आखिर क्यों मनाया जाता है होलिका का त्योहार। पढें..इसकी पौराणिक कथाएं- मान्यताएं। ,,✍️ज्योतिषाचार्य पं.हृदय रंजन शर्मा ।

हिन्दुस्तान वार्ता।

🌷होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से है। यह कितना पुराना है इसके विषय में ठीक जानकारी नहीं है लेकिन इसके विषय में इतिहास पुराण व साहित्य में अनेक कथाएँ मिलती है। इस कथाओं पर आधारित साहित्य और फ़िल्मों में अनेक दृष्टिकोणों से बहुत कुछ कहने के प्रयत्न किए गए हैं लेकिन हर कथा में एक समानता है कि असत्य पर सत्य की विजय और दुराचार पर सदाचार की विजय और विजय को उत्सव मनाने की बात कही गई है।

*🌸राधा और कृष्ण की कथा..

होली का त्योहार राधा और कृष्ण की पावन प्रेम कथा से भी जुडा हुआ है। वसंत के सुंदर मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है। मथुरा और वृन्दावन की होली राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबी हुई होती है। बरसाने और नंदगाँव की लठमार होली तो प्रसिद्ध है ही देश विदेश में श्रीकृष्ण के अन्य स्थलों पर भी होली की परंपरा है। यह भी माना गया है कि भक्ति में डूबे जिज्ञासुओं का रंग बाह्य रंगों से नहीं खेला जाता, रंग खेला जाता है भगवान्नाम का, रंग खेला जाता है सद्भावना बढ़ाने के लिए, रंग होता है प्रेम का, रंग होता है भाव का, भक्ति का, विश्वास का। होली उत्सव पर होली जलाई जाती है अंहकार की, अहम् की, वैर द्वेष की, ईर्ष्या मत्सर की, संशय की और पाया जाता है विशुद्ध प्रेम अपने आराध्य का, पाई जाती है कृपा अपने ठाकुर की।

*🍁शिव पार्वती और कामदेव की कथा..

शिव और पार्वती से संबंधित एक कथा के अनुसार हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आए। उन्होंने पुष्प बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। शिवजी को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी। 

उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया। फिर शिवजी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस कथा के आधार पर होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

 एक अन्य कथा के अनुसार कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति ने विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को जीवित करने की गुहार की।

 ईश्वर प्रसन्न हुए और उन्होने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। यह दिन होली का दिन होता है। आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रूप मे गाया जाता है और चंदन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने मे पीड़ा ना हो। साथ ही बाद मे कामदेव के जीवित होने की खुशी मे रंगो का त्योहार मनाया जाता है।

*🌺प्रह्लाद और होलिका की कथा..

होली का त्यौहार प्रह्लाद और होलिका की कथा से भी जुडा हुआ है। विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर समझ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया।

 वह चाहता था कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड़ दे, परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था। हिरण्यकश्यपु ने उसे बहुत सी प्राणांतक यातनाएँ दीं लेकिन वह हर बार बच निकला। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। 

अतः उसने होलिका को आदेश दिया के वह प्रह्लाद को लेकर आग में प्रवेश कर जाए जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाए। परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया। होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इस घटना की याद में लोग होलिका जलाते हैं और उसके अंत की खुशी में होली का पर्व मनाते हैं।

*🔥कंस और पूतना की कथा..

कंस ने मथुरा के राजा वसुदेव से उनका राज्य छीनकर अपने अधीन कर लिया स्वयं शासक बनकर आत्याचार करने लगा। एक भविष्यवाणी द्वारा उसे पता चला कि वसुदेव और देवकी का आठवाँ पुत्र उसके विनाश का कारण होगा। यह जानकर कंस व्याकुल हो उठा और उसने वसुदेव तथा देवकी को कारागार में डाल दिया।

 कारागार में जन्म लेने वाले देवकी के सात पुत्रों को कंस ने मौत के घाट उतार दिया। आठवें पुत्र के रूप में कृष्ण का जन्म हुआ और उनके प्रताप से कारागार के द्वार खुल गए। वसुदेव रातों रात कृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के घर पर रखकर उनकी नवजात कन्या को अपने साथ लेते आए।

