हिन्दुस्तान वार्ता। ✍️ जितेन्द्र बच्चन
अक्टूबर-नवंबर में बिहार के विधानसभा चुनाव होने हैं। उसके बाद 2026 में तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल में चुनावी रणभेरी बजेगी। बिहार में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार है। जबकि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और तमिलनाडु में डीएमके की सरकार है। इन तीनों राज्यों के चुनावी आहट होते ही नेताओं के सुर बदल चुके हैं। कल तक जिस पार्टी या दल के मुखिया विकसित प्रदेश, सशक्त भारत, संस्कृति और संस्कार की बात करते नहीं थकते थे, आज वे धर्म और जाति का जहर उगल रहे हैं। वोट बैंक सुरक्षित करने के चक्कर में सारा दृष्टिकोण हिंदू-मुस्लिम पर आकर टिक गया है। मां, बहन और बेटियों तक को गाली दी जा रही है। इतनी गंदी सियासत! जरा सोचिए, इस फिजा में जीतकर सत्ता तक पहुंचने वाले हमारा क्या भला करेंगे? आरोप-प्रत्यरोप के रण में कोई किसी से कम नहीं रहना चाहता। हर नेता खुद को दूध का धुला तो बताता है पर उसकी जुबान काबू में नहीं रहती।
कहां हम तरक्की पसंद भारत को विश्व गुरु होने का डंका पीट रहे थे और कहां सत्ता हथियाने के लिए नफरत की बिसात बिछाने से बाज नहीं आ रहे हैं। आप किसी भी जाति धर्म को हों, अगर इन्हें वोट देते हैं तो बहुत अच्छा,वरना एक मिनट में ये आपको ‘नमक हराम’ बता देंगे! कहने का मतलब इन्हें लोकतंत्र से कोई मतलब नहीं, ये सिर्फ आपका इस्तेमाल करना चाहते हैं। इस तरह के बयान, भाषण और बातें अब आम चुकी हैं। क्या तुष्टिकरण बनाम ध्रुवीकरण की राजनीत हो रही है? जनता और जमीन से जुड़े मुद्दे गायब हो चुके हैं। मोदी जी हों या राहुल गांधी, भाजपा हो या कांग्रेस अथवा अन्य पार्टियां, गरीबी, बीमारी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और महंगाई की बात अब कोई नहीं करता। पक्ष हो विपक्ष, सभी की एक ही नीति है- ‘हिंदू-मुस्लिम का डर-भय दिखाकर वोट बैंक सुरक्षित करो!’
हजारों की संख्या में घुसपैठिए,रोहिंग्या, वक्फ बोर्ड और न जाने क्या-क्या! कोई इनसे पूछे कि जब आपको सब पता है तो उसका खात्मा क्यों नहीं करते? सरकार आपकी है,शासन आपका है, तो कार्यवाही क्यों नहीं की जाती? लेकिन न कोई पूछने वाला है और न ही कोई कार्यवाही होगी, क्योंकि अगर सबकुछ ठीक हो गया तो सियासत कैसे चलेगी? हर पार्टी या दल एक ही बात समझाता है,अभी तक हम जो पिछड़े हैं, क्षेत्र में विकास नहीं हुआ,सड़कें नहीं बनी, भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगी, इसकी सारी जवाबदेही (कांग्रेस हो या भाजपा अथवा कोई अन्य पार्टी) पहले की सरकार की है। अच्छा बहाना है,लेकिन अपने गिरहबान में एक बार भी नहीं झांकते कि अब तो आपकी सरकार है। फिर भ्रष्टाचार चरम पर क्यों पहुंचता जा रहा है? तमाम कानूनी सुधार के बावजूद बहन-बेटियां सुरक्षित क्यों नहीं हैँ? सबकुछ ऑनलाइन होते हुए भी नौकरशाही में घूसखोरी क्यों बढ़ रही है?
दरअसल,सभी का एक ही मकसद है! धर्म और मजहब के नाम पर लोग भयभीत होंगे तो वोट उन्हीं को देंगे और उनकी सरकार बननी तय है। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर कब तक इस आग में लोगों को झोंकते रहेंगे? कब तक धर्म को खतरे में बताकर जनता को बेवकूफ बनाते रहोगे? एक तरफ तो शिक्षित समाज का नारा दिया जाता है तो दूसरी तरफ दकियानूसी बातें की जाती हैं। नफरत की दुकान खोलकर लोगों को डराया-धमकाया जाता है। समाज को भयभीत करने की कोशिश की जाती है। कभी मुसलमानों का भय दिखाकर हमें अपने पक्ष में करते हैं तो कभी हिंदुओं की बात कर आपको डराने की कोशिश होती है। आखिर कब तक यह नफरती सियासत की दुकान चलेगी? जवाब साफ है- जब तक हम आप जैसे इनके ग्राहक बने रहेंगे। राजनीति के पहरेदारों! हमें भय से मत छलो! सत्ता के लिए लोकतंत्र का रास्ता अपनाओ,जनता आपको पलकों पर बैठाकर रखेगी।
- लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

