लखनऊ शहर के परिणाम अप्रत्याशित नहीं हैं। जिन सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज कराई ,उनमे एक तरफा माहौल था।


हिन्दुस्तान वार्ता।

लखनऊ: 2017 के चुनाव में लखनऊ की 09 में से 08 सीटें पाने वाली बीजेपी को इस बार सिर्फ 07 सीटें मिली है। खास बात यह है कि लखनऊ शहर की 02 सीटों पर मात मिली है। लेकिन बीजेपी ने पहली बार मोहनलालगंज में जीत दर्ज करने का रिकॉर्ड बनाया है।

लखनऊ मध्य सीट पर तो खुद भाजपा के नेता पहले से कड़ा मुकाबला मान रहे थे इससे पिछली बार जीते कानून मंत्री बृजेश पाठक को इस बार कैंट से प्रत्याशी बनाया गया, ऐसे में पार्टी ने यहां रजनीश गुप्ता को टिकट दे दिया था, पहली बार चुनाव लड़ रहे रजनीश ने मेहनत भी जमकर की लेकिन पुराने वा जनता से जुड़े नेता सपा प्रत्याशी पूर्व मंत्री, रविदास मल्होत्रा ने उन्हें हरा दिया।

मध्य_क्षेत्र में तो भाजपा प्रत्याशी रजनीश गुप्ता का नाम ही अधिकांश मतदाताओं ने नहीं सुना था। यहां से पूर्व विधायक ब्रजेश पाठक की लोकप्रियता अत्यधिक थी, किन्तु पार्टी ने उनको कैंट भेज दिया, जिससे ब्रजेश पाठक का प्रशंसक वोटर उदासीन हो गया। चूंकि रजनीश का नाम मतदाता ने पहले यहां नही सुना था, सो यह सोचकर कि मेरे एक वोट से क्या होगा, यहां भाजपा का वोटर, वोट डालने नहीं निकला, परिणाम रविदास मेहरोत्रा की जीत हुई। रविदास यहां के पुराने नेता हैं, साथ ही उनका वोटर निकल कर मतदान करने आया।

अगर लखनऊ मध्य से पूर्व प्रत्याशी रहे राजीव श्रीवास्तव को टिकट मिलता तो ये सीट भी भाजपा को जाती। लखनऊ मध्य सीट से 2017 के चुनाव में बसपा के उम्मीदवार रहे राजीव श्रीवास्तव को पच्चीस हजार वोट मिले थे, बाद में वो भाजपा में शामिल हो गए, उन्होंने और उनकी मजबूत टीम ने लोकसभा चुनाव में राजनाथ सिंह को पूरी मदद की ओर उनको भारी मतों से जिताने में अपनी अहम भूमिका निभाई, लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उच्च शिक्षा प्राप्त, राजीव श्रीवास्तव को किनारे कर दिया गया, जिनको भाजपा के एक बड़े नेता उचित सम्मान और पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी की बात कह कर लाए थे, मगर इस चुनाव में अंत तक उनको कोई भी जिम्मेदारी नहीं दी गई। 

लखनऊ पश्चिम में विधायक सुरेश श्रीवास्तव और उनकी पत्नी की कोरोना से मृत्यु की वजह से सहानुभूति उनके पुत्र सौरभ के लिए जबरदस्त थी। सौरभ पिछले कई वर्षों से मेहनत भी कर रहे थे। अंजनी श्रीवास्तव संघ से जुड़े भाजपा के कार्यकर्ता तो कई वर्षों से हैं, लेकिन जनता के बीच उनकी पहचान तुलनात्मक रूप से कम थी। एक बहुत बड़ा तबका जो सुरेश श्रीवास्तव के बेटे को टिकट न दिए जाने से हताश और नाराज़ हुआ, वो वोट डालने ही नही गया। परिणाम अंजनी की पराजय। विजेता समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अरमान खान की लम्बे समय से सक्रियता, कोरोना काल में हर जरूरतमंद की दिनरात मदद और लोगों से व्यक्तिगत सम्बन्ध उनकी जीत का मुख्य कारण बने।