🕉️ धन्वन्तर्ये नमः।


म शरद ऋतु प्रकाश डाल रहे हैं।


धरती पर अब शरद ऋतु का प्रारंभ हो रहा है ।दो मास शरद ऋतु का प्रभाव धरती पर पड़ेगा ।


क्रिश्चियन काल गणना के अनुसार  यह 16 September 2020 से  15 November 2020 तक शरद ऋतु है ।


क्रिश्चियन भाषा में इस ऋतु को Autumn Season कहते हैं ।


आयुर्वेद में कहा गया है कि वर्षा ऋतु में विभिन्न प्रकार के बाधाओं से लड़ने के लिए प्राणी विभिन्न प्रकार के औषधियों का सेवन करते हैं;  जिससे उनकी शरीर में स्थित अग्नि प्रज्वलित होने लगती है; उस अग्नि का यदि शमन नहीं किया जाए तो आगे जाकर यह बड़ी विपत्ति को जन्म देंगी । यहाँ तक कि प्राणी के मन में हिंसात्मक भावनाएँ लहर उठेगी ।


अतः सबसे पहले तो अग्नि अर्थात पित्त की शमन के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए ।


वर्षा ऋतु में संचित पित्त शरद ऋतु में सूर्य की किरणों से सहसा  कुपित हो जाती हैं । अतः पित्त के शमन के लिए खाद्यान्न का सेवन करना चाहिए । तिक्त रस से युक्त जैसे कि करेला तथा तिक्त द्रव्यो से सिद्ध किया घृत का सेवन करना चाहिए । जैसे कि आयुर्वेदोक्त औषधि तिक्तक घृत, महातिक्तक घृत, भूनिम्बादि घृत, अमृत भल्लातक अवलेह, पँचतिक्त घृत , महाखदिरादि घृत आदि ।


शरद ऋतु में पित्त के शमन के लिए विरेचन  (पेट साफ के लिए औषधि) सेवन करना चाहिए; जिससे कि शरीर में से पित्त बाहर निकल जाएँ ।

शरद ऋतु में विशेष रूप से मधुर रस तथा तिक्त रस का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए; परंतु  गुरु आहार नहीं;  अपितु लघु आहार का सेवन करना चाहिए ।


शीतल द्रव्य, जिस द्रव्य का सेवन करने पर आपका पित्त में वृद्धि न हो ऐसे द्रव्यों का सेवन करना चाहिए ।


शरद ऋतु में विशेष रूप से एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि जब भूख लगे तभी भोजन करना चाहिए;  जब तक भूख ना लगे तब तक भोजन नहीं करना चाहिए; अन्यथा आपके शरीर में पित्त बढ़ जाएगी ।


आजकल चारों ओर केवल एक पट्ट दृश्य देखने को मिलता है कि   "रक्त दानं महत् पूण्यं " परंतु आयुर्वेद के अनुसार शरद ऋतु में पित्त हमारे रक्त में स्थित रहता है इसका प्रमाण यह है कि आपको ग्रीष्म ऋतु में भी उतना गर्मी का अनुभव नहीं लगा होगा; जितना कि शरद ऋतु में अनुभव होता है ।


इसलिए आयुर्वेद के अनुसार शरद ऋतु में रक्त दान नहीं करना चाहिए क्योंकि शरद ऋतु में रक्त मोक्षण के लिए कहा गया है अर्थात पहले वैद्य गण जोंक लगाकर रक्त निकाल फेंक देते थे;  आजकल यह क्रिया कोई कोई वैद्य जी ही करते हैं।



शरद ऋतु में कटु रस, देर से पचने वाली, पापड़,  आचार, खट्टी चीजें,  नमकीन आदि का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे आपके शरीर में पित्त बढ़ेगी और आप अग्निमान्द्य रोग से ग्रसित हो जाएँगे ।



शरद ऋतु में अधिक समय सूर्य की किरणों का सेवन नहीं करना चाहिए,  तैल,  चर्बी, दही,  रात को बाहर सोना, उड़द की दाल तथा तुवर की दाल , जल में रहने वाले प्राणी का मांस जैसे कि मछली आदि का सेवन नहीं करना चाहिए ।


शरद ऋतु में दिन में नहीं सोना चाहिए;  मछली नहीं खाना चाहिए;  जो वायु पूर्व दिशा की ओर से बहती हो उस वायु का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार यदि इन सबका सेवन करते हैं तो आपको श्वास रोग(Asthma) तथा सन्धिवात रोग  (Arthritis) होना अवश्यम्भावी है । अतः इनका त्याग कर दें ।



जहाँ पर दिन में सूर्य की किरणें पड़ती है तथा रात को चन्द्रमा की किरणें पड़ती है तथा वायु का आवागमन भी होता हो वहाँ पर स्नान करना चाहिए तथा ऐसे जल को पीना चाहिए । यदि सम्भव हो तो मांस का सेवन करना चाहिए क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार शरद ऋतु में मांस का सेवन करने से आपको अरुचि,  अजीर्ण, अग्निमान्द्य आदि रोगों से बचाव होगा । किन्तु मुर्गी का मांस नहीं खाना चाहिये ।


शरद ऋतु में चन्द्रमा की किरणों में टहलना चाहिये ।


आयुर्वेद में एक श्लोक का उल्लेख मिलता है ।


वैद्यानां शारदी माता पिता च कुसुमाकरः।

यमदंष्ट्रा स्वसा प्रोक्ता हितभुग् मितभुग् रिपुः।।


अर्थात वैद्यों के लिए शरद ऋतु माता के समान तथा वसन्त ऋतु पिता के समान है । यह दो ऋतु मृत्यु के देवता यमराज की दो दाँत है ऐसा समझना चाहिए । इसके लिए केवल एक ही उपाय है कि हित कर आहार तथा लघु आहार का सेवन करें ।


धन्यवाद

 ✍सत्यवान नायक