 कंस ने जब इस कन्या को मारना चाहा तो वह अदृश्य हो गई और आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले तो गोकुल में जन्म ले चुका है। कंस यह सुनकर डर गया और उसने उस दिन गोकुल में जन्म लेने वाले हर शिशु की हत्या कर देने की योजना बनाई। इसके लिए उसने अपने आधीन काम करने वाली पूतना नामक राक्षसी का सहारा लिया। 

वह सुंदर रूप बना सकती थी और महिलाओं में आसानी से घुलमिल जाती थी। उसका कार्य स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था। अनेक शिशु उसका शिकार हुए लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए और उन्होंने पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था अतः पूतनावध की खुशी में होली मनाई जाने लगी।

*☀️राक्षसी ढुंढी की कथा ..

राजा पृथु के समय के समय में ढुंढी नामक एक कुटिल राक्षसी थी। वह अबोध बालकों को खा जाती थी। अनेक प्रकार के जप-तप से उसने बहुत से देवताओं को प्रसन्न कर के उसने वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र नहीं मार सकेगा, ना ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा। 

इस वरदान के बाद उसका अत्याचार बढ़ गया क्यों कि उसको मारना असंभव था। लेकिन शिव के एक शाप के कारण बच्चों की शरारतों से वह मुक्त नहीं थी। राजा पृथु ने ढुंढी के अत्याचारों से तंग आकर राजपुरोहित से उससे छुटकारा पाने का उपाय पूछा। पुरोहित ने कहा कि यदि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और न गर्मी सब बच्चे एक एक लकड़ी लेकर अपने घर से निकलें। 

उसे एक जगह पर रखें और घास-फूस रखकर जला दें। ऊँचे स्वर में तालियाँ बजाते हुए मंत्र पढ़ें और अग्नि की प्रदक्षिणा करें। ज़ोर ज़ोर से हँसें, गाएँ, चिल्लाएँ और शोर करें। तो राक्षसी मर जाएगी। पुरोहित की सलाह का पालन किया गया और जब ढुंढी इतने सारे बच्चों को देखकर अग्नि के समीप आई तो बच्चों ने एक समूह बनाकर नगाड़े बजाते हुए ढुंढी को घेरा, धूल और कीचड़ फेंकते हुए उसको शोरगुल करते हुए नगर के बाहर खदेड़ दिया। कहते हैं कि इसी परंपरा का पालन करते हुए आज भी होली पर बच्चे शोरगुल और गाना बजाना करते हैं।

 *🌻होलिका दहन और पूजन की विधि

प्रेम और सौहार्द का त्योहार होली रविवार और सोमवार को मनाया जाएगा। 

होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा की शुभ बेला में करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। ऐसी भी मान्यता है कि होलिका की अग्नि उसी व्यक्ति को जलानी चाहिए जो पुरोहित हो अथवा जिनके माता-पिता अब इस दुनिया से विदा हो चुके हों। वैसे इसमें क्षेत्रीय परंपराओं का अपना अलग-अलग मत और महत्व होता है। इसी दिन होली जलने के साथ होलाष्टक समाप्त हो जाएगा।होलिका दहन 17 मार्च को होगा, जबकि 18 मार्च को रंगों का त्योहार होली मनाई जाएगी।

🌷होलिका की पूजा उपले के बरकली (गुलरीयो) से..

होली के दिन होलिका की पूजा के लिए कई स्थानों में महिलाओं गाय के गोबर से छोटे-छोटे उपले बनाती हैं जिनमें बीच का स्थान खाली होता है इसे बरकली कहा जाता है। बरकली की सात मालाएं बनाकर होलिका की पूजा के समय होलिका को बरकली की माला पहनाया जाता है। कहते हैं कि इससे घर में बरकत आती है।

