एमिटी विश्वविद्यालय में भारतीय न्यायतंत्र एवं उसके वर्तमान संकट पर वेबिनार का आयोजन



नोयडा (हि. वार्ता )

छात्रों को भारतीय न्यायप्रणाली के संर्दभ में और वर्तमान में उसके समक्ष आ रही चुनौतियों की जानकारी प्रदान करने के लिए एमिटी विश्वविद्यालय द्वारा वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एंव उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री दुष्यंत दवे ने ‘‘ भारतीय न्यायतंत्र एंव उसके वर्तमान संकट’’ पर छात्रों को व्याख्यान प्रदान किया।

वेबिनार में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एंव उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री दुष्यंत दवे ने ‘‘ भारतीय न्यायतंत्र एंव उसके वर्तमान संकट’’ पर छात्रों को जानकारी प्रदान करते हुए कहा कि भारतीय न्यायप्रणाली हमारे संविधान, लोकतंत्र एंव देश का प्रमुख हिस्सा है। भिन्न भिन्न के धर्मो, विचारों, जातीयों, स्तरों और कई प्रकार से विविधताओं वाले इस देश के लोगों को अधिकारों को सुरक्षित रखने में न्यायपालिका बेहद अहम भूमिका निभाता है। संविधान का स्तर धर्म ज्ञान देने वाली पुस्तकों जैसे गीता, बाइबिल, कुरान आदि के समान उंचा है जो लोगों को न्याय प्रदान करती है। उन्होनें अमेरिका के चुनाव का उदाहरण देते हुए कहा कि सरकार का विरोध करने के कारण कई अधिकारियों को निकाल दिया गया किंतु भारत में न्यायप्रणाली के रहते ऐसा संभव नही है। उन्होनें छात्रों से कहा कि इस आजादी एवं लोकतंत्र को प्राप्त करने के लिए हमारे बुजुर्गो ने कई कुबार्नियां दी और यतानायें सहित अपनी जान के देकर हमें आजादी का तोहफा प्रदान किया है। श्री दवे ने कहा कि संविधान किसी भी लोकतंत्र का सबसे मजबूत आधार होता है।

श्री दवे ने कहा कि हमें संविधान के हर भाग का समान आदर करना चाहिए और किसी भी स्तर पर उसको असफल होता देखें तो अन्य भागों को उसकी सहायता करनी चाहिए। न्यायपालिका, सरकार के कार्यो पर नजर रखती है और लोगों के जीवन के अधिकार सहित अन्य अधिकारों को सुरक्षित रखती है। उन्होनें न्यायतंत्र की चुनौतियों को बताते हुए कहा कि सर्वप्रथम बढ़ते हुए केसों की संख्या सबसे बड़ी चुनौती है आज लगभग 4 करोड़ केस पेडिंग है और लोगों को न्याय प्राप्त करने में वर्षो लग जाते है। न्यायाधीशों की कमी इन केसों के बोझ को बढ़ा रही है। न्यायपालिका अपरिवर्तनवादी हो रही है जिससे लोगों को न्याय मिलने में देर हो रही है इससे एक कार्यबाधा की प्रवृत्ति बन रही है। उन्होनें कहा कि कार्य न्यायाधीश केन्द्रीत नही बल्कि न्यायालय केन्द्रीत होना चाहिए। सरकारे सदैव चाहती है कि न्यायपालिका कमजोर बनी रहे जिससे उनके लिए गये निर्णय पर कोई प्रश्नचिन्ह ना लगे। श्री दवे ने कहा6 कि न्यायपालिका का कार्य सरकार के कार्यो में बाधा पहंुचाना नही है किंतु उस पर नजर रखना है जिससे लोगों के हितों के लिए गये फैसलों के संर्दभ में जान सकें। उन्होनें कहा कि न्यायतंत्र को अधिक सक्रिय होना होगा जिससें वे अपनी भूमिका का और बेहतर तरीके से निवृहन कर सकें।

इस अवसर पर छात्रों एंव शिक्षकोें ने कई प्रश्न किये जिनके उन्हें समुचित जवाब भी प्राप्त हुए।

----------------------------------------