डर गया चीन, बेहाश हो गया पाकिस्तान।


डॉ0वी0के0सिंह।

         " पत्रकार "

देश/ दुनियाँ। इन दिनों अमरत्व के वरदान से अभिसिंचित, धर्म ध्वजा धारक मीडिया-  सत्ता के समक्ष शाष्टांग दण्डवत होकर रात दिन राफाल का जबरदस्त प्रचार प्रसार कर, चीन और पाकिस्तान को ही नहीं अपितु, सारी दुनियाँ को डरा रही है, सचमुच ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे भारतीय सेना से ज्यादा शक्ति प्रदर्शन तो देश की मीडिया ही कर रही है, और अब तो लगने भी लगा है कि, समूची दुनियाँ को वैश्विक महामारी कोरोना वायरस बाँटने वाला चीन, वुहान की लैब से तृतीय विश्वयुद्ध की पटकथा लिखने वाला, दुनियाँ पर जैविक बम गिराने वाला चीन भी छटपटा रहा और कदाचित सोंच भी रहा होगा कि, वह अमेरिका एव भारतीय सेना के बारूदी प्रहार से मरे या  न मरे किन्तु, वह भारतीय मीडिया के द्वारा, निरन्तर की जा रही वाक्य वर्षा में डूब कर जरूर नेस्तानाबूद हो जाएगा। वैसे भारतीय सेना समय समय पर, आधुनिक हथियारों एव लड़ाकू विमानों से ससक्त होती रही किन्तु, इतना प्रचार प्रसार तो उस समय भी नहीं किया गया जब हमारे देश के मिसाइल मैन( पूर्व राष्ट्रपति) डॉ0 ए पी जे अब्दुल कलाम ने पोखरन परमाणु परीक्षण किया तथा और भी देश को कई अग्नि, पृथ्वी जैसी कई मिसाइलें दी। सत्ता की शक्ति के समक्ष शाष्टांग दण्डवत मीडिया, कभी देश की सरकार से ये सवाल भी कीजिये कि, देश की सबसे बड़ी ऐतिहासिक धरोहर लालकिला क्यो गिरवी रख दिया? देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निश्चय ही 56 इंची सीना रखते हैं, जिसका उन्होंने प्रमाण भी दिया है, और निश्चय ही भारत के सच्चे सपूत, एक सच्चे नागरिक होने के नाते संवैधानिक पद प्रधानमंत्री की राष्ट्रहित में लिये निर्णयों की सराहना करना एव शांतिपूर्ण सहयोग करना हर भारतीय का कर्तव्य भी है किन्तु, हमारे देश के प्रधानमंत्री का नारा है, सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं झुकने दूँगा, मैं देश नहीं बिकने दूँगा।। निश्चय ही यहाँ तक प्रधानमंत्री ने सिद्ध भी किया, पाकिस्तान द्वारा रचित उरी हमले का जवाब, देश के प्रधानमंत्री ने सर्जिकल स्ट्राइक से दिया, एव पुलवामा हमले का जवाब, बालाकोट पर एयर स्ट्राइक करके दिया किन्तु, मैं देश नहीं बिकने दूँगा वाला बयान संदेहास्पद तथा हास्यास्पद प्रतीत होता है। देश की ऐतिहासिक धरोहर लालकिला गिरवी, कई महत्वपूर्ण एयर पोर्ट का निजीकरण, कई रेलवे स्टेशनों का निजीकरण, सरकारी विभागों में रोजगार का निजीकरण फिर, बचा क्या बिकने में? खैर छोड़िये, हमें क्या पड़ी है, हमे जो दिखाई सुनाई दिया,  लिख दिया, वैसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ इतना कमजोर भी नहीं है कि, इसे अपनी शक्ति सिद्ध करने के लिये शक्ति का प्रदर्शन करना पड़े, इतिहास साक्ष्य है कि पत्रकारिता के जज्बे एव भृकुटि भंगिमा मात्र से सत्तायें रेत की तरह ढह गयीं हैं, तथा क्रांतिकारी परिवर्तनों की वाहक भी रही है। देश का विकास---,  विकास- विकास चिल्लाने से नहीं होगा, और न ही मायावती द्वारा पार्क में पार्टी प्रतीक हाँथियों की  प्रतिमाये बनवाने से, और न भारतीय अभियंताओं एव ठेकेदारों को दरकिनार कर चीनी कम्पनी को ठेका देकर, 3000 करोड़ की सरदार पटेल की मूर्ति बनवाने से होगा, बेहतर तो ये होता कि, हांथियों की मूर्तियाँ लगवाने की बजाय देश के हर आम व खास आदमी की जरूरत शिक्षा स्वास्थ एव रोजगार है, ये देश व प्रदेश की प्रजा का धन इनके विकास हेतु, स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी अस्पताल बनाने एव रोजगार के संसाधन उपलब्ध करवाने में खर्च किया होता। किन्तु, सत्तासीन शासकों ने देश की ससक्त मीडिया को वसीकरण का मंत्र एव प्रजा को धर्म का नशा चटाकर बेहोश कर दिया है, अब न कोई सवाल और न कोई जवाब सिर्फ राज ही राज।।