बौद्ध धर्म : एक धम्म और लोक कल्याण शासन के रूप में मानव जीवन पद्धति

 


हिन्दुस्तान वार्ता।✍️ डॉ.प्रमोद कुमार

बुद्ध धम्म एक सार्वभौमिक,मानवीय और व्यावहारिक दर्शन है जो करुणा, अहिंसा,समानता और आत्मज्ञान पर आधारित है। यह केवल एक धर्म नहीं बल्कि एक जीवन पद्धति है, जो व्यक्ति के आंतरिक विकास से लेकर समाज की नैतिक संरचना और शासन व्यवस्था तक को दिशा देता है। भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में धर्म का एक केंद्रीय स्थान रहा है। लेकिन समय के साथ धर्म कर्मकांड, जातिवाद और पाखंड का उपकरण बन गया। ऐसे समय में गौतम बुद्ध ने जो 'धम्म' की संकल्पना प्रस्तुत की,वह धार्मिक नहीं बल्कि मानवीय मूल्यों पर आधारित थी। उन्होंने धम्म को शासन और समाज के नैतिक उत्थान का माध्यम बताया।

बुद्ध का धम्म कोई कर्मकांड या ईश्वर की आराधना नहीं, बल्कि एक नैतिक जीवन शैली है। यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करता है,चाहे वह व्यक्तिगत हो, सामाजिक हो या शासकीय। 

बुद्ध ने धर्म (धम्म) को किसी आध्यात्मिक सत्ता या ईश्वर की उपासना से नहीं जोड़ा,बल्कि उन्होंने इसे मानवीय पीड़ा से मुक्ति का मार्ग बताया। उनका धम्म,व्यवहारिक नैतिकता पर आधारित है और मानव जीवन को एक ऐसे मार्ग पर ले जाता है जहाँ करुणा,मैत्री और विवेक शासन और सामाजिक व्यवस्था के मूल तत्त्व बनते हैं! बौद्ध धर्म केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं,बल्कि एक समग्र मानववादी जीवन-दर्शन है। जब समाज अराजकता,अन्याय और असमानता से जूझ रहा था, तब बुद्ध ने धम्म की संकल्पना प्रस्तुत की,एक ऐसी व्यवस्था जो न केवल व्यक्ति को आत्मकल्याण की राह दिखाती है,बल्कि समाज और शासन को भी नैतिकता, करुणा और लोकहित के सिद्धांतों पर आधारित बनाती है। वर्तमान युग की चुनौतियाँ जैसे सामाजिक विभाजन, हिंसा और शासन की अमानवीयता — बौद्ध धम्म के मानवतावादी सिद्धांतों के द्वारा ही संतुलित हो सकती हैं। यह लेख "बुद्ध धम्म: मानवीय धम्म और शासन" विषय पर विस्तार से चर्चा करेगा, जिसमें बुद्ध धम्म की परिभाषा,उसका मानवतावादी दृष्टिकोण,सामाजिक न्याय की अवधारणा, तथा एक आदर्श शासन व्यवस्था की रूपरेखा सम्मिलित होगी।

बौद्ध धर्म (धम्म) की मूल आत्मा :

1. धम्म का अर्थ :

धम्म का शाब्दिक अर्थ है — 'जो धारण करता है', 'जो सत्य पर टिका है'। यह केवल धार्मिक अनुष्ठानों का नहीं, बल्कि नैतिक आचरण, करुणा, समता और न्याय का जीवन-संघर्ष है।

2. चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग :

बुद्ध ने बताया कि जीवन में दुःख का अस्तित्व है, उसका कारण है,उसका अंत संभव है और उसका मार्ग है — यही 'धम्म' का मूल है। अष्टांगिक मार्ग (Right View to Right Concentration) व्यक्ति को एक संतुलित और नैतिक जीवन की ओर अग्रसर करता है।

चार आर्य सत्य : 

1. दुःख: जीवन में दुःख का अस्तित्व है।

2. दुःख का कारण: तृष्णा और अज्ञान दुःख के मूल कारण हैं।

3. दुःख की निवृत्ति: तृष्णा के अंत से दुःख समाप्त हो सकता है।

4. दुःख-निवृत्ति का मार्ग : आठ अंगों वाला मध्य मार्ग।

अष्टांगिक मार्ग :

1. सम्यक दृष्टि

2. सम्यक संकल्प

3. सम्यक वाणी

4. सम्यक कर्म

5. सम्यक आजीविका

6. सम्यक प्रयास

7. सम्यक स्मृति

8. सम्यक समाधि

ये सभी नैतिक अनुशासन की ओर प्रेरित करते हैं जो शासन व्यवस्था का आधार बन सकते हैं।

