🇮🇳 भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु। २३ मार्च, १९३१"बलिदान दिवस " पर विशेष।



हिन्दुस्तान वार्ता।

२३ मार्च, १९३१ को अंग्रेज़ी सरकार ने भारत के तीन सपूतों - भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी पर लटका दिया था. स्वतंत्रता की लड़ाई में स्वयं को देश की वेदी पर चढ़ाने वाले यह नायक हमारे आदर्श हैं।

 शहीद-ऐ-आज़म भगत सिंह का जन्म २८ सितम्बर १९०७ को हुआ था. १४ वर्ष की आयु में ही भगतसिंह ने सरकारी स्कूलों की पुस्तकें और कपड़े जला दिये थे।

महात्मा गाँधी ने जब चौरीचौरा काण्ड के बाद असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने की घोषणा की तो भगतसिंह का अहिंसावादी विचारधारा से मोहभंग हो गया. उन्होंने १९२६ में देश की आज़ादी के लिए नौजवान भारत की स्थापना की।

हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिन्तक और विचारक भगत सिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने "अकाली" और "कीर्ति" नामक दो अखबारों का सम्पादन भी किया।

जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने ६४ दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्र नाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिये थे।

भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने ०८ अप्रैल १९२९ को केन्द्रीय असेम्बली में एक खाली स्थान पर बम फेंका था।इसके पश्चात् उन्होंने स्वयं गिरफ्तारी देकर अपना सन्देश दुनिया के सामने रखा।

उनकी गिरफ्तारी के पश्चात् उन पर एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी साण्डर्स की हत्या का मुकदमा चला। लगभग दो वर्ष मुकदमा चलने के पश्चात् २३ मार्च १९३१ को भगतसिंह, सुखदेव, तथा राजगुरु को फाँसी दे दी गई। 

फाँसी के एक दिन पूर्व 22 मार्च 1931 को उन्होंने अपना अंतिम पत्र लिखा कि 'जीने की इच्छा मुझमें भी है।मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता।मेरा नाम क्रांति का प्रतीक बन चुका है।क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है।इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा हरगिज नहीं हो सकता।आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं।मैं अगर फाँसी से बच गया तो वह जगजाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मद्धम पड़ जाएगा।फाँसी चढ़ने के बाद हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के लिए भगत सिंह बनने की आरजू करेंगी। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है।"कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।"

इससे प्रतीत होता है कि वे अपने लक्ष्य प्रति कितने समर्पित थे।   

शहीद सुखदेव : सुखदेव का जन्म १५ मई, १९०७ को पंजाब के लायलपुर में हुआ जो अब पाकिस्तान में है. भगतसिंह और सुखदेव के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहने से दोनों वीरों में गहरी दोस्ती थी तथा साथ ही दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे. साण्डर्स हत्याकाण्ड में भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव साथ थे।

शहीद राजगुरु : २४ अगस्त,१९०८ को पुणे जिले के खेड़ा में राजगुरु का जन्म हुआ।शिवाजी की छापामार शैली के प्रशंसक राजगुरु लाला लाजपत राय के विचारों से भी प्रभावित थे।

पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए राजगुरु ने १९ दिसम्बर, १९२८ को भगतसिंह के साथ मिलकर लाहौर में अंग्रेज़ सहायक पुलिस अधीक्षक जेपी साण्डर्स को गोली मार दी थी और स्वयं ही गिरफ्तार हो गये थे।

ऐसे भारत माता के सपूत वीर क्रान्तिकारी शहीद-ऐ-आज़म भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान दिवस पर देश उन्हें कोटि-कोटि नमन् करता है।

यदि हमसे कोई पूछे कि..क्या वे प्राणों से हाथ धो गए।

यही कहूँगा,मरे नहीं वो ! अनंत काल तक अमर हो गए।

 जय हिन्द...🚩

धर्मेन्द्र कुमार चौधरी"प्रदेश सचिव"

 उ.प्र.जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन