जल्दी लौटेगा साइकिल का जमाना। विश्व साइकिल दिवस(3 जून )पर विशेष।




हिन्दुस्तान वार्ता।

आप मेरी बात से संपूर्ण रूप से नहीं तो आंशिक रूप से निश्चित ही सहमत होंगे कि दुनिया में 100 साल में विकास की राह में गति मैन्यूअल वाहन ( साइकिल )और विज्ञान के अविष्कारों ने नए युग की स्थापना की है ।यह सफर दो पहिए की साइकिल से शुरू हुआ |आज हम 3 जून विश्व साइकिल दिवस पर साइकिल का विश्व के साथ भारत में योगदान के विषय में बात करेंगे| 

भारत के विकास में इस दो पहिए साइकिल का भी बहुत बड़ा योगदान है |विकास के साथ इसमें आदमी के मन में अमीरी का भाव भी पैदा किया क्योंकि वह एक जमाना था जब भारत में जिस घर में साइकिल होती थी उसकी गिनती अमीरों में होती थी ।लेकिन धीर -धीरे यह हर घर की जरुरत बन गयी।90 परसेंट लोगों ने साइकिल को चलाने के लिए अपना कोई ना कोई उस्ताद बनाया था |यह साइकिल चलाने की कला कैंची नामक पद्धति से शुरू होकर किसी के साथ बैठकर चलाने से लेकर गद्दी पर स्वयं उसका मालिकाना हक तक पहुंचने का सफर होता था| साइकिल को बैलेंस करना एक बहुत टेढ़ी खीर होती थी |आगे साइकिल की यही बैलेंस करने की पद्धति में लोगों को स्कूटर चलाने में बहुत सहायता प्रदान की| साइकिल सीखने वाला अमूमन 60 से 70 परसेंट चाहे लड़का हो या लड़की हो ऐसा नहीं हो सकता कि उसने अपने घुटने या कोहनी को जख्मी ना किया हो| सन 1980 तक भारत में अमीर से लेकर मध्यवर्गीय परिवार तक घड़ी और साइकिल दो बड़े उपहार हुआ करते थे अगर आप यह काम कर लेंगे तो आपको यह मिलेगा इस तरीके के प्रलोभन के साथ परिवार अपनी बच्चों को सुंदर चरित्र और अच्छी पढ़ाई का हथियार बनाते थे |अकसर किसी भी बड़े काम की उपलब्धि का पारितोषिक यह साइकिल हुआ करती थी |इसको प्राप्त करने के लिए तमाम तरह के प्रपंच किए जाते थे|

पर्यावरण प्रेमियों के द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए निकाले जाने वाली वाहन रैलीओं का जब पुरजोर विरोध होने लगा पर्यावरण की रक्षा हेतु तब राजनीतिक रैलियों में मोटर वाहन की जगह साइकिल में जगह ली और इससे साइकिल  को ना केवल बढ़ावा मिला बल्कि लोगों में साइकिल के प्रति रुचि को बढ़ाया |

दुनियाभर की सरकारें और पर्यावरण की  चिंता करने वाले लोग पर्यावरणविद पर्यावरण की सुरक्षा के लिये साइकिल सवारी को बढ़ावा देने में जुटे गये ।इस कारण संयुक्त राष्ट्र ने साल 2018 में 3 जून को विश्व साइकिल दिवस के तौर पर घोषित किया था।इस वर्ष चौथा विश्व साइकिल वार्षिक उत्सव मना रहे हैं|जनकारो का मानना भविष्य साइकिल हर घर का ना केवल हिस्सा होगी बल्कि यातायात के रूप  में इस्तेमाल होगी |

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी का अगर आज यहां जिक्र नहीं किया जाए तो ना केवल बेईमानी होगी  बल्कि मुझे लगता है कि विश्व साइकिल दिवस का उत्तर प्रदेश में मनाने का कोई अर्थ नहीं होगा ।पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी की दूरदर्शिता ने प्रदेश को एक युवा सोच दी जिस तरीके से हम ऑटोमोबाइल (इंजन)से एक तरफ अपने जीवन को गति दे रहे थे तो दूसरी तरफ स्वास्थ्य के प्रति खिलवाड़ कर रहे थे |इसी बात को मद्देनजर रखते हुए उन्होंने पूरे प्रदेश में साइकिल का प्रयोग बढ़ाने हेतु अनेक शहरों में साइकिल के ट्रेक बनाकर साइकिल चलाने हेतु लोगों को आकर्षित किया ।यह बात दीगर है सत्ता के बदलते ही साइकिल के ट्रेक की सोच को  ना केवल  बदल दिया बल्कि प्रदेश राजस्व की हानि हुई|.आज अगर हम आगरा शहर पर एक नजर डालें तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की  साइकिल की सोच को अपनाया।

आगरा में पिछले कई वर्षों  से साइकिलिंग के लिए लोगों का रुझान बढ़ा।शहर में अनेक क्षेत्र के डॉक्टरों ने अपने डॉक्टर साथियों के साथ ना केवल साइकिल चलाकर स्वास्थ्य और पर्यावरण का एक संदेश दिया साथ ही वह उस साइकिलिंग के साथ पर्यावरण बचाने हेतु पौधों की सेंपलिंग का भी वितरण किया इसी श्रृंखला में जो मल्टी स्टोरी में रहने वालों लोगों ने ग्रुप बनाकर अपने क्षेत्र में साइकिल भ्रमण करके अपने स्वास्थ्य पर्यावरण का भरपूर  शहर को लाभ दिया |कुछ लोगों ने इस साधन को अपने दिनचर्या का एक हिस्सा बना लिया है चाहे ऑफिस जाने के लिए या बाजार से रोजमर्रा की चीजें खरीदने के लिए या शाम को और सुबह व्यायाम के दृष्टिकोण से इसे इस्तेमाल कर रहे है |आज डॉक्टर अपने मरीज़ को साइकिल चलाने की सलाह  देते हैं|  उनका कहना है अगर हम 5 दिन 30 मिनट रोज़ साइकिल चलाते है तो हमारा इम्यूनटी सिस्टम मजबूत होता है,चर्बी घटती है |पर्यावरण को भी नुक़सान नही होता है जिससे बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है। कार्य क्षमता को बढाती हैं|

 - साइकिल का आविष्कार। सर्वप्रथम  सन् 1816 में पेरिस के एक कारीगर ने साइकिल को मूर्त रूप दिया।  (पैडल) युक्त पहिए का आविष्कार सन् 1865 ई. में पैरिस निवासी लालेमें (Lallement) ने किया। अमेरिका के यंत्रनिर्माताओं ने इसमें अनेक महत्वपूर्ण सुधार कर सन् 1872 में एक सुंदर रूप दे दिया, जिसमें लोहे की पतली पट्टी के तानयुक्त पहिए लगाए गए थे।समय के साथ सुधार होता चला गया| एक से एक रंग रूप स्टाइल लाखों की साइकिल आने लगी है| आज भी भारत चीन के बाद सब से बड़ा साइकिल निर्माता व उपभोगता है ।

साइकिल चलाये सेहत व पर्यावरण बचायें।

राजीव गुप्ता जनस्नेही कलम से।

लोक स्वर आगरा ।

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