हिन्दुस्तान वार्ता।
शादी ब्याह की समस्या चकाचौंध बाजारों(marriage bureau)को देख विकराल रूप लेते जा रही है,भारतीयता की तो धज्जियाँ उड़ा दी गई, पाश्चात्य का अंधा अनुसरण,पैसा कमाने की होड़ में सभी रिश्ते नाते बिखर से गए हैं। संस्कृति संस्कार अब इतिहास में ही मिलेगा। जिम्मेवार हम दो पीढ़ियों को जोड़ने वाले लोग ही हैं, जो खेत-खलिहान,गांव-घर की गलियों से उड़ते हुए हवाई जहाज को देख ताली बजाते थे, कारों को हसरत भरी निगाहों से देखते थे!हर टाई बांधने वाला साहब दिखता था, और कभी-कभी गर्म दुपहरी में होने वाले शादी ब्याह में हम भी कोट टाई बाँध साहब होने का शौक पूरा करते थे।
वक़्त ने करवट बदली, दुनियाँ छोटी होती गई और बचपन के अपने दिवा स्वप्न को ठूंस ठूंस कर बच्चों के दिमाग में जबरिया भर कर उन्हें ताड़ का पेड़ बना दिए। अब समझ में नहीं आ रहा, यह सीधा खड़ा ठूंठ जब अपने ही जड़ को छाया नहीं दे पा रहा तो, माँ-बाप, घर परिवार कहाँ?मैटरलिस्टीक दुनिया में भावना कहाँ?सभी मोबाइल पर, लैपटॉप पर लगे पड़े हैं।
हम ठेठ बुजुर्ग तो समझ ही नहीं पा रहे कि बगल से अभी अभी बिटिया गुज़री या बाबू।अब तो यहाँ तक गड़-बड़ हो जा रही है जिसे बेटी कह कर बुला रहा था वो तो मौसी निकली,खैर साहब दुनिया तरक्की पर है, हम साहब बन रहे हैं।
आज की जनरेशन के पास स्मार्ट फोन मंहगे से मंहगा है और यह उनकी स्टेटस सिंबल का प्रतीक भी हो सकता है. इसके कई फीचर्स काम के रहते हैं लेकिन इन्हें अपने आफिस की मगजमारी से फुर्सत नहीं मिलती और कितने ही फीचर एप्लिकेशन अन टच रहे जाते हैंI इसके अलावा लैपटॉप है जो इनका सूटकेस वाला चलता फिरता आफिस ही मान सकते हैंI कुछ भी जानकारी चाहिए गूगल गुरु इनके तारणहार बन जाते हैं. इनकी वाक और तर्क शक्ति इतनी अधिक है कि इनसे जीत पाना असंभव ही हैI बहस करना इनकी रग में दौड़ते रहता हैI अपनी दिनचर्या में इतना मशगूल रहते हैं कि इन्हें बाकी औपचारिकता के लिए बिल्कुल समय नहीं है।
इनके अभिभावकों की परेशानी यह है कि इनसे कब,अपनी बात सामाजिक जीवन के संदर्भ में की जायेI यदि कभी हिम्मत कर इनकी शादी की बात कर भी लें, तब इस जनरेशन के बच्चों में अपनी अपनी कंपेटिबिलीटी का ख्याल आता है और अपनी हैसियत से स्टेटस की तुलना करना चाहते हैं और इसका फैसला भी खुद करना चाहते हैं और तर्क यह है कि साथ उन्हें जीना है और हमारा जीवन किस तरह से जीना है,हमे सोचना है।
इन्हें अकेले रहते हुए काफी अनुभव आ गया है और इसके चलते किसी प्रकार से समझौता नहीं करना चाहते हैंI ये अपने कंफर्ट जोन से बाहर नहीं निकलना चाहते,जॉब रिलोकेशन का बहाना बनाते I लिबास की तरह जाब के लिए कंपनी बदलते हैं और तर्क यह रहता है कि जितनी दिमागी खर्च कर रहे हैं उस मुताबिक रुपये नहीं मिल रहे इसलिए जहां हमारी कदर होगी वहीं सदर होगी I
कार्य प्रणाली के बोझ तले,रिश्ते टूट रहे, परिणाम स्वरूप तनाव दूर करने की आड़ में जेंडर से परे जाकर, धूम्रपान, मदिरालय,क्लब जाना आधुनिकता का प्रायवाचि बन गया है।
शादी ब्याह के बंधन को ही नकारा जा रहा है। माँ-बाप किसी साईट पर विवरण डाल अपनी लोक लाज बचाने की मात्र कोशिश करते नजर आ रहे।परंतु बच्चों के समक्ष लाचार नज़र आ रहे।
कुछ शादी ब्याह की चर्चा चलती भी है तो जन्म पत्रिका का मिलान नहीं हो पा रहा, कह कर पल्ला झाड़ रहे हैं।
शादी साईट देखें,बच्चों की उम्र औसतन 30 पार कर रही, जो लड़कियों के प्रजनन के लिए एक मेडिकल समस्या बनता नज़र आ रहा,कौन इन्हें समझाए?और समझने को कौन तैयार?आज तो बच्चा पैदा करना भी एक बोझ बन चुका!बिना शादी के ही जब कानूनी रिश्ते चल रहे तो, बंधन क्योँ ?
भारतीय समाज अभी भी वहां नहीं पहुंचा है, जहाँ से वापसी संभव नहीं, एक आम चेतना जगाने की जरूरत है I माँ-बाप को थोड़ा सख्त रुख अपनाने की जरूरत है I सामाजिक संरचना पढ़ाना होगा। जागृत समाज ही उन्नत समाज होता है। सब संभव है बस भारतीय संस्कृति और इतिहास आज के बच्चों को शुरूआत से पढ़ाने की आवश्यकता है, संयुक्त परिवार प्रणाली की पुनर्स्थापना एवं स्व से आगे आकर सब के विकास को महत्व देना होगा।संतति को ताड़ की जगह बरगद बनाने की प्रेरणा दें ।
✍️इंजी.आर. के. सिन्हा
''पूर्व महा प्रबन्धक''
कोल इंडिया।
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