ॐ धन्वन्तर्ये नमः।




दही का सेवन लाभकारी या हानिकार।  


आजकल चारों ओर दही का सेवन कुछ अधिक मात्रा में लोग कर रहे हैं। अच्छी बात है, परंतु जिस प्रकार से दही का सेवन हो रहा है वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। आईए जानते हैं कि आयुर्वेद में क्या उल्लेख है।


शरद् ग्रीष्म वसन्तेषु प्रायशो दधि गर्हितम्।

हेमन्तेशशिशिरेचैव वर्षाषु दधि शस्यते।।


अर्थात् वसंत, ग्रीष्म एवं शरद ऋतु में दही का सेवन अहितकर तथा वर्षा हेमंत एवं शिशिर ऋतु में दही का सेवन स्वास्थ्य के लिए परम हितकारी है।


दधि मधुरमम्लमत्यम्लम् चेति।


अर्थात् दही का सेवन तीन अवस्थाओं में किया जाता है। मधुर अर्थात मीठा दही, अम्ल अर्थात खट्टा दही एवं अत्यम्ल अर्थात बहुत खट्टा दही।


नाश्नीयाद् दधि नक्तमुष्णं वा,

 न घृतमधुशर्करामुद्गामकैर्विना वा,

नवाप्यलवणं नोदक वर्जितं वा भुंञीत।।


न नक्तंदधि भुंञीथ नचाप्य घृत शर्करम्।

नामुद्गयुषं नाक्षौद्रं नोष्णं नामलकैर्विना।


रात्रि के समय, बिना घी मिलाकर, बिना गुड़ मिलाए, बिना मुंग का दाल मिलाए, बिना शहद मिलाकर, आंवला न मिलाकर दही कदापि नहीं खाना चाहिए। तथा दही को कभी भी गर्म करके नहीं खाना चाहिए।


हमारे भारत देश में खाद्यान्न में दही को एक स्वतंत्र स्थान प्राप्त है। लोक व्यवहार में मंगलाष्टक में भी वर्णन है कि यात्रा के समय दही का दर्शन शुभ होता है। यथा:-

दधि-मधु-रजत-कांचन-शुक्लधान्यम्।


शास्त्र में यह भी कहा गया है कि

अलक्ष्मी दोषयुक्त त्वान्नक्तं तु दधिवर्जितम्।

रात को दही खाने से लक्ष्मी माता क्रोधित हो जाती हैं।


प्राचीन काल में दही को पोआ के साथ मिलाकर लोग खाते थे। यह लोगों का मुख्य भोजन रहा है। ग्रीष्म ऋतु में लोग जी भरकर दही का शर्बत बनाकर पीते हैं। किन्तु आयुर्वेद में निषेध है तथापि दही खाना है तो दही में घी, गुड़ मुंग का दाल, शहद अथवा आंवले का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।


आजकल तो चारों ओर सलाद भोजन के साथ मिलाकर खाने की एक होड़ लगी हुई है। खीरा, ककड़ी एवं दही मिलाकर सलाड़ बनाकर खाते हैं। आयुर्वेद की दृष्टिकोण से ककड़ी, खीरा एवं दही ये सभी कफ वर्धक हैं। इसलिए उसमें सेंधानमक एवं कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करें। जो कि कफ नाशक है।

✍ सत्यवान नायक