी सीखी हुई या कृत्रिम भाषा में नहीं । आज पूरे विश्व में अंग्रेजी भाषा का उपनिवेशवाद चल रहा है जिसके चलते पूरी दुनिया की मातृभाषा पर संकट बढ़ गया है । उन्होंने कहा कि अंग्रेजी और बाजार एक हो चुके है और बहुसांस्कृतिकता को नष्ट करके एकल संस्कृति के कारण अंग्रेजी के लिए पूरी दुनिया एक बाजार की तरह उभर चुका है । डॉ .सुमन ने बताया कि सिर्फ हिंदी पर ही अंग्रेजी का संकट नहीं है बल्कि हिंदी स्वंय एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के स्तर पर पहुंच चुकी है ,यदि खतरा है तो भारत की अन्य क्षेत्रीय भाषाओं पर है । उन्होंने  कहा कि यदि अपनी देश की सांस्कृतिक विविधता को बचाना है तो देश की मातृभाषाओ की रक्षा करनी होगी अन्यथा ये भाषाएं विलुप्त हो जाएंगी और भारत की बहुसांस्कृतिकता भी खतरे में पड़ जाएगी इसलिए अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस एक वैश्विक महत्त्व है और हमें इसके प्रति और जागरूक होना पड़ेगा ।

  हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.प्रदीप कुमार सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस अत्यंत गम्भीर और संवेदनशील अवसर है । अपनी भाषा , संस्कृति , पहचान की लड़ाई हेतू बंगला देश द्वारा बंगाली भाषा को बचाएं रखने के लिए आंदोलन करने वाले लोगों के बलिदान के कारण अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन यूनेस्को द्वारा शुरू किया गया । उन्होंने कहा कि बांग्लादेश ने भाषा को धर्म से ना जोड़ते हुए उर्दू की जगह बंग्ला को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया जिसके कारण यह आंदोलन बंगलादेश की आजादी बंग्ला भाषा की आजादी और उसकी अश्मिता से जुड़ी हुई है ।

 अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर निबंध लेखन में प्रथम स्थान -- कु. सोनाली गुप्ता ने प्राप्त किया , वहीं दूसरा स्थान -- श्री हिमांशु व तृतीय स्थान -- कु . सोनिया को दिया गया । इसी तरह से काव्य पाठ प्रतियोगिता में  प्रथम पुरुस्कार --कु . मनीषा , द्वितीय पुरुस्कार -- वर्तिका जोशी व विजय लक्ष्मी को संयुक्त रूप से दिया गया ,तृतीय पुरुस्कार -- कु. हिना तन्खा को दिया गया । लघु कथा प्रतियोगिता के अंतर्गत श्री आनंद सिंह को यह पुरस्कार दिया गया। प्रतियोगिताओं के निर्णायकों में डॉ शिवमंगल कुमार, डॉ. सीमा, डॉ. प्रदीप कुमार सिंह , डॉ.दीपा , श्री बालेंद्र व डॉ.रोशन मीणा आदि ने सहयोग दिया अंत में सभी का धन्यवाद सचिव नवोन्मेष रिशिता ने किया ।