"देवी मैया" करेंगी बेड़ा पार,अरे मन काहे कूँ डरे।।





 ✍विजय किशोर बंसल

वर्तमान भौतिकवाद के दौर में मनुष्य आधारभूत आवश्यकतओं

के साथ साथ सुख-,सुविधाओं के साधन ,जुटाने में रात-दिन लगा हुआ है।

ऐसे में स्वयं के सिवाय किसी और के बारे में सोचने -बिचारने का समय नहीं है।

भोग के इन साधनों को पाने की स्पर्धा ने उसका न केवल चित्त -मन की शान्ति और चैन छीन लिया है , बल्कि उसे बुरी तरह अशान्त और भयभीत भी बना दिया है। इस स्थिति में घर-परिवार और समाज से अलग -थलग पड़ जाने के कारण वह स्वयं को अकेला अनुभव करता है। यह स्थिति समाज के अन्य लोगों की भी है। वे भोग के साधन के लिए , एक -दूसरे को तरह-तरह के दुःख देकर धन ऐंठ रहे हैं। इससे मनुष्य का मन मस्तिष्क रोगी हो गया है, जिसका प्रभाव उसके समग्र शरीर पर पड़ रहा है।

इस तरह मनुष्य अनेक प्रकार के रोगों से पीड़ित है।

ऐसे में मनुष्य देवी माँ की शरण में आये.. जो सभी बाधाओं -दुःखों को हरने वाली है।

ऐसा मेरा बिचार ही नहीं ,अनुभव भी है। 

जय हो कैला मैया की...🙏🏼


लाख मुश्किलें आएं ,मेरे ऊपर,,

फिर भी तेरे सहारे सब दूर हो जातीं हैं ..मेरी देवी माँ।।🙏🏼..

"विजय किशोर बंसल ,


देवी भक्त / प्रमुख समाज सेवी