*🌺पूजा विधि:* होलिका दहन जिस स्थान पर करना है उसे गंगाजल से पहले शुद्ध कर लें। इसके बाद वहां सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास आदि रखें। इसके बाद पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बैठें। आप चाहें तो गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं भी बना सकते हैं। इसके साथ ही भगवान नरसिंह की पूजा करें। पूजा के समय एक लोटा जल, माला, चावल, रोली, गंध, मूंग, सात प्रकार के अनाज, फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल, होली पर बनने वाले पकवान व नारियल रखें। साथ में नई फसलें भी रखी जाती हैं। जैसे चने की बालियां और गेहूं की बालियां। कच्चे सूत को होलिका के चारों तरफ तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटें। उसके बाद सभी सामग्री होलिका दहन की अग्नि में अर्पित करें। ये मंत्र पढ़ें- अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः । अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम् ।। और पूजन के पश्च्यात अर्घ्य अवश्य दें।

*🌻राशि के अनुसार करें होलिका की पूजा-

🍁 मेष और वृश्चिक राशि के लोग गुड़ की आहुति दें। 

🍁 वृष राशि वाले चीनी की आहुति दें।

🍁 मिथुन और कन्या राशि के लोग कपूर की आहुति दें।

🍁 कर्क के लोग लोहबान की आहुति दें। 

🍁 सिंह राशि के लोग गुड़ की आहुति दें। 

🍁 तुला राशि वाले कपूर की आहुति दें। 

🍁 धनु और मीन के लोग जौ और चना की आहुति दें।

🍁 मकर व कुंभ वाले तिल को होलिका दहन में डालें।

*🔥राशि के अनुसार रंग खेलना।

🌸 ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक रंगों के त्योहार में अपनी राशि के अनुसार रंगों का इस्तेमाल करने से ग्रह-दोष से मुक्ति मिलती है।  हर राशि का एक स्वामी होता है, जिसे भाने वाले रंग से होली खेलकर आप अपनी राशि पर होली का शुभदायक प्रभाव डाल सकते हैं। 

*💥मेष राशि :* मेष राशि वालों के लिए लाल रंग से होली खेलना लाभकारी होगा। मेष राशि के स्वामी मंगल हैं और मंगल के शत्रु शनि माने जाते हैं। इसलिए मेष राशि वालों को होली खेलते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह काले और नीले रंग से दूर रहें।

*💥वृष राशि :* वृष राशि के स्वामी शुक्र हैं और शुक्र एक चमकीला ग्रह है। इसलिए वृष राशि वालों के लिए होली पर सफेद रंग का इस्तेमाल करना लाभदायक होगा। इसलिए वृष राशि वालों को सफेदा लगाने के बाद होली खेलनी चाहिए। 

*💥मिथुन राशि :* मिथुन राशि के स्वामी बुध माने जाते हैं। इसलिए बुध ग्रह वालों को हरे रंग से होली खेलनी चाहिए। होली के दिन ज्यादा से ज्यादा हरे रंग का प्रयोग करना भी लाभकारी होगा। इससे होली का पर्व उनके लिए शुभकारी होगा।

*💥कर्क राशि :* कर्क राशि वालों को होली खेलते समय पानी का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए। कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा हैं, जो जल के प्रतीक भी माने जाते हैं। इसलिए कर्क राशि वालों को पानी से होली खेलने से लाभ मिलेगा।

*💥सिंह राशि :* सिंह राशि के स्वामी सूर्य हैं और सूर्य की ऊर्जा प्राप्त करने के लिए सिंह राशि वालों को लाल, गुलाबी, नारंगी जैसे रंगों से होली खेलनी चाहिए। जबकि काले, नीले रंग से सिंह राशि वालों को दूर रहना चाहिए।

*💥कन्या राशि :* कन्या राशि के स्वामी भी बुध हैं। कन्या राशि वालों के लिए भी हरे रंग से होली खेलना लाभकारी होगा। कन्या राशि वाले हरे रंग से होली खेलकर अपने समय को सुख देने वाला बना सकते हैं।

*तुला राशि :* तुला राशि के स्वामी शुक्र हैं। तुला राशि वालों को सफेदा का इस्तेमाल करने के बाद होली खेलना चाहिए। तुला राशि वालों के लिए टेशू के फूल से रंग बनाकर होली खेलना लाभकारी होगा।

