साहित्य साधिका समिति और डॉ.इन्द्र स्मारक समिति द्वारा आयोजित हुआ पुस्तक विमोचन समारोह।
डॉ.सुषमा सिंह ने पिता को समर्पित की पुस्तक,देशभर के 217 साहित्यकारों का पुस्तक में सहयोग।
हिन्दुस्तान वार्ता।
आगरा। मां धरती है तो पिता आसमान होता है,धरती का कहीं न कहीं अंत है लेकिन पिता तो अनंत होता है।
एक व्यक्ति के जीवन में पिता के महत्व को उल्लेखित करती पुस्तक “पिताः एक संस्कार” का विमोचन इसी भाव के साथ किया गया।
रविवार 7 मई, हरी पर्वत स्थित यूथ हॉस्टल में साहित्य साधिका समिति और डॉ.इन्द्र स्मारक समिति,आगरा के संयुक्त तत्वावधान में डॉ. इन्द्र पाल सिंह ‘इन्द्र ‘की जयन्ती के शुभ अवसर पर साझा संकलन “पिता: एक संस्कार” का विमोचन समारोह आयोजित किया गया। संस्थापिका डॉ.सुषमा सिंह द्वारा संपादित पुस्तक में देशभर के 217 साहित्यकारों की पितृ भाव को समर्पित रचनाओं को स्थान दिया गया है।
पुस्तक का विमोचन कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.मिथिलेश दीक्षित (हिन्दी साहित्य की लघु विधाओं में निष्णात,समीक्षक और संपादक),
मुख्य अतिथि डॉ.बीना शर्मा (निदेशक केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा), विशिष्ट अतिथि अरुण डंग और अशोक रावत, डॉ.शेषपाल सिंह शेष, संस्था की सह संस्थापिका रमा वर्मा और कमला सैनी ने किया। डॉ. सुषमा सिंह ने कहा कि पिता तो सदैव संतान में जीवित ही रहते हैं। उन्होंने पुस्तक में प्रकाशित कविता की पंक्तियों के साथ अपने पिता को शब्दांजली प्रदान की। उन्होंने कहा कि “पिता का होना होता है एक भरोसे का होना..। रमा वर्मा ने कहा कि डॉ इंद्रपाल उत्कृष्ट साहित्यकार थे। शेषपाल सिंह शेष ने आगरा के प्राचीन नाम अग्रवन पर आधारित रचना प्रस्तुत की। अशाेक रावत ने कहा कि आदर्श पिता के रूप में डॉ इंद्रपाल सिंह ने अपनी संतानों का लालन पालन किया। अरुण डंग ने कहा कि जब जेब में पैसे हों और वो खर्च न करे तो वो पिता ही होता है। दृष्टिहीन गायिका आरिफा शबनम ने माता पिता पर आधारित गीत पिताजी छुपे हो कहां की भावपूर्ण प्रस्तुति दी। डॉ बीना शर्मा ने कहा कि पिता कहीं नहीं जाते बस भाई बहनों में बंट जाते हैं। उदय शर्मा ने डॉ इंद्रपाल सिंह की पुस्तक द्रोणाचार्य पर अपने विचार रखे। डॉ मिथलेश दीक्षित ने कहा कि मातृ दिवस के दौर में पिता के प्रति ये आदर्श श्रद्धांजलि है। अंत में कमला सैनी ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि मिट्टी की है देह दीप, आत्मा की इसमें ज्योति..। निखिल प्रकाशन की ओर से संस्था के सदस्यों का सम्मान किया गया। इस अवसर पर मीरा परिहार, राज फौजदार, साधना वैद्य, डॉ रेखा कक्कड़, किरन शर्मा, प्रकाश गुप्ता, अशाेक अश्रु, परमानंद, महेश शर्मा, युवराज सिंह, अलका अग्रवाल आदि उपस्थित रहीं।
डॉ. इंद्रपाल सिंह “इंद्र” का कृतित्व था प्रेरणादायी।
साहित्य जगत में डॉ इंद्रपाल सिंह “इंद्र” को इंद्र धनुषी साहित्य का सर्जक कहा जाता है। उनकी रचनाओं पर आज शोध होते हैं। संस्था द्वारा उनकी 98 वीं जयंती मनाई गयी। उनकी कृतियों में विद्यमान विचार प्रवाह, भाषा, परिपक्वता अपने आप में प्रेरणा देती हैं। महाभारत के गुरु द्रोणाचार्य, आहिल्या जैसे पात्रों पर आधारित रचनाओं ने समाज को नई सोच प्रदान की। अपने जीवन काल में करीब 35 पुस्तकों की रचना उन्होंने की थी। इसके बाद उनकी पांडुलिपियों को एकत्र कर उनकी पुत्री डॉ.सुषमा सिंह निरंतर प्रकाशित कर रही हैं।