आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी का व्यापार पर प्रभाव:आमोद सोलंकी,कंपनी सेक्रेटरी।



हिन्दुस्तान वार्ता। 

रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो रेट बढ़ाए जाने से व्यापार,आम व्यक्ति की वित्तीय स्थिति  पर क्या प्रभाव पड़ता है। जरा गौर करें।जब रिज़र्व बैंक रेपो रेट बढ़ाते हैं, तब बैंको को महंगा लोन मिलता है,और बैंक भी अपने लॉस की भरपाई व्यापारियों और लोगो को महंगे लोन देकर करते हैं। जिससे बैंको को ज्यादा इनकम होती है। 

महंगे ब्याज दर से सामान्य व्यापारी की पूँजी की लागत बढ़ जाती है,क्योंकि उन्हें ज्यादा ब्याज पर बैंको से कर्ज मिलता है।  जिन व्यवसाइयों के लोन पहले से चल रहे होते हैं,उन्हें पिछली वर्ष की अपेक्षा ज्यादा क़िस्त देनी पड़ती है। 

होम लोन भी महंगा हो जाता है। सबसे ज्यादा नुकसान नए स्टार्टअप्स को होता है,क्योंकि अभी ऐसे नए व्यवसाय अपनी प्राथमिक स्थिति में होते हैं और व्यापार शुरू होने और नियमित आय के समय होता है।  

ब्याज दरों में वृद्धि ,हमेशा बाजार की स्थिति के अनुसार होनी चाहिए।अगर लोन की मांग कम हो जायगी तो बैंक के लाभ पर असर पड़ेगा। 

ब्याज दर बढ़ाने के पीछे रिज़र्व बैंक की सोच रहती है कि अर्थ व्यवस्था में रूपये का प्रवाह ज्यादा है,और लोगो के हाथ में नगद खर्च करने की क्षमता अधिक है। यदि पीएफ,सरकारी बांड्स,एफडी की ब्याज दरें बढ़ रही हैं तो यह इस बात के संकेत हैं कि जल्दी ही लोन भी मंहगे होंगे। इसका कारण यह है कि बैंक लोन की दर, हमेशा सरकार द्वारा जमा पर दी जा रही ब्याज दर से हमेशा ज्यादा होती है। 

अगर व्यापारी को कर्ज मंहगा मिलेगा तो वो इसकी भरपाई अपने प्रोडक्ट या सेवा की लागत बढ़ाकर करेंगे। कंज्यूमर की जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा,लेकिन अगर हम एक निवेशक की नजर से देखे तो पाएंगे कि जिस माह रिज़र्व बैंक ब्याज दर बढ़ाता है,उस तिमाही में लगभग हर बैंक का शुद्ध लाभ बढ़ जाता है,जिससे बैंक के शेयर में तेजी की ज्यादा सम्भावना रहती है।

 ऐसा देखा गया है कि बैंक की बैलेंस शीट स्ट्रांग रहती है,जितने समय तक रिज़र्व बैंक रेपो रेट नहीं बढ़ाता। उतने समय तक बैंकिंग शेयर्स की रफ़्तार सुस्त रहती है। उच्च बैंक दरें व्यक्तियों और व्यापारों के लिए कर्ज़ को महंगा बना सकती है। 

यदि कर्ज़ की मांग काफी कम हो जाती है, तो यह बैंकों के कर्ज़ की वृद्धि और लाभकारिता को प्रभावित कर सकता है। ऐसा होने पर,बैंकिंग स्टॉक पर दबाव आ सकता है।

रिज़र्व बैंक हमेशा ही ब्याज दरों के उतार चढ़ाव के द्वारा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। 

 वर्तमान में बैंको के NPA की स्थिति भी सुधर रही है,क्योंकि नए दिवाला अधिनियम लागु हो जाने से बैंको की NPA की वसूली की रफ़्तार अधिकतम 270 दिन हो गयी है। इस समय के अंदर बैंक, कम्पनीज को दिए गए कर्ज की वसूली आसानी से कर सकते हैं।