एमिटी विश्वविद्यालय की कार्यशाला में छात्रों को बताया तनाव एवं चिंता से निपटने के उपाय

 





हिन्दुस्तान वार्ता, नोएडा।

विद्यालयी छात्रों को अपनी आंतरिक शक्ती और क्षमता को मजबूत करने और जीवन मे ंआने वाली चुनौतियों और अवसरों का सामना करने की क्षमता को बढ़ाने के उददेश्य से एमिटी विश्वविद्यालय द्वारा ‘‘प्रसन्नता और आंतरिक क्षमता विकास पर कक्षा 8 से 12 वी के छात्रों हेतु आयोजित चार दिवसीय आॅनलाइन कल्याण कार्यशाला के अंर्तगत आज ‘‘ मुस्कुराओ और आंतरिक स़द्वभाव के लिए विश्व के साथ चलना सीखों’’ विषय पर विशेषज्ञों ने जानकारी प्रदान की। इस सत्र का शुभारंभ एमिटी विश्वविद्यालय उत्तरप्रदेश की वाइस चांसलर डा (श्रीमती) बलविंदर शुक्ला द्वारा प्रतिभागियों का स्वागत करके किया गया। आज के द्वितीय सत्र में एमिटी सेंटर फाॅर गाइडेंस एंड कांउसलिंग की कांउसलिंग साइकोलाॅजिस्ट सुश्री निकिता प्रभाकर, एमिटी स्कूल आॅफ कोरपोरेट कम्युनिकेशन के डिप्टी डायरेक्टर डा अनिल सहरावत और एमिटी स्कूल आॅफ कोरपोरेट कम्युनिकेशन की एस्सीटेंट प्रोफेसर डा सुचिता चंडोक और ने अपने विचार साझा किये।


एमिटी विश्वविद्यालय उत्तरप्रदेश की वाइस चांसलर डा (श्रीमती) बलविंदर शुक्ला द्वारा प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि वर्तमान समय में कोरोनाकाल ने सभी को प्रभावित किया है इसलिए एमिटी विश्वविद्यालय द्वारा विद्यालयी छात्रों को आंतरिक क्षमता के विकास हेतु और उनके अभिभावकों, शिक्षकों और मार्गदर्शकों की द्वारा बेहतर समर्थन देने में मदद करने के उद्देश्य से कार्यशाला का आयोजन किया गया है। डा शुक्ला ने कहा कि आंतरिक स़द्वभाव हमारी क्षमता को विकसित करता है और महामारी के समय में अपने परिवार, शिक्षकों, मित्रों के साथ पारस्परिक संबंधों को विकसित करना आवश्यक है।


एमिटी सेंटर फाॅर गाइडेंस एंड कांउसलिंग की कांउसलिंग साइकोलाॅजिस्ट सुश्री निकिता प्रभाकर ने ‘‘ महामारी के दौरान तनाव और चिंता से निपटना’’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि महामारी के समय लोगों के तनाव और चिंता का स्तर बढ़ा है और मानसिक स्वास्थय के लिए तनाव एवं चिंता से मुक्त होना आवश्यक है। तनाव दो किस्म के होते है प्रथम अच्छे तनाव जो आपको प्रोत्साहित करते है विकास के लिए और द्वितीय बुरे तनाव जो आपके विकास में बाधक बनते है। वर्तमान समय में अपने और प्रियजनों के स्वास्थय, शिक्षा, भविष्य, रोजगार आदि को लेकर तनाव व्याप्त हो रहा है। सुश्री प्रभाकर ने कहा कि अच्छी नींद ना आना, मानसिक केन्द्रीकरण में बाध्यता, मानसिक अनुपस्थिती, अवसाद, क्रोध, पारिवारिक संर्घष, सरदर्द और कमर का दर्द आदि तनाव के लक्षण हो सकते है। उन्होनें शारीरिक लक्षणों को बताते हुए कहा कि अगर आपके भोजन की मात्रा कम या अधिक हो गई है, स्वंय को थका महसूस करते है, निरंतर सर और शरीर में दर्द, अनिद्रा, रोगों से घिरा होना आदि और मानसिक लक्षणों को बताते हुए कहा कि चिंता, घबराहट, अधिक क्रोध या अवसाद, शीघ्र परेशान होना, आत्मविश्वास की कमी, घ्यान केन्द्रीत ना कर पाना आदि तनाव के लक्षण है। व्यक्ति को निराशावान की बजाय सदैव आशावान होना चाहिए। महामारी के दौरान समाजिक दूरी का अर्थ मानसिक दूरी नही है आपको तकनीक का उपयोग करते हुए अपने मित्रों और परिवार के लोगों से संर्पक में रहना चाहिए।, घर में सदस्यों के साथ बातें करे, बुजुर्गों के अनुभवों को जाने, परिवार के साथ भोजन करें और लोगों के प्रति आभार प्रकट करें। यह सही वक्त है जब आप अपनी रचनात्मकता को निखार सकते है। सुश्री प्रभाकर ने कहा हम अपने तनाव का प्रबंधन कर सकते है इसके लिए स्वास्थय वर्धक तकनीकों को अपनाना होगा। अपने शौक के वक्त निकालें, पुस्तके पढ़े या चित्रकारी करे। स्वंय को रिचार्ज करें। मेडिटेशन करें, विश्रांती को प्रोत्साहित करे। तनाव मुक्त रहने के रणनीती को अपनाये जिसमें प्रथम तनाव से बचने की कोशीश करें, द्वितीय तनाव के कारण को बदलनें की कोशिश करें, तृतीय तनाव को आत्मसात करें और चतुर्थ तनाव को स्वीकार करें। स्वंय की देखभाल करें, स्वंय को प्रसन्नचित्त रखे और विशिष्ट समझें।