3. पंचशील और दशशील :

बौद्ध अनुयायी पंचशील (अहिंसा,चोरी न करना, असंयम से बचना, असत्य न बोलना, मादक पदार्थों से दूर रहना) का पालन करते हैं। उच्च स्तर पर दशशील शासनकर्ता और भिक्षुओं के लिए हैं — जो शासन को भी नैतिक और सेवा-आधारित बनाते हैं।

4. बौद्ध धर्म का मानवीय दृष्टिकोण :

4.1 करुणा और मैत्री का जीवन-दर्शन :

बुद्ध ने करुणा को 'धम्म की आत्मा' बताया। मैत्री (मैत्रीभाव) और करुणा के द्वारा व्यक्ति न केवल दूसरों के दुःख को समझता है, बल्कि स्वयं भी मानसिक रूप से शुद्ध होता है।

4.2 आत्मनिर्भरता और विवेक :

बुद्ध का 'अत्त दीपो भव' (स्वयं का दीपक बनो) सन्देश आत्मनिर्भरता की शिक्षा देता है। यह शासकों को भी निर्देश देता है कि वे तर्क, विवेक और लोकहित को अपनी नीति का आधार बनाएं।

4.3 समता और सामाजिक न्याय :

बौद्ध धर्म में जन्म के आधार पर कोई भेद नहीं — व्यक्ति के गुण और कर्म ही उसका मूल्य निर्धारण करते हैं। यह दृष्टिकोण लोकतांत्रिक शासन और सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों से मेल खाता है।

5. सामाजिक क्रांति में बुद्ध धम्म की भूमिका :

5.1 जाति-वर्ण व्यवस्था का विरोध :

बुद्ध पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ब्राह्मणवाद के खिलाफ सार्वजनिक रूप से आवाज उठाई। उन्होंने वर्णव्यवस्था को अमानवीय और अस्वाभाविक बताया।

5.2 महिलाओं को अधिकार :

बुद्ध ने स्त्रियों को संघ में दीक्षित कर उनके धार्मिक और बौद्धिक अधिकारों को मान्यता दी — एक क्रांतिकारी कदम।

5.3 शोषणविहीन समाज की स्थापना :

धम्म संघ का प्रत्येक सदस्य समान था — राजा से लेकर शूद्र तक। वहाँ अधिकार नहीं, सेवा प्रमुख थी।

6. धम्मराज्य : बौद्ध शासन का सिद्धांत

6.1 धम्मराज्य की अवधारणा :

धम्मराज्य का अर्थ है — ऐसा शासन जो धम्म (नैतिकता, करुणा, सेवा, न्याय) पर आधारित हो। इसमें शासक प्रजा का सेवक होता है, उसका स्वामी नहीं।

6.2 बुद्ध द्वारा शासकों को दिए गए उपदेश :

बुद्ध ने कई राजाओं को शासन के कर्तव्यों पर उपदेश दिए। उन्होंने सिखाया कि शासक का कार्य है :

जनता की रक्षा करना

सभी के साथ समान व्यवहार करना

करुणा और सहानुभूति के साथ निर्णय लेना

भिक्षुओं और विद्वानों को संरक्षण देना

6.3 सम्राट अशोक और बौद्ध धम्मराज्य :

कलिंग युद्ध के पश्चात सम्राट अशोक ने बुद्ध धम्म को अपनाकर शासन को करुणा और अहिंसा पर आधारित बना दिया। उन्होंने हिंसक युद्ध त्यागे

धम्म महामात्रों की नियुक्ति की

धर्म और नैतिकता का प्रचार किया

शिलालेखों और स्तंभों के माध्यम से धम्म संदेश फैलाया।

7. बौद्ध शासन और लोक कल्याण नीति :

7.1 लोक कल्याण के मूल तत्त्व :

बुद्ध शासन व्यवस्था में राज्य का मुख्य उद्देश्य प्रजा का कल्याण होता है, न कि धन संग्रह या सैन्य शक्ति प्रदर्शन।

7.2 प्रशासन और नैतिकता :

राजा/शासक का आदर्श आचरण — सत्यवादिता, संयम, लोभ रहित शासन

अधिकारी वर्ग का धर्म — सेवा भाव, पारदर्शिता, भेदभाव रहित न्याय

7.3 करुणा आधारित दंड नीति :

बुद्ध के अनुसार अपराध दमन नहीं, प्रायश्चित्त और सुधार का विषय है। यह आधुनिक पुनर्वास नीति (Reformative Justice) के अनुरूप है।

7.4 परामर्श आधारित शासन :

