बाल्यावस्था में ही रोपें बच्चों में सनातन सेवा और भक्ति का बीजःआचार्य श्रीकृष्ण प्रकाश जी


                           

                       

− मुस्कान पार्क,सेक्टर आठ में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में हुए विदुर उद्धव संवाद, सती और ध्रुव चरित्र प्रसंग 

− श्रीमद् भागवत कथा में दिया जा रहा बच्चों में सनानत संस्कृति संस्कार शिक्षा पर जोर 

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा। आवास विकास कॉलोनी स्थित मुस्कान पार्क में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में बच्चों में सनातन संस्कृति संस्कार के बीज रोपित करने की शिक्षा दी जा रही है। आदर्श चरित्रों के माध्यम से कथा व्यास आचार्य श्रीकृष्ण प्रकाश पाठक श्रद्धालुओं में ज्ञान का प्रवाह कर रहे हैं। 

बुधवार को श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस विदुर उद्धव संवाद, विदुर मैत्रेय संवाद, कर्दम देवहूति कथा, कपिलोपाख्यान, सती चरित्र, ध्रुव चरित्र आदि प्रसंग हुए। तृतीय दिवस के मुख्य यजमान दिनेश चंद शर्मा और अर्चना शर्मा सहित संरक्षक डॉ पार्थ सारथी शर्मा, अशोक चौबे, राजेश चतुर्वेदी ने परम पवित्र ग्रंथ का विधिवत पूजन किया। कथा व्यास आचार्य श्रीकृष्ण प्रकाश पाठक ने कहा कि राजा परीक्षित ने शुकदेव से प्रश्न किया कि मृत्यु के समय व्यक्ति को क्या करना चाहिए। इस पर शुकदेव जी ने कहा कि जिसकी कामना न हो या जिसकी सभी कामनाएं हों, तो मृत्यु को मंगलमयी बनाने के लिए हर व्यक्ति को परमपिता परमात्मा का ही भजन करना चाहिए। क्योंकि यदि हमने खाने−पीने, सोने, विषय भाेग में ही जीवन व्यर्थ गंवा दिया तो हम में और पशु में कोई अंतर न होगाा। कथा व्यास ने आगे कहा कि हर प्राणी का परम लक्ष्य परमपिता परमात्मा का भजन ही है। विदुर उद्धव संवाद के अन्तर्गत कहा कि विदुर जी भगवान के परम भक्त थे। जबकि विदुर जी अकिंचन थे। विदुर जी के पास कोई धन− संपत्ति नहीं थी किंतु भगवान के प्रति अनन्य प्रेम था। उनकी और उनकी पत्नी की निश्छल भक्ति पर भगवान रिझ जाते हैं। 

भगवान धन या वैभव नहीं देखते बल्कि वे केवल भाव देखते हैं। भाव ही एक सार है, भाव से भज लो मुझे तो भव सागर पार है। विदुर जी के अंदर केवल भक्ति का भाव था। भाव इतना था कि उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि भगवान को केले के छिलके ही खिलाने लग गए थे। भगवान ये नहीं देखते कि क्या दिया, बल्कि वो देखते हैं कि कैसे दिया। भक्तिपूर्वक एक पत्ता भी वो ग्रहण कर लेते हैं। सृष्टि प्रक्रिया का वर्णन किया। इसके अलावा हिरण्याक्ष की कथा, कपिल भगवान माता देवभूमि का वर्णन किया। सांख्य योग के बारे में बताया। माता सती के चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि जो भगवान का अपमान करे वो अपना स्वजन ही क्यों न हो उसका परित्याग कर देना चाहिए। ध्रुव जी महाराज के पावन चरित्र को साझा करते हुए कि जिस प्रकाश कच्चे घड़े पर की गयी कारीगरी सदैव बनी रहती है, उसी तरह बाल्यावस्था से ही सनातन सेवा और भगवान भक्ति का बीज बच्चों में रोप देना चाहिए। 

अजामिल की कथा के वर्णन के साथ श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस का समापन किया गया। इस अवसर श्रीकांत शर्मा, उमेश भारद्वाज,डॉ.विजय वशिष्ठ, मोहिनी शर्मा, श्याम सुंदर लवानिया, पार्षद गजेंद्र पिप्पल, पार्षद निरंजन कैम, पार्षद गौरव शर्मा, पार्षद भरत शर्मा आदि उपस्थित रहे।