एसबी आर्नामेंट परिवार की ओर से किया जा रहा है सात दिवसीय श्रीराम कथा का आयोजन।
सूरसदन प्रेक्षागृह बना अयोध्या नगरी, श्री राम दरबार की शोभा देख भाव विभाेर हो रहे भक्त।
हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो
आगरा। कथा व्यास मानस मर्मज्ञ विजय कौशल जी महाराज ने कहा कि अपने घर को तीर्थ बनाएं। आदर्श परिवार कहलाएं, श्रीराम भी आपके घर में मिलेंगे। अपने आचरण और व्यवहार से माता पिता को प्रसन्न रखें तो सारे तीर्थों का पुण्य आपको प्राप्त होगा।
माता पिता तो स्वयं आशीर्वाद की फैक्ट्री की भांति हैं। उनके चरणों में जिसने शीश नवाया उसे कहीं और शीश झुकाने की आवश्यकता नहीं है।
सूरसदन प्रेक्षागृह में एसबी आर्नामेंट परिवार की ओर से आयोजित सात दिवसीय श्री राम कथा में तीसरे दिन श्री राम जन्म प्रसंग हुआ। बालक रंश जैन ने भगवान श्री राम का बाल स्वरूप लिया। संत विजय कौशल महाराज ने श्रद्धालुओं को मातृ पितृ और गुरु की भक्ति संग आचरण शुद्धि का गुरुमंत्र भी दिया।
कहा कि मानव जीवन में काम, क्रोध अहंकार, लोभ और मोह का विकार भक्ति मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। आत्म प्रशंसा से बचें। आत्म प्रशंसा सुनने वाला व्यक्ति अहंकारी हो जाता है और अहंकारी व्यक्ति को ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। उन्होंने श्रीराम जन्म प्रसंग को गहनता के साथ श्रद्धालुओं के बीच रखा। उन्होंने कहा कि प्रभु का भक्त नारद मुनि जैसा होना चाहिए, जिस तरह से हर कार्य को पूर्ण करने के लिए नारद भगवान को नारायण नारायण करके पुकारते हैं ठीक वैसे ही भक्तों को भी हर क्षण भगवान का ध्यान करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि आप जैसा ध्यान करेंगे वैसा ही मन बनेगा, जैसा मन होगा, वैसा ही पुरुषार्थ होगा और जिस प्रकार का पुरुषार्थ होगा, वही आपको ईश्वर प्राप्ति की ओर ले जाएगा। उन्होंने भगवान श्री राम के जीवन में गुरु वशिष्ठ जी एवं विश्वामित्र जी के महत्व पर कहा कि भगवान स्वयं गुरु हैं किंतु मानस अवतरण में गुरु के सानिध्य में वे रहे। लोग कहते हैं भजन करो, गुरु की आवश्यकता क्या है किंतु गुरु ही होते हैं जो उंगली पकड़ कर सदमार्ग पर ले जाते हैं। भगवान तक जाने का मार्ग दिखाते हैं। गुरु की कभी मृत्यु नहीं होती, उनका सदैव ही अवतरण होता है। गुरु मातंगी ऋषी की वाणी का अनुसरण कर ही 16 वर्ष की कन्या सबरी वन में रहकर अपने भगवान की प्रतिक्षा करती रही और 75 वर्ष की आयु में उसे प्रभु दर्शन हुए।
उन्होंने परिवार में प्रेम की सीख देते हुए कहा कि जिन परिवारों में संध्या वंदन सामूहिक रूप से होता है वहां रघुवीर स्वयं आते हैं। कथा के मध्य में संत विजय कौशल महाराज ने भक्ति भाव से परिपूर्ण भजन गाकर श्रद्धालुओं के नेत्रों को आस्था के अश्रुओं से सजल कर दिया। जनम लियो हैं चारों भइया, अवध में बाजे बधाइयां…पर खिलौने और टॉफी चॉकलेट लुटाए गए। तीसरे दिन का प्रसंग गंगा पूजन एवं जनकपुर प्रवेश के साथ समाप्त हुआ। आरती के बाद परिसर श्रीराम के जयकारों से गुंजायमान हो उठा।