फूलों लदी रात की रानी

  


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नयनों में सुधियों के सपने, उतरे मोती सीप में।

फूलों लदी रात की रानी, महके कहीं समीप में।।...

   मन के द्वारे कलश भर गये,

   चौक पुर गये आंगन ।।

   कितने दिन के बाद हँसी है,

    सजी साँझ की दुल्हिन।

बही बयार सगुन की सौंधी, चंदन गंध समीप में।...

    जब-जब चंदा सज के झाँके, 

    धरा करे श्रंगार ।

    शांत उदधि के अंतर में भी,

     उठें मिलन के ज्वार।

चुपके से आकर बस जाते,सूने सागर द्वीप में।।...

    अँधियारे की चादर आढ़े,

     गगन.रहा भरमाया।

     पलकों के अंदर आ बैठी,

      छली रुपहली छाया।

साँसों में तारों की बाती,प्राण नेह के दीप में।।

फूलों भरी रात की रानी, महके, कहीं समीप में।।...

......परमानंद.....