*💥वृश्चिक राशि :* वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल हैं। मंगल राशि वालों के लिए लाल रंग से होली खेलना लाभकारी होगा। लाल रंग से होली खेलने से वृश्चिक राशि वाले ऊर्जावान होंगे। 

*💥धनु राशि :* धनु राशि के स्वामी गुरु बृहस्पति हैं। धनु राशि वालों के लिए पीले रंग से होली खेलना लाभकारी होगा। साथ ही धनु राशि वाले प्राकृतिक रंगों जैसे कि हल्दी या केसर के रंग से होली खेलें, तो उन्हें विशेष लाभ मिलेगा।

*💥मकर राशि :* मकर राशि के स्वामी शनि हैं। शनिदेव को खुश करने के लिए मकर राशि वालों को काले और नीले रंग से होली खेलना लाभकारी होगा। काले और नीले रंग से होली खेलने से मकर राशि वालों पर शनि देव प्रसन्न होंगे।

*💥कुंभ राशि :* कुंभ राशि के स्वामी शनिदेव हैं। कुंभ राशि वालों को नीले और काले रंग से होली खेलना लाभकारी होगा। काले, नीले रंग से होली खेलने से उनका जीवन सुखमय व्यतीत होगा। 

*💥मीन राशि :* मीन राशि के स्वामी बृहस्पति हैं। मीन राशि वालों को प्राकृतिक रंगों के साथ पीले रंग से होली खेलना लाभकारी होगा। इसके साथ ही उनके ऊपर गुरु बृहस्पति की कृपा बनी रहेगी।

*🌟होलिका दहन पूजा पाठ एवं गुलालो के प्रभाव होली का स्थापना का शुभ मुहूर्त एवं होलिका दहन का शुभ मुहूर्त*

*🔥  इस बार होली पर 17 मार्च 2022 को सूर्य पुत्र शनि देव अपनी स्वयं की राशि मकर मै उच्च के मंगल और दैत्य गुरु शुक्र के साथ स्थित रहेगें, सूर्य देव  मीन राशि मे रहेंगे, बुद्ध और देव गुरु वृहस्पति कुम्भ राशि मै रहेंगे इन सभी संयोगो के चलते राजनीतिक क्षेत्र में उथल-पुथल के साथ ही किसानों के लिए भी हानिकारक अंगारक योग बन रहा है जिससे खड़ी फसलों को नुकसान की संभावना है और इससें  किसानो को नुकसानहो सकताहै  देव गुरु बृहस्पति और बुद्ध का संयोग कुम्भ राशि मै है जिससे वर्ष भर खाद्य पदार्थों में तेजी का रुख रहेगा साथ ही इस वर्ष भी शिक्षा क्षेत्र में विद्या अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए पूरा वर्ष दिक्कत और परेशानियों कारक रहेगा फैन्सी कार्य ,बिल्डिंग मटेरियल, फलों ,सूखे मेवे,सोने चांदी और विलासिता की वस्तुओं में तेजी कारक स्थितियों को बनाए रखेगा इस दिन चंद्रमा कन्या राशि में स्थित रहेंगे मकर राशि में  मंगल. शुक्र और शनि एक साथ  है जो किसी भी शुभ कार्य हेतु अत्यंत शुभ फलदायक माना जाएगा   इस बार होली पर 17 मार्च 2022 दिन गुरुवार पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र"शूलयोग ववकरण होगा जो सभी राशियों के जातकों को "यश, कीर्ति ,विजय"  प्रदान करने वाला योग माना जाएगा दूसरी तरफ गुरुवार को "पूर्णिमा तिथि" होने के कारण चंद्रमा का धरती पर प्रभाव अधिक रहेगा क्योंकि इस बार शुभ तिथि नक्षत्र और ग्रहों की विशेष स्थिति होने के कारण होलिका दहन पर रोग शोक और दोष का नाश अवश्य ही होगा हर प्रकार से शत्रुओं पर विजय भी प्राप्त होगी  ग्रहों के शुभ संयोग में होली आने से यह शुभ फल देने वाली मानी जाएगी इस बार होलिका दहन के समय "भद्राकाल (भद्रा)" नहीं होगा, फाल्गुन माह की पूर्णिमा यानी होलिका दहन के दिन भद्रा काल (भद्रा )सुबह सूर्योदय से प्रारंभ होकर दोपहर 01:39 से प्रारम्भ होकर 18मार्च शुक्रवार की दोपहर 12:47तक समाप्त हो जाएगी, इसी दिन घरों ,गली-मोहल्लों व चौराहों पर माता होलिका की स्थापना की जाती है यह त्योहार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ही पूरे देश में मनाया जाता है इस दिन भक्त प्रहलाद की बुआ होलिका को जलाया गया था ,उसी दिन से यह त्योहार पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है होली का प्यार और उमंग का महापर्व है इस त्यौहार पर खेले जाने वाले रंग इसकी खुशी का प्रतीक है आपसी प्रेम भाव से बिना किसी भेदभाव के एक दूसरे से गले मिलते हुए हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति ही हमारे सनातन धर्म की महान विशेषता है होली भारत में मनाई जाने वाला सबसे शानदार त्योहारों में से एक है दीपावली की तरह इस त्यौहार को भी अच्छाई की बुराई पर जीत का त्यौहार माना जाता है हिंदुओं के लिए होली का पौराणिक महत्व है*

