कोटा।हि.वार्ता ।✍️अख्तर खान"अकेला" ।
पत्रकारिता के स्तम्भ रहे ,राष्ट्र समाज से सरोकार रखने वाले, ओम कटारा जी,जिनका आज जन्म दिन है ।
उन्हें उनके जन्म दिन पर , पुरखुलूस , दिली मुबारकबाद बधाई ,, जी हाँ दोस्तों , ना काहू से दोस्ती , ना काहू से बेर , की कहावत चरितार्थ करते ,, अपने सधे हुए , आक्रामक , क्रांतिकारी अल्फ़ाज़ों के साथ , अपनी खबरों में ,, ज़लज़ला पैदा करने का करिश्माई जज़्बा रखने वाले भाई , ओम कटारा किसी परिचय के मोहताज नहीं , दैनिक भास्कर के वरिष्ठ पत्रकार के पद पर रहकर ,चाहे वो रिकॉर्ड में सेवानिवृत हो गए हो , लेकिन उन्होंने साबित किया है , के क़लम कभी झुकती नहीं , क़लम कभी रूकती नहीं , क़लम कभी रिटायर होती नहीं ,, वोह आज भी , अपनी दैनिक दिन चर्या में ,स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कई दैनिक समाचार पत्रों में , अपनी आक्रामक लेखनी से , सरकार को , सिसटम को , झकझोरते है , पीड़ितों के पक्ष में , शोषक , भ्रष्ट लोगों के खिलाफ , आवाज़ उठाते है ,, जब मेरी पत्रकारिता का सफर , दैनिक धरती करे पुकार से शुरू हुआ ,तब ओम कटारा , भी आने ग्रामीण परिप्रेक्ष से ,, कोटा लाडपुरा से प्रकाशित दैनिक देश की धरती , में अपनी क़लम की आज़माइश कर रहे थे , इन्होने वरिष्ठ पत्रकार बाबूजी हुकम चंद जैन , हरफन मोला , गया प्रसाद बंसल , फिर दैनिक भास्कर के वरिष्ठतम , योग्य पत्रकारों के साथ काम करने का अनुभव हांसिल किया है ,,, आपात काल के तुरतं दौर के बाद , आंदोलनों , क्रन्तिकारी बदलाव का दौर था तब भी इनकी क़लम वही पेना पन , वही तीखापन ,, वही गरीबों , शोषितों , पीड़ितों के लिए अपनापन , मज़दूरों के लिए हमदर्दी , और शोषकों के खिलाफ निष्पक्ष गुस्सा था ,, दैनिक देश की धरती में रोज़ अलग अलग मुद्दों पर , खबरों के साथ एक निर्धारित कॉलम , लिखना , तब मेरा दैनिक कॉलम ,, गपशप , और कटारा का लिखित कॉलम ,, दैनिक अख़बारों का प्रकाशन कोटा से होने के कारण काफी मक़बूल रहे , ओम कटारा पत्रकारिता के साथ साथ ,साहित्यिक रंगमंच से जुड़े है , वोह ज़िंदगियों को ज़िंदा करने , भ्रष्टाचार , अनाचार , शोषण के खिलाफ , अपनी कविताओं के ज़रिये ,, मज़दूरों , किसानों , शोषकों में , क्रांति की अलख जगाते रहे , है , कोटा मेला दशहरा रंगमंच सहित , कई महत्वूर्ण मंचों पर , इनकी क्रन्तिकारी कविताओं ने खूब वाहवाही लूटी है ,, इनकी क़लम , इनकी रिपोर्टिंग , इनकी सम्पादन कला , जीवंत , सिर्फ जीवंत होती है ,, अल्फ़ाज़ों में , पैनापन ,, रवानगी , और सच्चाई के घोल से , इनकी लेखनी , लोगों के दिल , दिमाग में उतर कर ,, बेसाख्ता वाह वाह् करने को मजबूर करती है , जब कोटा में पत्रिका , भास्कर सहित कई अख़बारों के दैनिक प्रकाशन शुरू हुए ,तब सभी पत्रकारों को ,, इन अख़बारों में बुलाया गया ,, कोटा प्रवास पर कुलिश जी द्वारा मुझे पत्रिका का ऑफ़र दिया , लेकिन में जननायक में ही खुद को राजा की तरह था , इसलिए मेने मंज़ूर नहीं किया , इसी दौरान , ओम कटारा की लेखनी से प्रभावित होकर , इन्हे , दैनिक भास्कर के सम्पादक मंडल में स्थान मिला ,, ओम कटारा ने अपने लेखन स्वभाव , क्रन्तिकारी स्वभाव को मरने नहीं दिया , इन्होने पत्रकारिता की नौकरी चाहे की हो , लेकिन यह