इतिहास लिखा जा रहा,सतर्क और सजग रहें।

 


प्रेम शर्मा ,लखनऊ।

देश में आघोषित आपातकाल सी स्थिति बन गई हैं, दूसरी खत्म नही हुई और तीसरी लहर की खबर सनसनी फैलाने के साथ हमें सतर्क ओर सजग रहने का संकेत दे रही है। इस बीच एक सवाल अबूझ बन गया है। लोग पूछ रहे है कि जिस वायरस की समाप्ति साबून के फैने से हो जाती है उसको मारने के लिए अब तक कोई दवा क्या नही बन पाई। ऐसे कई सवाल आमजनमानस के मानस पटल में उथल पुथल मचाए है। पिछले वर्ष के कोरोना संक्रमण के दौरान सामान्य या काफी कम संख्या में जनहानि होने के बीच सरकारी मदद, सामाजिक संगठनों की मद्द के अलावा व्यक्तिगत रूप जरूरतमद्दो मददगारों की एक फौज हम सब ने देखी थी। इसके ठीक विपरीत 2021 में मार्च से मची उथलपुथल और भारी जनहानि के बीच सरकारी मदद, सामाजिक संगठनों की मद्द के अलावा व्यक्तिगत रूप से जरूरतमदों की मदद गायब सी हो गई है। कही कही सरकारी मदद जरूर है लेकिन वह ऊट के मुह में जीरा साबित हो रही है। इस आपदा के बीच देश के न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया की भूमिका किस स्तर पर काम कर रही है ?सांसद, विधायक, एमएलसी के साथ राजनैतिकदल के नेता, कार्यकर्ता आर पक्ष विपक्ष कैसी भूमिका निभा रहा है ? चिकित्सा, व्यापारी किस तरह की भूमिका निभा रहे है ? यह सब इतिहास में दर्ज हो रहा है। जनता की भूमिका क्या है, क्या होनी चाहिए यह भी इतिहास में दर्ज हो रहा है। इसका उनको दण्ड भी  मिलेगा। भले ही दण्डात्मक कार्रवाई आप और हम देख न पाए लेकिन दण्ड मिलेगा अवश्य क्योकि यह प्रकृति का नियम है। जो बोएगें वही काटेगें।  बहुत सी नकारात्मक और दिल झकझौर देने वाली खबरों के बीच काफी सकारात्मक खबर आने से कुछ संतुलन बरकरार है। एलोपैथिक के सापेक्ष एक बार फिर आयुर्वेद का ड़का इस कोरोना काल में बजा है। दूसरी लहर के कारण देश गहन संकट में है, लेकिन राजनीतिक लोर्गों के रुख-रवैये से यह बिल्कुल नहीं लगता कि वह इस मुसीबत का मिलकर सामना करने को तैयार है। कोरोना के कहर से बचने के लिए उठाए जा रहे कदमों के बीच केंद्र और राज्यों के बीच तकरार और टकराव जारी है। केन्द्र केजरीवाल के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर सीधे प्रधानमंत्री के मन की बाॅत पर हमला कर दिया। इस बीच सांसद ओर विधायक द्वारा संसाधनों की कमी के पत्रों के वायरल होने से भी स्थिति बिगडी है। राहुल गांधी पार्टी के लोगों को राहत केन्द्र या पीड़ितों के सहयोग की अपील न करके केवल यह बताने में लगे हुए हैं कि प्रधानमंत्री निष्क्रिय और नाकाम हैं। राहुल गांधी कभी खुद को लॉकडाउन के खिलाफ बताते हैं और कभी कहते हैं कि बिना लॉकडाउन लगाए बात नहीं बनेगी। यह देश का दुर्भाग्य है कि जब राजनीतिक वर्ग को एकजुट होना भी चाहिए और दिखना भी, तब वह आरोप-प्रत्यारोप में उलझा हुआ है। इससे भी अधिक खेदजनक यह है कि उच्चतर अदालतें भी सरकारों और उनके प्रशासन को सुझाव या मार्गदर्शन देने से ज्यादा उन्हें फटकारने में लगी हुई हैं।  लगातार बढ़ती कोरोना मरीज सामने आना गहन चिंता का विषय है। जो आंकड़े नीचे ऊपर हो रही है वह यही बताते हैं कि संक्रमण अभी बेलगाम है। ऐसे में अपने संसाधनों, जनता की जरूरत और संक्रमण रोकने के लिए राज्य सरकारों को समीक्षा करने की भी जरूरत है कि लॉकडाउन में अपेक्षित सावधानी बरती जा रही है या नहीं।

यह सच है कि कोरोना वायरस के बदले हुए प्रतिरूप कहीं अधिक घातक हैं और वे संक्रमण भी तेजी से फैला रहे हैं, लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि उनकी प्रकृति में बदलाव को अभी भी सही तरह समझा न जा सका हो और इसी कारण वे अपना कहर ढाने में लगे हुए हैं?  जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर नियंत्रण कक्षों की स्थापना ही पर्याप्त नहीं है। उनके बीच आवश्यक तालमेल भी होना चाहिए।  इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अभी भी कुछ लोग कोरोना वायरस से उपजी कोविड महामारी की गंभीरता को समझने के लिए तैयार नहीं। भले ही 18 से 44 साल के लोगों के लिए टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया गया हो, लेकिन देश के अनेक हिस्सों में अभी यह अभियान जमीन पर नहीं उतर सका है।अस्पतालों में अव्यवस्था और खासकर ऑक्सीजन की कमी को लेकर कोरोना मरीजों की मौतों पर विभिन्न उच्च न्यायालयों की ओर से जो नाराजगी प्रकट की जा रही है, वह उचित ही है। इसमे संदेह नहीं कि सरकारें कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर की आशंका से अवगत होते हुए भी समय रहते जरूरी तैयारी नहीं कर सकीं, लेकिन आखिर अब किया क्या जाए ? इसी प्रश्न का उत्तर खोजने और उसके अनुरूप कदम उठाने की सख्त जरूरत है । अभी भी ऑक्सीजन संकट को सिर उठाए हुए। सरकारों को यह समझना होगा कि ऑक्सीजन का संकट तब दूर होगा, जब उसके कारणों की पहचान कर उनका निवारण किया जाएगा। लगता है सरकारें और उनका प्रशासन अभी तक इस संकट के मूल कारणों की ही पहचान नहीं कर सका है और संभवतः इसी कारण ऑक्सीजन की कालाबाजारी और उसके सिलेंडरों की जमाखोरी की खबरें आ रही हैं। यह सब तत्काल प्रभाव से रोकने के साथ जो एक और काम प्राथमिकता के साथ करने की जरूरत है, वह है टीकाकरण की रफ्तार तेज करने का। टीकाकरण में ढिलाई बरती गई तो हालात पर काबू पाना और कठिन होगा। इन सब बाॅतों के बाद भी जनमानस इस बाॅत को अच्छी तरह समझ ले कि सरकार कोई भी हो इतनी बड़ी आफत में वो रहत नही दे सकती, क्योकि संसाधन कम और जरूरत कई गुनी है। अगर कुछ गल्तियाॅ सरकार ने की है तो कुछ कम हम भी नही रहे। सबकी गल्ती इतिहास में दर्ज हो रही है थू-थू भी हो रही है। आने वाली पीढ़ियाॅ भी थू-थू करेगी। लेकिन अब भूमिका आमजनमानस की महत्वपूर्ण है। सरकार की गाइड लाइन के अलावा पूर्वजों के विचारों का अनुसरण करे, जब पता है कि जानलेवा महौल है तो सर्तक रहे और सजग रहे।