एमिटी स्कूल आॅफ कोरपोरेट कम्युनिकेशन के डिप्टी डायरेक्टर डा अनिल सहरावत ने ‘‘ सुनना सहानुभूति है’’ पर व्याख्यान देते हुए कहा कि कई बार दूसरों को सुनना भी उन्हे सहानुभूति प्रदान करता है। सुनना, केवल लोगो ंको समझने के लिए नही होता बल्कि यह दूसरों से जुड़ने मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। सुनना एक प्रक्रिया है जिसमें हम निंरतर प्राप्त करते है, अपने अर्थ का निर्माण और पुनः निर्माण करते है और बोले गये गैर संचारी संदेशों का जवाब देते है। जब हम जवाब नही देते तो कहने वाले के लिए यह समझना मुश्किल होता है कि संदेश प्राप्त हुआ की नही। डा सहरावत ने कहा कि सुनने की प्रक्रिया में चार चरण है प्रथम चरण उपस्थित होना, द्वितीय चरण समझना, तृतीय चरण प्रतिक्रिया देना और चतुर्थ चरण याद रखना है। उन्होनें कहा कि सुनने की खराब आदतें से बचने के लिए संवादी संकीर्णता, प्रतिस्पर्धी व्यवधान, छद्म सुनना, बोलने वाली की कमियों को ढूढंना आदि से बचने की कोशीश करें तभी आप एक अच्छे श्रोता बन पायेगें। सुनने के चार मुख्य प्रकार है प्रथम सूचनात्मक सुनना, द्वितीय अलोचनात्मक सुनना, तृतीय सहानुभूति सुनना और चतुर्थ सक्रिय सुनना है। सहानुभूति दूसरों की भावनाओं और विचारों समझना है। डा सहरावत ने प्रतिक्रिया के तरीके के संर्दभ में बताते हुए कहा कि मूल्यांकन प्रतिक्रिया, सलाह प्रतिक्रिया, व्याख्या प्रतिक्रिया, सामग्री केवल प्रतिक्रिया, जांच प्रतिक्रिया, सहयोगात्मक प्रतिक्रिया और समझना प्रतिक्रिया है।


द्वितीय दिन के सत्र में मिटी स्कूल आॅफ कोरपोरेट कम्युनिकेशन की एस्सीटेंट प्रोफेसर डा सुचिता चंडोक ने ‘‘ पारस्परिक संबंध का प्रबंधन ’’ पर व्याख्यान देते हुए कहा कि पारस्परिक संबंधों के महत्व को बताते हुए पारस्परिक कौशल लोगो ंको जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रक्रिया, संदेश और अर्थ इसके तीन मुख्य तत्व है। उन्होनें संवाद सहित संचार मे ंचुनौतीयां और पारस्परिक कौशल में बाधाओं की जानकारी भी दी।


प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान विशेषज्ञों ने छात्रों और अभिभावकों के प्रश्नो का उत्तर भी दिया।

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