इस नौकरी में भी खुद को हर रोज़ पत्रकार साबित करते रहे , इनकी एक क़लम भास्कर में थी तो ,, दूसरी क्रन्तिकारी क़लम , कई ,, छोटे मंझोले , दैनिक , साप्तहिक , पाक्षिक , समाचार पत्रों में , क्रांति का इतिहास लिखती रही ,, दिल को झकझोर देने वाली , शोषकों , भ्रष्ट , बेईमान , लोगों को बेनक़ाब करदेने वाली इनकी खबरों की क्रान्ति ,, जो लोग , पर्दादारी जानते है , उन्हें सब पता है ,, और यही वजह रही , के कोटा की पत्रकारिता के मापदंडों में ,, ओम कटारा जैसे कई पत्रकार , कलमकारों ने , गिरावट नहीं आने दी ,, ,ओम कटारा आज भी सादा जीवन व्यतीत करते है , ,अपनी रोज़मर्रा की पारिवरिक ज़िम्मेदारियों के बाद , क़लम उठाते है , ,कभी कागज़ पर लिखते है , तो कभी गीत , ग़ज़ल , कविताये गुनगुनाते है , तो फिर कभी , अपने लेबटोब , ,कम्प्यूटर के की बोर्ड पर , उँगलियों से ,, शोषण उत्पीड़न के खिलाफ वर्तमान हालातों में , प्रशासन , नेताओं , सरकारों की नाकामयाबी के क़िस्से , क्रन्तिकारी अल्फ़ाज़ों में उकेरते है ,, इनकी खबरें अधिकतम अख़बारों में , प्राथमिकता के आधार पर छपती है ,, ओम कटारा कई मामलों में , पर्दे के पीछे के क्रन्तिकारी पत्रकार लेखक भी रहे है , लेकिन , यह पब्लिक है सब जानती है , जब अल्फ़ाज़ों में रवानगी , ,कॉमरेड्गिरि , निष्पक्षता , क्रन्तिकारी भाव होता है , तो पत्रकारिता से जुड़ा हर शख्स हर क़लमकार , इनकी लेखनी के जोहर को समझने वाले हर पाठक की समझ में आती है के यह सिर्फ , ओम कटारा ,, ओम कटारा के ही अल्फ़ाज़ है ,, कटारा सभी जानते है , , कटार का संस्कृत , नाम ,, जो एक दूल्हे को , शादी की रस्म के पहले , खुद की , उनकी पत्नी , परिवार की सुरक्षा के अहसास के साथ , थमाई जाती है और उस वक़्त उस कटार थमते वक़्त , दूल्हे के दिल दिमाग में , अपनी , अपने परिवार की , उसकी होने वाली पत्नी सहित सभी दोस्त अहबाब की ,निर्भीकता से सुरक्षा करना होती है ,, बस ओम जी जब पत्रकारिता में आये तो , ओम से ओम कटारा , बनकर ,इसी सुरक्षात्मक स्वभाव के साथ , क़लम को ,, एक कटार की तरह स्वीकार करते हुए , इस जंग में कूद पढ़े , उन्होंने कभी क़लम को झुकने नहीं दिया , क़लम को समझौते पर कभी मजबूर नहीं किया , उन्होंने क़लम का मान सम्मान बढाया है , उसके आक्रामक रुख को बरक़रार रखा है , क़लम की निष्पक्षता उनकी पहचान रही है , और इसी क़लम को कटार के रूप में , ओम कटारा ने ,, पत्रकारिता के मूल्यौं की रक्षा की , तो गरीब , शोषित , उत्पीड़ित , त्रस्त लोगों को , अपनी क़लम के माध्यम से , संरक्षित किया , सुरक्षित किया ,, उनकी आवाज़ बने , और ज़ालिमों , शोषकों के खिलाफ ,, एक आवाज़ ,,क्रन्तिकारी आवाज़ बने , इनकी देश की धरती की रिपोर्टिंग , आज भी यादगार है ,, इनके लिखे जाने वाले कॉलम , आज भी लोगों के ज़हन में है , इनकी कविताये , रचनाये ,, साहित्यकारों के लिए आज भी , वर्तमान माहौल में हालातों को झकझोर देने वाले है।
- कटारा जी का जन्म कोटा जिले के एक कस्बे.. सागोंद में हुआ था एवं शिक्षा कोटा राजकीय महाविद्यालय से ग्रहण की।
उनका शिक्षा में भी विशेष स्थान था।
ऐसे मेरे भाई , ओम कटारा , क़लमकार ,पत्रकार , साहित्यकार को , ,उनकी ,सालगिरह उनके जन्म दिन पर , दिली मुबारकबाद ,बधाई ।