गुरु के चरणों में बसते हैं, सारे तीर्थ:संत श्री विजय कौशल जी महाराज।



अनीति करने वाला राजा सफल नहीं।

धन है तो उसका उपयोग सुकारथ कीजिए।

मंगलमय परिवार द्वारा आयोजित कथा में बह रही भक्ति की धारा। 

हिन्दुस्तान वार्ता।

आगराः संत श्री विजय कौशल जी महाराज ने कहा है कि जो राजा, प्रजा का दुख दूर नहीं कर सकता, उसकी मृत्यु पर प्रजा शोक नहीं करती। क्योंकि राजा का दायित्व है कि वह प्रजा को सुख दे, उनकी चिंता को अपनी चिंता समझे। किसी प्रकार की अनीति अपने राज में नहीं करे।  

कोठी मीना बाजार में मंगलमय परिवार आयोजित श्रीराम कथा के लिए बनाए गए चित्रकूट धाम में शुक्रवार को पांचवा दिन था। संत विजय कौशल जी ने सुनाया कि महाराजा दशरथ के निधन पर शोक मना रहे, भरत को समझाते हुए महारानी कौशल्या कहती हैं कि राजा दशरथ एक सफल राजा थे, परोपकारी थे, प्रजा का ध्यान रखते थे, अनीति नहीं करते थे, इसलिए उनके निधन पर शोक नहीं करना चाहिए। 

सोचनीय नहिं कोसलराऊ। 

भुवन चारि दस प्रगट प्रभाऊ॥

भयउ न अहइ न अब होनिहारा। भूप भरत जस पिता तुम्हारा।।

यानि भरत से कौशल्या जी कहती हैं कि कोशलराज दशरथ जी का निधन शोक करने योग्य नहीं हैं, जिनका प्रभाव चौदहों लोकों में रहा है। हे भरत! तुम्हारे पिता जैसा राजा तो न हुआ, और न अब होने को है। 

कौशल जी महाराज ने कहा कि जो वैश्य, कुआं नहीं खुदवाते, मंदिर के निर्माण, गायों की रक्षा, मानव सेवा के लिए आर्थिक सहयोग नहीं करते, उनका जीवन सुकारथ नहीं होता। जो अपने सुख के लिए और लोगों को दुख देता है, अपने अहम के कारण किसी की परवाह नहीं करता, उसका यश कभी नहीं फैलता। इसलिए जीवन को सुकारथ बनाने के लिए मानव सेवा करें। दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझें। 

संत ने कहा कि जब बुरा वक्त आए तो उस समय शांत रहना चाहिए। रहीम दास भी कहते हैं-

रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।

जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥

यानि जब बुरे दिन हों तो चुप ही बैठना चाहिए, क्योंकि जब अच्छे दिन आते हैं तब बात बनते देर नहीं लगती। 

कौशल जी दोहा सुनाया- 

सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।

हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ।

यानि हे भरत! सुनो, भावी (होनहार) बड़ी बलवान है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-पयश, ये सब विधाता के हाथ हैं।

लेकिन विधाता कर्म पर ध्यान देता है। जो भी शुभ-अशुभ करता है, वैसे ही फल मिलता है। वह विधाता के सीसीटीवी कैमरों में कैद होता जाता है। वहीं उसका दूसरा अर्थ यह है कि विधाता कहते हैं कि मैं तो टाइपिस्ट हूं, जैसी जिसकी रिपोर्ट आती है,  वैसा ही फल मिलता जाता है। शरीर के द्वारा किया गया कर्म शरीर को अवश्य भोगना पड़ता है। भगवान को ही नहीं, भगवान के पिता जी को भी कर्मों का फल भोगना पड़ता है। इसे कोई नहीं बदल सकता। बस, ईश्वर की कृपा से संकट भोगने की शक्ति आ जाती है। 

किसी सद् गुरु का सानिध्य जरूर पाइये। उनके सानिध्य में आ जाना जीवन की बड़ी सफलता है। वे हमारी सांसों में, वाणी में, जीवन की हर क्रिया में साक्षी के रूप में खड़े रहते हैं। गुरुओं की मौत नहीं होती, वो शरीर छोड़ते हैं। गुरु की चेतना शिष्य के चारों ओर हमेशा रहती है। किसी तीर्थ में जाने की आवश्यकता नहीं है। सारे तीर्थ गुरू के चरणों में बसते हैं। सभी ने मिल कर गाया-

सारे तीर्थ धाम आपके चरणों में।

हे गुरुदेव प्रणाम, आप के चरणों में।।

 श्रीराम कथा में मुख्य यजमान मुरारी प्रसाद अग्रवाल पत्नी श्रीमती मीरा अग्रवाल,दैनिक यजमान अमर चन्द अग्रवाल धर्मवीर अग्रवाल प्रमुख रूप से मौजूद रहे।

मुख्य अतिथि इटावा सांसद रामशंकर कठेरिया विधायक पुरूषोत्तम खंडेलवाल विरेन्द्र अग्रवाल बब्बू भैया (इन्द्रपुरी) सुनील विकल केशव (प्रचार प्रमुख) सुमन्त गुप्ता मुरारीलाल फतेहपुरिया बबिता चौहान मधु बघेल भी कथा में पधारे।

 कथा में राकेश अग्रवाल महेश गोयल गौरव बंसल सरजू बंसल मीडिया प्रभारी ऋषि अग्रवाल खेमचंद गोयल प्रशांत मित्तल ओम प्रकाश गोयल दिनेश अग्रवाल राजकुमार अग्रवाल राकेश आकांक्षा लक्ष्मण गोयल लक्ष्मण गोयल अमरचंद अग्रवाल विनोद पेठा विनोद धागा सुमित ढल विष्णु साड़ी पी के पार्षद मुकुल गर्ग अशोक खंदौली आशू अग्रवाल मुकेश नेचुरल कमलनयन फतेहपुरिया आदि मौजूद रहे।