रूडयार्ड किपलिंग आगरा के बुल्फवाय की कई बार स्टैडी करने आये थे
हिन्दुस्तान वार्ता। ✍️ राजीव सक्सेना
आगरा के महानगर के पहचान स्थलों (landmark )की सजावट के चल रहे दौर में भी कई ऐसे स्थल हैं,जो कभी अत्यंत महत्वपूर्ण रहे थे,किंतु इन्हें अब भुला दिया गया है। इन्हीं में से एक है,सिकंदरा आर्फेनेज। यह आश्रय 19 वीं सदी के पांचवें दशक में प्लेग की महामारी से प्रभावित उन व्यक्तियों खासकर छोटे नाबालिग बच्चों का ठिकाना था,जिनके परिवारी जन उन्हें छोडकर बीमारी की चपेट में आकर परलोक गमन कर गये थे।
यहां आकर आश्रय पाने वालों के बीच भेडिया बालक भी था,जिसे कि शिकारियों के दल के द्वारा पकड़कर यहां लाया गया था। "आगरा का भेड़िया लड़का" दीना सानिश्चर के नाम से स्थानीय नागरिकों में इसकी पहचान थी,जबकि राष्ट्रीय स्तर या आगरा से बाहर इसे,आगरा का भेडिया("Wolf Boy of Agra,") के नाम से ज्यादा जाना जाता था।
शिकार पार्टी से सामना :
1867 में नार्थ वैर्स्टन प्रौविंस (अब उत्तर प्रदेश) के जंगलों में शिकार करने निकले अंग्रेज शिकारियों के दल ने बुलंदशहर के घने भेडियों के झुण्ड के बीच सबसे पहले देखा था। फिर उसके रहने की जगह (मांद) को खोज निकाल उसे जीवित ही पकडने का प्रयास प्रारंभ किया। शिकारी दल के इस प्रयास के परिणाम स्वरूप बुल्फ वाय यानि भेडिया बालक को तो पकड़ लिया,किंतं इसके लिये उन्हें गोली चलानी पड़ी। जिसमें तीन भेडिये घायल हो गये थे,जबकि एक मादा भेडिया गोली लगने से मर गयी। बताते हैं कि जब से भेड़िया बालक,भेड़ियों के बीच पहुंचा था, तब से इसी मादा भेड़िया ने ‘बुल्फ वाय’ का लालन पालन किया था।
इस प्रकार वह उसके प्रति मातृत्व भाव रखती थी और इसीलिये वह अपना बचाव करने के स्थान पर शिकारियों के दल से पूरी आक्रमकता के साथ जूझती रही। जिस समय उसे शिकारियों के द्वारा पकड़ा गया था,उस समय उसकी उम्र छै साल होना अनुमानित थी। उस समय उसकी उम्र लगभग छह वर्ष थी। इसे पकड़कर, सिंकदरा आर्फेनेज में रखा गया,तथा 1895 तक जीवित रहने के बाद तपेदिक से उनकी मृत्यु हो गई,उस समय तक टी वी के इलाज की आगरा में कोई व्यवस्था नहीं थी।
बीस साल रहा आर्फेनेज में :
20 वर्षों से अधिक समय तक सिकंदरा आफेनेज (अनाथालय) में रहकर इंसानी व्यवहार को सीखने समझने का उसने बहुत प्रयास किया,हाथ पैरों से भेड़ियों की तरह चलना जंगल से उसकी आदत में शामिल था,किंतु मश्नरी के वालैंटियरों की मदद से वह दो पैरों पर चलना सीख गया,लेकिन इंसानी बोल चाल के तरीके वह कभी भी नहीं सीख सका। बोलना कभी नहीं सीखा। यही शायद मोगली का चरित्र ‘जंगल वॉय’ के रूप में लोकप्रियता का मुख्य कारण रहा।
शनिश्चर ही किपलिंग का ‘मोगली’ :
वैसे रूडयार्ड किपलिंग (Rudyard Kipling. ) द्वारा इसकी पुष्टि न होने के बावजूद,जंगल में पले-बढ़े एक लड़के की ‘शनिश्चर’ की कहानी को व्यापक रूप से मोगली चरित्र का प्राथमिक स्रोत माना जाता है,हालांकि उन्होंने अपने कथा नायक काल्पनिक चरित्र ‘मोगली’ का जीवन कहीं अधिक साहसिक था।कहानी को रुचिकर बनाना शायद इसकी जरूरत थी। 