*🌸होली का स्थापना एवं पूजन हेतु शुभ मुहूर्त- विश्व प्रसिद्ध चौघड़िया मुहूर्त अनुसार प्रातः 06:31 से दोपहर 08:05मिनट तक शुभ का बहुत ही बेहतरीन चौघड़िया मुहूर्त उपलब्ध रहेंगा इसके बाद सुबह 11:01से दोपहर 03:31 तक बेहद शुभ समय माना जाएगा जिनमें  चौराहे या गली मोहल्लों की होली का स्थापना हेतु एवं पूजा पाठ हेतु अति सुंदर महूर्त कहे जा सकते हैं इसमे होलिका कीस्थापना करना एवं पूजा पाठ करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होंगी इसमे घरो मे रखी जाने वाली होलिका का भी शुभ  समय शुभ माना जाएगा और  माताओ बहनो एवं घरेलू लोगों के लिए पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय दोपहर 01:39 से 03:31कहा जा सकता है इस समय "चर, लाभ,अमृत"के तीन विश्व प्रसिद्ध चौघड़िया मुहूर्त उपलब्ध रहेंगे*

*🌻होलिका दहन का शुभ समय एवं शुभ मुहूर्त- होलिका दहन के लिए सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त साँय 06:43मिनट से रात 10:15 बजे तक उपलब्ध रहेंगे इसी समय में "शुभ,अमृत एंव चर"की चौघड़िया मुहूर्त चल रही होंगी जो होलिका दहन के लिए सर्वोत्तम कही जा सकती हैं इस समय में सामूहिक चौराहों व गली-मोहल्लों की होलिका दहन करना शुभ रहेगा, इस सबके अलावा रात 04:20सेप्रात:06:20तक" शुभ, अमृत"के दोचौघड़िया मुहूर्त उपलब्ध होंगे जो घरों की होलिका दहन के लिए सर्वश्रेष्ठ कहे जा सकते हैं*

*🏵पूजन विधि - इस दिन व्रत रखतेहैं दोपहर को हनुमान जी की पूजा होती है जैसे दीपावली वाले दिन की जाती है ,दोपहर को होलीका को पूजने जाती हैं एक थाली में 1 घंटीपानी ,कच्चा सूत, हल्दी ,चावल थोड़ा सा आटा गुड,दाल,घी 8 पूरी हलवा पिचकऊआ(छोटी-छोटी गुजिया )दीपक , गुलरियोकी माला ,1.रुपया ,नमक की डेली होली पूजन करके आते हैं फिर भोजन करते हैं ,फिर अपने घर के आंगन में होलिका की स्थापना करते हैं सर्वप्रथम आटे व गुलाल का चौक बनाकर उसके ऊपर गुलरियोकी माला लगाते हैं मालाये बड़ी से छोटी क्रमशा होती हैं परिवार के लोगों के हिसाब से जोकी बालियों की गड्डियां बनाते हैं चौराहे की सामूहिक होलिका पूजकरआतेहै, उसी की आग से घरो कि होलिका जलाते हैं पूजन करते समय होलिका माता की परिक्रमा भीलगाते हैं जो की बालियां भी भूनतेहै, जिन घरों में पुत्र की शादी हुई हो या पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई उन घरों में मंगल गीत गाए जाते हैं बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं जो की बालियां देकर गले मिलकर राम-राम कहते हैं ,यह त्योहार हर प्रकार केजाति बंधन, ऊंची नीची को भूल कर एक दूसरे को गले मिलकर मौज-मस्ती का होता है जो पूरे भारतवर्ष में इसी प्रकार से मनाया जाता है*

