विश्व पृथ्वी दिवस पर एमिटी विश्वविद्यालय में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पर वेबिनार का आयोजन।

 




हिन्दुस्तान वार्ता।

नोयडा:एमिटी ग्लोबल वार्मिंग क्लाइमेंट चेंज क्लसटर द्वारा विश्व पृथ्वी दिवस पर छात्रों को ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के क्षेत्र में हो रही प्रगति की जानकारी प्रदान करने के लिए ‘‘ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए स्थायी प्रणाली’’ विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया।

 इस वेबिनार में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के एडिशनल डायरेक्टर जनरल डा एस डी अत्री, सीएसआईआर - एनईईआरआई नागपुर की विज्ञान सचिव और प्रिसिंपल टेक्नीकल अधिकारी डा रीता धोडपकर, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के न्यूमेरिकल वेदर प्रिडिक्शन डिविजन के प्रमुख और वैज्ञानिक डा डी आर पटनायक, इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ सांइस के जियोलॉजी प्रोफेसर डा आर भास्कर, कुरक्षेत्र विश्वविद्यालय के इंस्टीटयूट ऑफ एनवांयरमेंटल स्टडीज की निदेशक प्रो स्मिता चौधरी, एमडी विश्वविद्यालय रोहतक के एनवांयरमेंटल साइंस विभाग की प्रोफेसेर (श्रीमती) राजेश धनकर ने अपने विचार रखे। इस वेबिनार मेें एमिटी लॉ स्कूल के चेयरमैन डा डी के बंद्योपाध्याय और गु्रप एडिशनल प्रो वाइस चांसलर प्रो तनु जिंदल ने अतिथियों का स्वागत किया। 

वेबिनार में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के एडिशनल डायरेक्टर जनरल डा एस डी अत्री ने संबोधित करते हुए कहा कि सन 1979 में प्रथम विश्व जलवायु सम्मेलन का आयोजन किया गया और उसी समय से जलवायु संरक्षण के वैश्विक प्रयास किये जा रहे है। 

कार्बनडायआक्साइड, मिथेन और नाइट्रस आक्ससाइड मुख्य ग्रीन हाउस गैसेस है। उन्होनें कहा कि तापमान की बढ़त की हर अंश मायने रखती है। सतत विकास लक्ष्यों संख्या 1, 2, 3, 7, 12, 13, 14, और 15 सभी जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिगं से जुड़े है। डा अत्री ने कहा कि तकनीकी हस्तक्षेप जैसे उर्जा दक्षता में सुधार, नवीनकरणीय उर्जा का उपयोग, परमाणु उर्जा का उपयोग, कार्बन कैप्चर स्टोरेज और आर्थिक कारकों का उपयोग करना होगा। 

उन्होनें कहा कि हरित तकनीकी का उपयोग किस प्रकार हो, किस स्तर पर हो, इलेक्ट्रीक पावर व्हेकिल नीति, सौर पैनेल के लिए स्थान, क्षमता निर्माण कार्यक्रम, लोगो को हरित उर्जा के उपयोग के लिए प्रोत्साहित करना आदि इस क्षेत्र की मुख्य चुनौतियां है।

सीएसआईआर - एनईईआरआई नागपुर की विज्ञान सचिव और प्रिसिंपल टेक्नीकल अधिकारी डा रीता धोडपकर ने स्थायी प्लास्टिक अपशिष्ट पर अपने विचारों को साझा करते हुए कहा प्लास्टिक, कम वजन, कम लागत और बहुउपयोगी वस्तु है जिसका उपयोग कई क्षेत्रों मे किया जा रहा है इसका पुनचर्क्रण करके उपयोगी उत्पाद बना कर अर्थव्यवस्था को विकसित किया जा सकता है। भारत में महाराष्ट्र, तमिलनाडू, गुजरात, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक सबसे अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न करते है। भारत मेें पैकजिंग उद्योग, इंन्फ्रास्ट्रक्चर, कृषि और अन्य उभरते क्षेत्र जैसे ऑटोमोटिव मे ंइनकी मांग ज्यादा है। डा धोडपरकर ने कहा कि वैश्विक स्तर पर 80 प्रतिशत समुद्री प्लािस्टक प्रदूषण भूमि स्त्रोत से आता है। उन्होनें कहा कि प्लास्टि को लिनियर इकोनॉमी की बजाय सरकुलर इकोनॉमी का हिस्सा बनाना होगा।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के के न्यूमेरिकल वेदर प्रिडिक्शन डिविजन के प्रमुख और वैज्ञानिक डा डी आर पटनायक ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग ने वर्षा गतिविधि को भी प्रभावित किया है। ग्लोबल वार्मिंग से तापमान में वृद्धि होती है जिससे वाष्पीकरण बढ़ता है और वातावरण में नमी की मात्रा बढ़ती है। इससे छोटे पैमाने पर संवहनी प्रणाली में वृद्धि होती है और कम दबाव के क्षेत्र बनते है और आंधी आती है। डा पटनायक ने लघु रेजं फोरकास्ट मॉडल, आईएमडी आपरेशनल एक्सनडेड, 2021 साउथवेस्ट मानसून सिज़न, हीट वेव और कोल्ड वेव आदि के बारे में भी बताया। 

एमिटी लॉ स्कूल के चेयरमैन डा डी के बंद्योपाध्याय ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि वर्तमान में आज सारा विश्व जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से ग्रस्त है जिससे निपटने के लिए सभी को साझा प्रयास करना होगा। एमिटी के वैज्ञानिकों द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कई शोध एंव प्रोजेक्टों का संचालन किया जा रहा है और इस प्रकार के कार्यक्रमों द्वारा हम छात्रों को भी शोध के लिए प्रोत्साहित करते है।

ग्रुप एडिशनल प्रो. वाइस चांसलर प्रो.तनु जिंदल ने कहा कि स्थायी विकास का मुख्य उददेश्य आर्थिक विकास, पर्यावरणीय सरंक्षण और समाजिक समावेश है। पर्यावरण का स्थायी विकास मनुष्य की आवश्यक जरूरत को पूर्ण करता है, जलवायु परिवर्तन का प्रबंधन करता है, कृषि आवश्यकताओं को पूर्ण करता है, वित्तीय स्थायीत्व लाता है और जैवविवधता को बरकरार रखता है। उन्हानें कहा हम कार्बन उत्सर्जन को कम करके, लो कार्बन डाइट, अपशिष्ट को कम करके और समुद्र का संरक्षण जलवायु परिवर्तन से निपट सकते है। इस अवसर पर उन्होंने एमिटी विश्वविद्यालय द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किये जा रहे शोध कार्यो की जानकारी भी प्रदान की ।

इस अवसर पर इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ सांइस के जियोलॉजी प्रोफेसर डा आर भास्कर, कुरक्षेत्र विश्वविद्यालय के इंस्टीटयूट ऑफ एनवांयरमेंटल स्टडीज की निदेशक प्रो स्मिता चौधरी, एमडी विश्वविद्यालय रोहतक के एनवांयरमेंटल साइंस विभाग के प्रोफेसेर (श्रीमती) राजेश धनकर ने अपने विचार साझा किये।