1883 से 1889 तक किपलिंग ने ब्रिटिश भारत में स्थानीय समाचार पत्रों में काम किया था। जिनमें लाहौर से प्रकाशित ‘Civil and Military Gazette ‘ और इलाहाबाद से प्रकाशित ‘The Pioneer’ शामिल हैं। पाइनियर में पत्रिकारिता करने के दौरान उसका आगरा आना जाना भी रहा। इसी आवागमन के दौर में उसने सिकंद्रा आर्फेनेज का भी कई बार निरीक्षण करने के दौरान शनिश्चर के व्यवहार का भी अध्ययन किया। जब मोगली से संबधित उसकी प्रख्यात किताब जंगल बुक ( The Jungle Book)प्रकाशन वर्ष 1894 को पढते हैं तो बहुत सी समानतायें उसके काल्पनिक चरित्र ‘मोगली’ और शनिश्चर में समान रूप से पाते हैं। हकीकत में किपलिंग की पुस्तक शनिश्रर के जीवित रहने के दौरान ही लिखी गई और प्रकाशित भी हुई। वैसे भी रूडयार्ड मूल रूप से पत्रकार थे,उनकी अपनी कल्पना शक्ति व्यापक थी,वन्यजीवन पर किसी भी कहानी का ताना-बाना बुनने में उस समय उनके बराबर और कोई नहीं था।
इंसानी और भेड़िया समूह के बीच बिताई जिंदगी के दौर में उसको कई आदतें उसके जीवन का हिस्सा बन गई थीं। वह अपने से स्नेह करने वालों को पहचानने लगा था। जब तब संवाद करने की कोशिश करने वालों को समझने के लिये वह अनुत्तरित प्रश्नों के जबाब में आसमान की ओर उंगली उठा देता था।मानो कह रहा हो कि मुझे तो नहीं मालूम अगर पूछ सको तो ऊपर वाले को पूछ लो।शनिश्चर से नियमित मिलने पहुंचने वालों को लगता था कि वह ईश्वर विश्वासी है,इसीलिये जब भी जरूरत महसूस करता है,आसमान की ओर उंगली उठाकर उसे याद कर लेता है।
बुल्फ वॉय को चर्च के समारोह के अवसरों पर गाये जाने वाली धार्मिक कोरासों की धुन अच्छी लगने लगी थी।धार्मिक अवसरों पर सिकंदरा चर्च पहुंचने वाले उसके लिये रंगीन कपडे और केला ले जाना कभी नही भूलते थे। वह कपडे बडे चाव से पहनता था,लेकिन कुछ ही समय में उन्हे तार तर कर देता था। भेड़ियों के बीच पला-बढ़ा, बुल्फवाय आगरा के सिकंदरा के आर्फनेज (अनाथालय) में लाने के बाद से 20 साल तक जरूर रहा, किंतु मिश्नरी के कर्मियों से कभी पूरी तरह से घुलमिल नहीं पाया,काफी हद तक शांत और जंगली बना रहा।
रिसोर्स सेंटर की पहली ऐंट्री :
आगरा वासियों की पर्यावरण संबधी कानूनों और पठ्निय सामिग्री को अध्ययन के लिये सहज उपलब्ध करवाने के लिये सूर सरोवर पक्षी अभ्यारण्य परिसर में 'प्रकृति अध्ययन केन्द्र ' नेचर रिसोर्स सेंटर' केन्द्र बनाया गया था।जलाधिकार फाऊंडेशन द्वारा संचालित प्राकृतिक अध्ययन को समर्पित इस केन्द्र पर आयोजित उद्घाटन कार्यक्रम के अवसर पर 'पहली पुस्तक के रूप में ' सनीचर वुल्फ बॉय आफ इंडिया ' भेंट की गयी। इस पुस्तक की एक प्रति चम्बल सेंचुरी नेशनल प्रोजेक्ट के उपवन संरक्षक आनंद श्रीवस्तव ने पुस्तक को ग्रहण करते समय इस अत्यंत महत्वपूर्ण व ज्ञानवर्धक बताया था। पुस्तक प्रतियां लोकस्वर संस्था के अध्यक्ष एवं प्रख्यात उद्यमी राजीव गुप्ता के द्वारा उपलब्ध करवायी गयीं तथा पत्रकार राजीव सक्सेना ने उनकी ओर से इन्हें भेंट कीं।
राजीव गुप्ता प्रकृति प्रेमी हैं और कभी आगरा में घर घर पायी जाने वाली गौरया के विलुप्त प्राय हो जाने के बाद इसके संरक्षण के अभियान मे जुटे हुए हैं। उनके द्वारा पिछले कई साल से विशेष प्रकार से बनाये गये घौंसलो का वितरण किया जा रहा है,जो कि पक्षियों के द्वारा बेहद पसंद कियेजाते हैं।
आगरा का बुल्फवाय :