बुद्ध संघ में निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते थे। यह लोकतंत्र की जड़ है। वर्तमान शासन में इस प्रकार की भागीदारी और संवाद की आवश्यकता है।

8. बौद्ध धर्म और आधुनिक शासन व्यवस्था :

8.1 भारतीय संविधान में बौद्ध प्रभाव :

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान निर्माण में बुद्ध के सिद्धांतों का व्यापक रूप से समावेश किया :

समानता (Equality)

स्वतंत्रता (Liberty)

बंधुत्व (Fraternity)

धर्मनिरपेक्षता (Secularism)

न्याय (Justice)

8.2 बौद्ध धर्म और लोकतांत्रिक मूल्य :

शील और संयम आधारित नेतृत्व,जनता की सेवा को सर्वोच्च उद्देश्य मानना। सभी जातियों,वर्गों,लिंगों के लिए समान अवसर।

8.3 विश्व शांति और बुद्ध :

आज के हिंसा-ग्रस्त, युद्धप्रिय और गैर-जिम्मेदार वैश्विक नेतृत्व को बुद्ध की करुणा,मैत्री और अहिंसा की आवश्यकता है। बौद्ध धर्म 'सर्वे भवंतु सुखिनः' के आदर्श को व्यवहार में लाता है।

9. बौद्ध जीवन-पद्धति — शासन और नागरिक के लिए समान मार्ग :

9.1 शासक और प्रजा दोनों के लिए धम्म :

धम्म केवल भिक्षु-संघ तक सीमित नहीं है। यह जन-जन के जीवन को सुचारू, नैतिक और शांतिपूर्ण बनाता है। इसमें हर नागरिक की भूमिका है — करुणामय, जिम्मेदार और विवेकशील होना।

9.2 शासन की नीतियों में धम्म का समावेश :

शिक्षा में नैतिकता और सहिष्णुता का पाठ,

स्वास्थ्य सेवाओं में करुणा और समता,

अर्थनीति में लोभ रहित और पर्यावरण-संरक्षणकारी दृष्टिकोण,

न्यायपालिका में निष्पक्षता और पुनर्वास पर जोर,

10. बौद्ध धम्म का सार्वकालिक सन्देश और मानवता का पथ-प्रदर्शक धम्म :

बुद्ध धम्म एक ऐसा मानवीय और सामाजिक दर्शन है जो व्यक्ति, समाज और शासन — तीनों को एक नैतिक धरातल पर स्थापित करता है। यह न तो किसी कल्पित ईश्वर का डर दिखाता है, न ही किसी जाति, लिंग या वर्ग का भेद करता है। यह शुद्ध रूप से विवेक, नैतिकता और करुणा पर आधारित है। बुद्ध ने जो मार्ग दिखाया, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जो 2500 वर्ष पूर्व था। मानवता के संकट,सामाजिक विषमता, शासकीय अन्याय और नैतिक पतन के इस युग में, बुद्ध धम्म एक प्रकाशस्तंभ की तरह है — जो न केवल आत्मा का मार्गदर्शन करता है, बल्कि समाज और शासन को भी मानवता की ओर ले जाता है। बौद्ध धर्म केवल पूजा-पाठ या ध्यान की विधि नहीं है, बल्कि एक जीवंत जीवन-पद्धति है जो शासन और समाज दोनों को मानवीय, करुणामय, न्यायप्रिय और शांतिपूर्ण बना सकती है। धम्मराज्य की संकल्पना आज की पूँजीवादी,शोषणकारी और असमानता-युक्त शासन प्रणालियों के लिए एक वैकल्पिक आदर्श है। यदि बुद्ध का "धम्म" — जिसमें मैत्री,करुणा, समता,अहिंसा और विवेक के बीज हैं — आधुनिक राज्य व्यवस्था और व्यक्ति की आंतरिक चेतना का हिस्सा बन जाए, तो एक वास्तविक 'लोक कल्याण राज्य' की स्थापना संभव है।

बुद्ध धम्म केवल अतीत का आदर्श नहीं, वर्तमान और भविष्य का समाधान है। यह शासन को नैतिक बनाता है, समाज को समतावादी और व्यक्ति को आत्मनिर्भर।

धम्म की शिक्षा व्यक्ति को आत्मचिंतन सिखाती है, समाज को न्याय देती है और शासन को सेवा का मार्ग दिखाती है। यदि वर्तमान विश्व बुद्ध के 'धम्मराज्य' की संकल्पना को अपनाए  तो शांति, समता और न्याय की स्थापना संभव हो सकती है।

- लेखक डॉ.भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा में डिप्टी नोडल अधिकारी,MyGov' हैं।