श्रीकृष्ण लीला महोत्सव: भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह पर गूंजे मंगलगान।

 


हिन्दुस्तान वार्ता।धर्मेन्द्र कु.चौधरी

आगराः श्रीकृष्ण लीला के तत्वावधान में बुधवार को भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह का आयोजन किया गया। जिसमें श्रद्धालुओं ने जमकर मंगलगान गाए और जयघोष किए।

आज की लीला का शुभारंभ पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामजीलाल सुमन ने दीप जला कर व स्वरूपों की आरती उतार कर किया।

 सुमन ने कहा कि श्रीकृष्ण लीला कमेटी द्वारा प्राचीन परंपरा को जीवंत किया जा रहा है, जो बहुत ही सराहनीय है। इससे नई पीढ़ी को संस्कार दिए जा रहे हैं। सुमन का स्वागत कमेटी के महामंत्री विजय रोहतगी ने किया।

श्रीकृष्ण लीला में दिखाया गया कि विदर्भ देश में भीष्मक नाम के राजा राज्य करते थे। कुण्डिनपुर उनकी राजधानी थी। उनकी पुत्री रुक्मिणी भगवान श्रीकृष्ण के गुणों और उनकी सुंदरता पर मुग्ध थी और उसने मन ही मन श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया था। भगवान श्रीकृष्ण को भी पता लग गया था कि रुक्मिणी परम रूपवती और सुलक्षणा भी है।

भीष्मक का बड़ा पुत्र रुक्मी, भगवान श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था। वह बहन रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से कराना चाहता था, क्योंकि शिशुपाल भी श्रीकृष्ण से द्वेष रखता था। भीष्मक ने रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल के साथ ही करने का निश्चय किया और तिथि तय कर दी।

रुक्मिणी ने यह सूचना श्रीकृष्ण के पास भेज दी। उन्हें बता दिया कि उसके पिता उसकी इच्छा के विरुद्ध शिशुपाल के साथ उसका विवाह करना चाहते हैं। विवाह के दिन मैं गिरिजा माता के दर्शन करने को जाऊंगी। मंदिर में पहुंचकर मुझे पत्नी रूप में स्वीकार करें।यदि आप नहीं पहुंचेंगे तो मैं अपने प्राणों का परित्याग कर दूंगी।

रुक्मिणी का संदेश पाकर भगवान श्रीकृष्ण रथ पर सवार होकर शीघ्र ही कुण्डिनपुर की ओर चल दिए। बलराम भी यादवों की सेना के साथ कुण्डिनपर के लिए रवाना हो गए।

शिशुपाल निश्चित तिथि पर बारात लेकर कुण्डिनपुर जा पहुंचा। वहीं दूसरी ओर रुक्मिणी सज-धजकर गिरिजा देवी के मंदिर की ओर चल पड़ी।पूजन करने के बाद रुक्मिणी जब मंदिर से बाहर निकल कर अपने रथ पर बैठना ही चाहती थी कि श्रीकृष्ण ने उनका हाथ पकड़ लिया और उन्हें खींचकर अपने रथ पर बैठा लिया,और तीव्र गति से द्वारका की ओर चल पड़े।

    शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का पीछा किया। बलराम और यदुवंशियों ने शिशुपाल को रोक लिया। भयंकर युद्ध में बलराम और यदुवंशियों ने शिशुपाल की सेना को नष्ट कर दिया। फलतः शिशुपाल निराश होकर कुण्डिनपुर से चले गए।

रुक्मी ने श्रीकृष्ण का पीछा किया। रुक्मी और श्रीकृष्ण का घनघोर युद्ध हुआ। श्रीकृष्ण ने उसे युद्ध में हराकर अपने रथ से बांध दिया, किंतु बलराम ने उसे छुड़ा लिया। रुक्मी अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार पुनः लौटकर कुण्डिनपुर नहीं गया। 

वह एक नया नगर बसाकर वहीं रहने लगा। कहते हैं, रुक्मी के वंशज आज भी उस नगर में रहते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को द्वारका ले जाकर उनके साथ विधिवत विवाह किया।

विशेष- कृष्ण की बरात,बल्केश्वर में बल्देव धर्मशाला से निकाली गई। उसके बाद गौशाला में लीला का मंचन किया और भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह हुआ। जिसमें सभी ने खुशियां बिखेरीं।

आयोजन में अध्यक्ष मनीष अग्रवाल, कार्यकारी अध्यक्ष मदन गर्ग, महामंत्री विजय रोहतगी, कोषाध्यक्ष संजय गर्ग, लीला संयोजक के के अग्रवाल, अनूप गोयल,पीके मोदी,प्रवक्ता-धर्मेन्द्र कु.चौधरी, प्रभात रोहतगी,विष्णु अग्रवाल, निशा सिंघल,राजेश अग्रवाल,मनोज बंसल, शेखर गोयल,आशीष रोहतगी, महेश जौहरी,पवन अग्रवाल, डॉ एसपी सिंह,अमित अग्रवाल(देवी भक्त) के सी अग्रवाल,कैलाश खन्ना, विनीत सिंघल,आदर्श नंदन गुप्ता,जवाहरलाल, ब्रिजेश अग्रवाल आदि शामिल रहे। 

- प्रातः गौशाला स्थित मंदिर में हवन किया गया। आयोजन के निर्विघ्न होने के लिए परमात्मा के प्रति आभार व्यक्त किया और आहुतियां दी गईं। विधिवत हवन-पूजन में पंडित कोयल शर्मा की प्रमुख भूमिका रही।

छाया-विक्की गोयल(काव्या स्टूडियो)

भवदीय

मनीष अग्रवाल, अध्यक्ष श्रीकृष्ण लीला कमेटी,आगरा 

मोबाइल नंबर 94121 54321