*♦गुलालो का प्रभाव

*💥- लाल गुलाल से ठाकुर जी का तिलक करने से क्रोध नहीं आएगा घर में खुशहाली बनेगी*

*💥- पीले रंग के गुलाब से ज्ञान बुद्धि ,विद्या ,विवेक की प्राप्ति होती है पूरे वर्ष बच्चों की पढ़ाई लिखाई में उन्नति होगी*

*🍁- गुलाबी रंग के गुलाल से समाज में मान प्रतिष्ठा ,प्रेम संबंध मधुर होते हैं एवं समाज में रुतबा बढ़ता है*

*🍁- सफेद चंदन या केसर के तिलक लगाने से सुख-समृद्धि या लक्ष्मी की प्राप्ति पूरे वर्ष होती है*

*🍁- हरे रंग का गुलाल लगाने से उन्नति, लाभ बढ़ेगाव रोगों मे कमी आयेगी*

*🍁- सात रंगों के गुलाल से सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है वह पूरे परिवार में हर प्रकार की खुशहाली बनी रहती है*

*🌺राशियों के अनुसार गुलाल रंगोव इत्र का प्रयोग*

*💥- मेष और वृश्चिक - लाल, केसरिया रंग गुलाल हिना, केवड़ा का इत्र या सेंट*

*💥- वृषभऔर तुला- सफेदारंग, सफेद चंदन ,केसर ,चंपा, चमेली का इत्र यासेंट*

*💥- मिथुन और कन्या- हरा रंग, गुलाल खसका इत्र या सेंट*

*💥- कर्क और सिंह- सफेद,लाल, गुलाबी रंग या गुलाल, चंदन का इत्र बेला का इत्र ,सेंट*

*💥- धनु और मीन -पीला रंग गुलाल पीला चंदन गुलाल चमेली  ,हिना का इत्र या सेंट*

*💥- मकर और कुंभ -नीला काला बैंगनी रंग या गुलाल काला भूत सेंट ,कोबरा ,चंदन का इत्र या सेंट*

*🌹राशियों पर शुभ और अशुभ प्रभाव क्या होंगे दोनों दिन*

*🔥शुभ समय* *मेष ,मिथुन ,कर्क ,सिहं,तुला पर विशेष शुभ समय रहेगा  इन लोगों को हर प्रकार के लाभ और उन्नति की उम्मीद रहेगी*

*🏵अशुभ समय वृषभ, वृश्चिक,धनु ,मकर,और कुम्भ राशि वाले लोगों को नशाखोरी, जुआ, सट्टे बाजी व तेज वाहन चलाने से अति सतर्कता बरतनी होगी क्योंकि इन राशि वालों के लिए यह दोनों दिन ज्यादा शुभ नहीं कहे जा सकते हैं*

*🌞 होलिका दहन की अग्नि से आने वाले साल का भविष्य कैसे जाना जाता है*

*🔥फाल्गुन शुक्ल पक्ष की प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा को होलका दहन किया जाता है क्योंकि इस वर्ष फाल्गुन शुक्ल पक्ष 14 दिन गुरुवार दिनांक 17 मार्च 2022 को चतुर्दशी तिथि के दिन ही समाप्त हो जाएगी एवं पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो जाएगी इसी दिन होलिका का दहन किया जाना शुभ माना जाएगा भद्रा में होलिका दहन करना वर्जित माना गया है परंतु शास्त्रों में यह लिखा है कि यदि भद्रा निशीथ काल के बाद तक रहे तो ऐसी स्थिति में भद्रा का मुंह छोड़कर निशीथ काल के पहले ही होलिका का दहन किया जाना उचित माना जाता है इस वर्ष भद्रा निशीथ काल के बाद तक है एवं भद्रा का मुहँ दिन में ही निकल जाएगा इससे प्रदोष काल में या उसके बाद ही होलिका का दहन किया जाना शास्त्रोक्त अति उत्तम माना जाएगा*