आगरा का 'बुल्फवाय ' प्रख्यात लेखक रुपर्ड मैकार्ड की प्रख्यात पुस्तक 'जंगल बुक ' का नायक 'मोगली' भले ही काल्पनिक रहा हो किन्तु ' सनीचर वुल्फ बॉय आफ इंडिया ' असली है। इसे अमेरिकन के द्वारा न्यूयार्क में 1003 में प्रकाशित किया गया था। यह सिकन्दरा आर्फनेज से संबधित पेपरों मे आंकित विवरणों पर आधारित है जिन्हे किसी एस रैवेंडर वैलेंटाइन , एल.एल.डी., एफ. आर.सी.एस.ई. के द्वारा एडिड किया गया था।
साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण :
नागरी प्रचारिणी सभा के मंत्री डा.चन्द्र शेखर शर्मा ने रिसोर्स सेंटर को आगरा के लिये एक महत्वपूर्ण कार्य करार दिया था। उन्होंने कहा था कि आगरा से संबधित साहित्य चाहे वह किसी भी भाषा में हो बचाया जाना चाहिए । उन्होंने श्री गुप्ता के द्वारा सौ साल से ज्यादा विलुप्त प्राय पुस्तक को नयी पीढी के लिये उपलब्ध करवाये जाने के कार्य को महत्वपूर्ण योगदान माना है।
रूडयार्ड किपलिंग की 150 वीं जयंती मनायी थी :
जंगल बुक के लेखक रूदियार्ड किपलिंग ने कथा साहित्य के अतरिक्त कवितायें(poetry)भी लिखी हैं। 13 मार्च 2016 को किपलिंग की 150 वीं जयंती मनाकर कवि(poet ) के रूप में याद किया गया था। आगरा के लिट्रेरी सर्किल के प्रमुख संगठन इंग्लीश लिटररी सोसाइटी ऑफ आगरा (एल्सा) द्वारा यह संजय प्लेस स्थित यूथ हॉस्टिल में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया।दिलचस्प तथ्य है कि आगरा के अलावा इस प्रकार का कार्यक्रम उ प्र में कहीं पर भी नहीं हुआ।
इसे मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए,आगरा कॉलेज के हेड ऑफ इंग्लिश डिपार्टमेंट डा.एन के घोष ने कहा कि अँग्रेज़ी कवि रूदयार्ड किपलिंग का जन्म 1865 में मुंबई में हुआ था,1907 में उनको नोबेल पुरूस्कर से सम्मानित किया गया। जंगल बुक में मोगली के चरित्र ने उनकी लोकप्रियता में चार चाँद लगाए। उनके साहित्यक पक्ष पर अभी और काम(शोध)किये जाने की जरूरत है।
डा.आर एस तिवारी शिखेरेश, आर बी एस कॉलेज. के डा.संजय मिश्रा आदि ने भी विषय विद्वान के रूप में विचार अभिव्यक्तियों की थीं। सर्वश्री शिव प्रताप सिंग, अजय सिंह राठौर, अजय शर्मा, अमित कर्दम, पद्मिनी अय्यर, कॉमिला सुनेजधर,वेद पल धार , अमीन उस्मानी, मनोज श्याम, ललित मोहन शर्मा, श्रवण कुमार सिंह, अंकित सिंह आदि सहित अनेक अँग्रेज़ी भाषा के स्टूडेंट्स.शामिल थे।
नगर निगम नगर निगम का प्रयास है ’मोगली पार्क’ विकसित करने का :
नगर निगम बुल्फवॉय आगरा के बारे में जानकारी देने वाला एक पार्क विकासित करवाना चाहता है। श्री अंकित खंडेलवाल साहित्यिक अभिरूचि के हैं,उन्होंने सहायक नगर आयुक्त श्री अशोक प्रिय गौतम सिकंदरा चर्च स्कूल और चर्च के अधिकारियों से संपर्क भी किया,लेकिन मामला अब तक अटका ही चल रहा है। नगर निगम के द्वारा स्पष्ट कर दिये जाने के बावजूद प्रबंधन अपने संशयों को दूर नहीं कर पा रहा है। नगर आयुक्त चाहते हैं कि मोगली पार्क बनाया जाये,जिसका प्रबंधन चर्च के पास ही रहे। नगर निगम के द्वारा चर्च की एप्रेोच लेन पर मोगली (बुल्फ वॉय ऑफ आगरा)की कई आकर्षक पेंटिंगे भी करवायीं किंतु वह भी अब धुंधली सी पड़ गयीं हैं।
लेखक - वरिष्ठ पत्रकार हैं।



