श्याम स्मृति वर्तिका ट्रस्ट ने वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती रमा वर्मा 'श्याम' की साहित्यिक कृति 'जीवन के रंग, लोकगीतों के संग' का किया विमोचन।


अरे तेरे दो नैना कजरारे..।

मुरैना के सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. देवेंद्र तोमर को मिला स्व.श्यामलाल वर्मा स्मृति प्रथम साहित्य सम्मान।

यह पुस्तक अपनी संस्कृति और इतिहास को पुनर्जीवित करने का अनूठा प्रयास है: शैलबाला अग्रवाल।

लोकगीतों की समृद्ध परंपरा में रमा वर्मा जी का योगदान अप्रतिम: डॉ.सुषमा सिंह।

हिन्दुस्तान वार्ता।

आगरा। श्याम स्मृति वर्तिका ट्रस्ट द्वारा मंगलवार को यूथ हॉस्टल में वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती रमा वर्मा 'श्याम' की साहित्यिक कृति 'जीवन के रंग, लोकगीतों के संग' का विमोचन एवं श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया गया।

  समारोह अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र मिलन, मुख्य अतिथि जाने-माने गीतकार डॉ. देवेंद्र तोमर (मुरैना), विशिष्ट अतिथि श्रीमती कमलेश त्रिवेदी फर्रुखाबादी, श्रीमती शैलबाला अग्रवाल, सुशील सरित और समारोह-संचालक अशोक अश्रु ने पुस्तक का विमोचन कर रमा वर्मा जी द्वारा लोक संस्कृति को सहेजने के रचना-कर्म की मुक्त कंठ से सराहना की। 

  सभी ने रमा वर्मा जी की लेखनी के प्रेरणा स्रोत उनके पति रिटायर्ड जेलर स्वर्गीय श्री श्याम लाल वर्मा जी की तस्वीर पर माल्यार्पण कर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी। 

  रमा वर्मा जी ने अपने जीवनसाथी को इन पंक्तियों से याद किया- " जिंदगी तुझसे है गिला भी नहीं। मिलने जुलने का सिलसिला भी नहीं। तुझको लिख लिख कर मुस्कुराती हूं। इससे बेहतर कोई दवा भी नहीं.."

डॉ.देवेंद्र तोमर को मिला सम्मान।

 समारोह में श्याम स्मृति वर्तिका ट्रस्ट द्वारा 2100 रुपए नकद राशि का स्व. श्री श्याम लाल वर्मा स्मृति साहित्य सम्मान मुरैना के सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. देवेंद्र तोमर को प्रदान किया गया।    

लोकोपयोगी साहित्य का सृजन स्तुत्य।

लोकार्पित कृति के लिए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुषमा सिंह की समीक्षा को उनकी अनुपस्थिति में यशोधरा यादव 'यशो' ने प्रस्तुत करते हुए कहा कि सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा के लिए लोक साहित्य और लोक नृत्य के अस्तित्व की लड़ाई हम सबको लड़नी होगी। इस पुस्तक के द्वारा रमा जी ने इसी अभियान का परचम लहराया है। उन्होंने लोकगीतों को बचाए रखने के अपने संकल्प और महिलाओं की मांग को पूरा किया है। लोकोपयोगी साहित्य का यह सृजन स्तुत्य है। लोकगीतों की समृद्ध परंपरा में रमा जी का योगदान अप्रतिम है।

लोक साहित्य है सभ्यता और संस्कृति का दिग्दर्शन।

समारोह की विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती शैलबाला अग्रवाल ने लोकार्पित कृति पर विचार रखते हुए कहा कि लोक साहित्य रीति रिवाज और परंपराओं को सहेजने के साथ हमारी सभ्यता और संस्कृति का दिग्दर्शन भी कराते हैं। यह पुस्तक अपनी संस्कृति के प्रति रमाजी की अगाध आस्था का द्योतक ही नहीं, अपनी संस्कृति और इतिहास को पुनर्जीवित करने का अनूठा प्रयास भी है।

लोकगीतों की रसधार ने किया भाव विभोर।

समारोह में सुशील सरित, रमा रश्मि, डॉ. भावना और रमा वर्मा 'श्याम' द्वारा लोकार्पित पुस्तक में से चुनिंदा लोकगीतों की रसधार ने सभी को भावविभोर कर दिया। "अरे तेरे दो नैना कजरारे, भौजी कर गए वारे न्यारे" और "जिया लैगौ उधारी चतुर बलमा, प्रेम की कर सवारी चतुर बलमा" पर सब झूम उठे।

इन्होंने भी की सहभागिता।

अतिथियों का स्वागत रमा वर्मा, गौरव गुंजन, अंशुमान और विवेक यादव ने किया। 

  सुशील सरित ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। अशोक अश्रु ने कार्यक्रम का संचालन किया। गौरव गुंजन ने सभी का आभार व्यक्त किया। कुमार ललित मीडिया समन्वयक रहे।

  इस दौरान नीलम भटनागर, त्रिमोहन तरल, सुरेंद्र वर्मा'सजग', राज फौजदार, साधना वैद, मधु भारद्वाज, शशि गुप्ता, रमेश पंडित, वेद त्रिपाठी, रेखा कक्कड़, नूतन अग्रवाल'ज्योति', विनय बंसल, भरत दीप माथुर, रेखा गौतम, विजया तिवारी, प्रभा गुप्ता, पूनम तिवारी, माया अशोक, इंजीनियर सुरेंद्र बंसल और संगीता बंसल सहित कई गणमान्य साहित्यकार मौजूद रहीं।