*🌟होली का पर्व( होलिका दहन ) रंगवाली होली से 1 सॉय पहले होलिका दहन किया जाता है ,मान्यता है कि इस दौरान भविष्य का अंदाजालग जाता है होली को 2 दिन का त्योहार माना जाता है रंग खेलने से 1 सॉयपहले होलिका दहन करने की परंपरा है इसकी कथा भक्त प्रहलाद से जुड़ी है इस साल 2022 में होलिका दहन 17 मार्च 2022 की शाम को और घरों वाली होलिका दहन रात्रि6:43से22:15तक इसके बाद, रात्रि/प्रातः 04:20से प्रातः06:20 तक होगाअतः होलिका दहन के समय सभी लोग एक जगह आकर आग में आहुति देते हैं होली का में कच्चे आम ,नारियल, सप्तधान्य ,चीनी के बने खिलौने ,नई फसल का कुछ भाग गेहूं ,चना और मसूर आदि की आहुति दी जाती है साथ ही रोग  दोषो से निवृत्ति, सभी प्रकार  सेसुख- समृद्धि बनी रहेऔरलाभ उन्नति की कामना भी की जाती है हिंदू पंचांग के अनुसार यह वर्ष का अंतिम प्रमुख त्योहार है जो आने वाले साल की सूचना भी देता है इसलिए ज्योतिष शास्त्र में भी होलिका दहन का बड़ा महत्व है यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा को आता है मान्यता है किहोलिका की अग्नि से आने वाले  साल का भविष्य भी जाना जाता है इसका अंदाजा आसानी से होलिका दहन की अग्नि से लगाया जा सकता है* *🏵 शास्त्रों में कहा गया है कि होलिका दहन के समय हवा पूर्व दिशा से चले यानी पुरवइया चले तो यह बहुत ही अच्छा शुभ शगुन होता है पूर्व की दशा को देवी देवताओं की दशा कहा गया है माना जाता है इस साल भर खुशहाली भरा माहौल रहता है राजा प्रजा सभी को पूरे साल खुशहाली उन्नति रहती है ।                             

*🏵 अगर होलिका के समय दक्षिण दिशा की तरफ हवा चले तो अपशगुन नेस्ट सूचक मानी जाती है ऐसी मान्यता है कि इससेफसलों को नुकसान होता है गर्मीतेज पड़ती है वर्षा कम होती है महंगाई की मार पड़ी रहती है और राज्यकी सत्ता भंग होने के चांस बन जाते हैं जनता में असंतोष बढ़ जाता है , होलिका दहन के समय उत्तर की ओर से हवा चलने लगे।

 *🔥 यह बहुत ही शुभ माना जाता है उत्तर दिशा धन के स्वामी कुबेर की दिशा है इस दिशा को धन की दिशा भी कहते हैं माना जाता है कि इससे पूरे साल आर्थिक क्षेत्र में उन्नति बढ़ेगी धन वैभव सुख समृद्धि रहेगी।                  

*🏵 होलिका दहन के समय अग्नि का धुआं सीधा आकाश की ओर जाने लगे तो यह बदलाव का सूचक है यह संकेत है कि जिस व्यक्ति और शासक का वर्चस्व समाज घर पर और राजनीति में है उसकी सत्ता जाने वाली है नई सत्ता और नई सरकार आने वाली है।                                                  *🏵 पश्चिम दिशा से होलिका दहन के समय हवा चलने लगे तो यह भी अच्छा शगुन नहीं होता माना जाता है कि इसकी वजह से कृषि के क्षेत्र में खलिहान के क्षेत्र में बहुत हानि होती है उद्योग धंधे चौपट हो जाती हैं बाजारों में भुखमरी फैलने लगती है।

जय माता दी...🚩