'क़िस्सा-कहानी' पर समग्र कार्यक्रम का आगाज़

 


हिन्दुस्तान वार्ता।ब्यूरो

आगरा।"कहानी चाहे विश्वसनीय लगे या अविश्वसनीय,होती वह गढंत ही है। जिस तरह किसी नट की कुशलता बगैर तनी हुई पतली सी रस्सी पर बिना डगमगाए साधकर चलने में साबित होती है उसी तरह 'गढंत' को साधते हुए यथार्थ की ज़मीन पर बिना लड़खड़ाए चलना कहानीकार का हुनर होता है। यह कहना है हिंदी के वरिष्ठ आलोचक प्रियम अंकित का। वे आज यहाँ 'क़िस्सा-कहानी: दशा और दिशा' शीर्षक से आयोजित इक्कीसवीं सदी की हिंदी कहानी पर समग्र चर्चा के कार्यक्रम में बोल रहे थे। 

कार्यक्रम का आयोजन सांस्कृतिक संस्था 'रंगलीला',ब्रज की पहली महिला पत्रकार 'प्रेमकुमारी शर्मा स्मृति आयोजन समिति, और एसिड हमलों का शिकार महिलाओं के संगठन 'शीरोज हैंग आउट' द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था। 

श्री प्रियम ने बताया कि आज की हिंदी कहानी इस हुनर को लेकर सचेत है। वह कल्पना और यथार्थ के सामंजस्य पर बल देती है। "कहानी की वर्तमान दिशा इस बात से निर्धारित हो रही है कि यथार्थ के साथ उसका एक प्रकार का स्वाभाविक अनुबंध अवश्य होना चाहिए।

कार्यक्रम में वरिष्ठ कथाकार शक्ति प्रकाश ने अपनी रचना प्रक्रिया की व्याख्या करते हुए कहा कि "किसी भी कहानी को लिखते समय मैं सबसे पहले विषय का चयन करता हूँ, फिर अपना पक्ष तय करता हूँ कि मुझे किस जगह खड़ा होना है, यह पक्ष लेकिन थोपा हुआ नहीं होना चाहिए। परिस्थिति और संवाद सभी कुछ स्वाभाविक रूप में घटते दिखने चाहिए। दूसरा  पक्ष भी इसमें दिखना चाहिए, चाहे वह संवाद से हो या व्यवहार से। लेखक का काम मुख्य चरित्रों को तलाशना होता हैं, बाकी चरित्र खुद-ब-खुद गढ़ते चले जाते हैं।" इस अवसर पर उन्होंने अपनी बहुचर्चित कहानी 'ग्रेशम का सिद्धांत' का पाठ भी किया। उक्त कहानी संपादकीय दम्भ ,साहित्यिक उठापठक और खेमेबाजी के मौजूदा परिदृश्य को दर्शाती है। कहानी को उपस्थित दर्शकों/श्रोताओं ने खूब सराहा।  

 कार्यक्रम की शुरुआत में आयोजक और वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी अनिल शुक्ल ने मुख्य अतिथियों और उपस्थित जनों का स्वागत करते हुए कहा कि हिंदी कहानी पर आगरा में इस प्रकार की समग्र चर्चा का यह पहला कार्यक्रम है। भविष्य में हम नाटक और कविता पर भी इसी प्रकार की समग्र चर्चाओं के कार्यक्रम रखेंगे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात लेखक राजगोपाल सिंह वर्मा ने कहा कि “कहानी लिखना एक बेहद मुश्किल काम है और व्यंग्य से जुडी कहानी लिखना तो और भी मुश्किल है”। कार्यक्रम में मौजूद वरिष्ठ कवि,समालोचक और 'इलाहबाद विश्वविद्यालय' के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो० राजेंद्र कुमार और  'केंद्रीय हिंदी संस्थान ' के पूर्व निदेशक एवं वरिष्ठ समीक्षक प्रो० रामवीर सिंह ने शक्ति प्रकाश की प्रस्तुत कहानी की समीक्षा की। 

कार्यक्रम का संचालन मशहूर शायरों और कवियों की रचनाओं के साथ उर्दू की वरिष्ठ लेखिका प्रो.नसरीन बेगम ने किया। कार्यक्रम का संयोजन रामभरत उपाध्याय ने और धन्यवाद ज्ञापन 'शीरोज़' के निदेशक आशीष शुक्ला ने किया। 

इस अवसर पर मौजूद आगरा के प्रबुद्धजनों में सर्वश्री नीरज जैन, श्री कृष्णा, रमेश पंडित, मनीषा शुक्ला, एड.अमीर अहम जाफरी, सरदार जाकिर, महेश धाकड़, सीमन्त साहू, ज्योति खंडेलवाल, वेद त्रिपाठी, प्रो.आर. के. भारती,अखिलेश दुबे,विजय शर्मा,अजय तोमर ,रिचा निगम, रितिका यादव,पूनम जाकिर, मनोज सिंह, जे के शर्मा, नवाबुद्दीन, फ़ैज़ानुद्दीन, पार्थो सेन, मनु भाई पंड्या , टोनी फास्टर, विशाल रियाज़ ,संजय गुप्त,नावेद अली सिद्दीकी, डीएस रघुवंशी, असलम सलीमी, सूर्य प्रकाश, रामी चौहान,भारत सिंह,आरवी सिंह, प्रथम यादव आदि उपस्थित थे।

रिपोर्ट : असलम सलीमी