डीईआई और उ.प्र.संस्कृत संस्थान द्वारा शिक्षा संकाय में आयोजित विचार गोष्ठी



विकसित भारत में संस्कृत ग्रंथों के माध्यम से ही अहम् से वयम् तक की यात्रा तय की जा सकती है

भारतीय ज्ञान परंपरा भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में मददगार साबित होगी, युवाओं को इसके प्रति आकृष्ट करें।

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा। भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा पर हमें गौरव का अनुभव होता है, क्योंकि यह आधुनिक दौर में भी उतनी ही उपयोगी और ज्ञानवर्धक है। अपने भारत को विकसित देशों की श्रेणी में लाने के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा की अनमोल विरासत एक बहुत बड़ा योगदान दे सकती है। बशर्ते हम शोध और विकास को बढ़ावा दें। इसके साथ ही युवाओं को इस दिशा में जागरूक किए जाने की जरूरत है। ताकि नौजवां इस प्राच्य ज्ञान का उपयोग कर सकें। 

यह सार था उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ और दयालबाग डीम्ड यूनिवर्सिटी आगरा के संयुक्त तत्वावधान में डीईआई शिक्षा संकाय के सेमिनार हॉल में आयोजित एक गोष्ठी में विद्वान वक्ताओं के वक्तव्यों का जो 'विकसित भारत के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा का योगदान' विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। गोष्ठी के मुख्य वक्ता पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन, मध्यप्रदेश के कुलपति प्रो.विजय कुमार मेनन थे। वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता डीईआई के निदेशक सी.पटवर्धन ने की। विशिष्ट अतिथि वृंदावन शोध संस्थान के निदेशक डॉ.राजीव द्विवेदी श्री मनकामेश्वर मंदिर के महंत योगेश पुरी, डीईआई की संस्कृत विभाग की पूर्व अध्यक्षा प्रो. उर्मिला आनंद थीं। कार्यक्रम की आयोजक संस्कृत विभाग की अध्यक्षा प्रो.अनीता थीं।गोष्ठी सचिव उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान,लखनऊ के श्याम सुंदर शर्मा थे।

अपने संबोधन में मुख्य वक्ता श्री मेनन ने कहा,"हमारे देश में संस्कृत को इसीलिए खत्म किया गया क्योंकि जब हम अपने ग्रंथों का अध्ययन नहीं करेंगे तो हम पश्चिम के ज्ञान पर ही निर्भर बने रहेंगे। अब वक्त आ गया है कि हमें अपने प्राचीन ज्ञान का उपयोग करना चाहिए। हम विकसित भारत का सपना इसके सहारे ही साकार कर सकेंगे।" विशिष्ट अतिथि श्री द्विवेदी ने कहा "हम अपने प्राचीन ग्रंथों में मौजूद अपार ज्ञान का सदुपयोग जीवन को उच्चतर बनाने में कर सकते हैं।

महंत योगेश पुरी ने कहा कि "हमें अपने ग्रंथों का अध्ययन बच्चों को करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। वे देश को विकसित भारत बनाने की राह में ले जायेंगे।" अध्यक्षीय संबोधन में डीईआई के निदेशक प्रो.सी.पटवर्धन ने कहा, "भारतीय ज्ञान परंपरा दयालबाग की जीवन शैली में पहले से ही उपयोग में लाई जा रही है, हरेक की जिंदगी में इसका फायदे मिल रहा है।" गोष्ठी संचालन डॉ.गौरव कुमार गौतम ने किया। गोष्ठी के अंत में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र भी वितरित किए गए। अतिथियों का पटका पहनाकर और स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया गय। समापन राष्ट्र गान के साथ हुआ।