अब अटकेंगे तो कौन समझाएगा हिंदी भाषा का मर्म!कुमार ललित,कवि-गीतकार।

अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हिंदी सेवी, हिंदी विद्वान व शिक्षाविद् डॉ. श्री भगवान शर्मा के निधन पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा निराला पुरस्कार से सम्मानित कवि-गीतकार कुमार ललित की भावभीनी श्रद्धांजलि...।

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा। अब अटकेंगे तो कौन समझाएगा हिंदी भाषा का मर्म? अब कौन निभाएगा हिंदी साहित्य का धर्म? अब कौन करेगा साहित्यिक कृतियों की शुद्ध समीक्षा? अब कौन देगा नई पीढ़ी को सही शिक्षा? अब कौन करेगा लोकनाट्य कला 'भगत' का प्रचार- प्रसार? अब कौन कहेगा बाबू गुलाब राय थे महान निबंधकार? अब कौन करेगा विश्व में हिंदी की जय जयकार? अब कौन लुटाएगा मुझ पर, तुम पर और आगरा शहर पर इतना लाड़-दुलार? जब से श्रद्धेय बाबूजी पूज्य डॉ. श्री भगवान शर्मा जी हमें बिलखता छोड़ गए हैं, ऐसे तमाम प्रश्न मनमानस पर कर रहे हैं अनवरत प्रहार..।

 सही मायनों में आगरा ही नहीं, देश के जाने-माने शिक्षाविद् और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हिंदी विद्वान् व श्रेष्ठ साहित्य-समीक्षक डॉ. श्री भगवान शर्मा, मां हिंदी के संवर्धन के लिए ऐसी चलती-फिरती पाठशाला और अनूठी आश्रय स्थली थे कि आगरा ही नहीं, उत्तर प्रदेश-भारत और भारत से बाहर किसी भी देश में हिंदी का कोई साधक जब हिंदी भाषा के किसी वाक्य या शब्द पर अटकता था, अथवा हिंदी साहित्य की किसी विधा में सृजन करते समय कहीं भटकता था तो दूरभाष या पत्र के माध्यम से बाबूजी से अवश्य ही संपर्क और संवाद करता था। वहीं बाबूजी भी सहज ही सबको निस्वार्थ समाधान प्रदान किया करते थे। 

 दरअसल हिंदी की यह सेवा ही उनके जीवन का असली आनंद था। मकरंद था। यही उनका गीत और यही उनका छंद था.. लेकिन क्रूर काल ने कल ऐसा प्रहार किया कि आज मां हिंदी का यह उदार दरवाजा सबके लिए बंद था..।

अस्सी के उत्तरार्ध की इस चढ़ती उमर में भी श्रद्धेय बाबूजी डॉ. श्री भगवान शर्मा की अनथक ऊर्जा, निरंतर लेखन, पठन-पाठन, चिंतन-मनन, शोधार्थियों को दिशा-निर्देशन, विभिन्न सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मार्गदर्शन, देश-विदेश में भ्रमण- व्याख्यान और ऑनलाइन चर्चा व गंभीर साहित्य-विमर्श हमें चौंकाते ही न थे, वरन् ऐसा ही महान कर्मयोगी और निरपेक्ष मौन साधक बनने की प्रेरणा भी प्रदान करते थे। 

 उनका सरल, सौम्य, शिष्ट, विनम्र,आत्मीय और गरिमामय व्यक्तित्व याद आ रहा है। स्थाई कांति व सहज मुस्कान से आकर्षित करता उनका दिव्य चेहरा अब भी लुभा रहा है। मां हिंदी के विपुल भंडार को चमकते हीरे-जवाहरात प्रदान करने वाला उनका पठनीय व संग्रहणीय कृतित्व हमें गर्व और गौरव का अनुभव करवा रहा है। 

 ब्रजभाषा की नैसर्गिक मिठास लिए उनकी साफगोई और हर व्यक्तित्व की सटीक पहचान के साथ सबको यथोचित स्नेह, सम्मान और साधुवाद देने का उनका ममतामई स्वभाव प्रणम्य है..।

अनुकरणीय है..।

 बहुत याद आएगी आपकी। मेरे निर्मल आंसुओं का अर्घ्य स्वीकार करें..।

    - कुमार ललित।