हिन्दी जगत के पहले कवि चंदवरदाई की जयंती पर विशेष : "गौसेवक" खोजी बाबा

 


🙏🏻🚩🙏🏻🚩🙏🏻🚩🙏🏻🚩🙏🏻🚩🙏🏻🚩

 आज हिन्दी जगत के पहले और प्रसिद्द कवि चंदवरदाई की जयंती है। चंदबरदाई भारत के आखिरी हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के परम मित्र तथा राजकवि और हिन्दी के आदि महाकवि भी थे।

  

              चंदबरदाई को हिन्दी का पहला कवि और उनकी रचना "पृथ्वीराज रासो" को हिन्दी की पहली रचना होने का गौरव व सम्मान प्राप्त है। 


         चंदबरदाई का जन्म १२०५ संवत में लाहौर में हुआ था और ये जाति के राव या भाट थे।


      चंदबरदाई का प्रसिद्धि ग्रंथ "पृथ्वीराज रासो" है। इनकी भाषा को भाषा शास्त्रियों ने पिंगल कहा है , जो राजस्थान में ब्रजभाषा का समानार्थक  शब्द है। इसलिए चंदवरदाई को ब्रजभाषा हिन्दी का प्रथम कवि माना जाता है।


       'पृथ्वीराज रासो' की रचना महाराज पृथ्वीराज के युद्ध - वर्णन के लिए की गई है। उसमें उनके वीरतापूर्ण युद्धों और प्रेम - प्रसंगों का वर्णन किया गया है। इसलिए उसमें *वीर* और श्रृंगार दो ही रस हैं। चंदवरदाई ने इस ग्रंथ की रचना प्रत्यक्षदर्शी की भाँति की है। इसलिए इसका काल संवत १२२० से संवत १२५० तक होना चाहिए।


            विद्वान "रासो" को १६ व़ी अथवा उसके बाद की किसी शती का अप्रमाणिक ग्रंथ मानते हैं। अनन्द विक्रम संवत भारत में प्रचलित अनेक संवतों में से एक है। इसका प्रयोग *पृथ्वीराज रासो* के कवि चंदवरदाई  ने , ११९२ ई. में.मुसलमानों के आक्रमण के समय दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान का राज कवि थे, उनके लीए किया है।


  ...आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने "हिन्दी साहित्य का इतिहास" में लिखा है कि चंदवरदाई , ये हिन्दी के प्रथम महाकवि माने जाते हैं। और *पृथ्वीराज रासो*  उनका प्रथम महाकाव्य है। चंदवरदाई दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट , महाराजा पृथ्वीराज के सामंत और राजकवि के रूप में प्रसिद्धि हुये हैं। इससे उनके नाम में भावुक हिन्दुओं के लिए एक विशेष प्रकार का आकर्षण है। *रासो* के अनुसार वे भट्ट जाति के जगात नामक गोत्र के थे। उनके पूर्वजों की भूमि पंजाब थी। जहाँ लाहौर में इनक जन्म हुआ था। 


       इनका और महाराज पृथ्वीराज का जन्म एक ही दिन हुआ था और दोनों ने एक ही दिन यह संसार भी छोडा था। ये महाराज पृथ्वीराज के राजकवि ही नहींं , उनके परम मित्र और सामंत भी थे। तथा षड्भाषा व्याकरण , काव्य , साहित्य , छंद शास्त्र , ज्योतिष , पुराण , नाटक आदि अनेक विद्याओं में पारंगत थे। 


         उन्हें जालंधर देवी की कृपा प्राप्त थी। जिसकी कृपा से ये अदृष्ट काव्य भी कर सकते थे। इनका जीवन पृथ्वीराज के जीवन के साथ ऐसा मिला - जुला था कि अलग नह़ीं किया जा सकता। युद्ध में आखेट में , सभा में , यात्रा में सदा महाराज के साथ रहते थे और जहाँ जो बातें होती थीं , सब म़े सम्मिलित रहते थे।


     चंदवरदाई का निधन संवत १२४९ को हो गया था ।


                    - "गौसेवक" पं. मदन मोहन रावत

                                "खोजी बाबा"


🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