सेवा नियमावली में मनमाने संशोधन के खिलाफ मुख्यमंत्री और मंत्री से शिकायत




लखनऊ,27 जून 2021। उत्तर प्रदेश औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान कर्मचारी संघ ने विभाग द्वारा बार बार अनुदेशक,कार्यदेशक सेवा नियमावली में मनमाने संशोधन की साक्ष्य परख शिकायत प्रदेश के मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री को भेजी है। लिखित शिकायत में कहा गया कि संधानिक आधार और भारत सरकार की गाइड लाइन के अनुसार उन्होंने विभाग के समक्ष पाॅच आपत्ति दर्ज कराई है लेकिन कोई कार्रवाई नही की जा रही।  संघ के अध्यक्ष अखिलेश सिंह और महामंत्री अर्चना मिश्रा ने कहा कि अगर आपत्ति निस्तारण और मनमाना संशोधन न रोका तो संघ सड़क पर आन्दोलन से लेकर इस मामले में न्यायालय की शरण लेगा।

उत्तर प्रदेश औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान कर्मचारी संघ् के अध्यक्ष अखिलेश सिंह और महामंत्री अर्चना मिश्रा ने मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री को भेजी शिकायत में कहा कि  निदेशक प्रशिक्षण एवं सेवायोजन विभाग द्वारा प्रस्तावित अनुदेशकध् कार्यदेशक सेवा नियमावली में मनमाने संशोधन का प्रस्ताव करते हुए डिग्री होल्डर बीटेक अनुदेशकों को 25 प्रतिशत शैक्षिक योग्यता के आधार पर कार्यदेशक के पद पर पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने का प्रावधान किया गया है। संशोधन में उनके लिए अनुदेशक पद पर कार्य की अवधि को भी 10 वर्ष के स्थान पर घटाकर 5 वर्ष कर दिया गया है। इस प्रस्तावित नियमावली में एक ही साथ नियुक्त अनुदेशकों को शैक्षिक योग्यता के आधार पर पदोन्नति में 25 प्रतिशत आरक्षित किया गया है जो संविधान विरोधी तथा मौलिक अधिकारों के अनुच्छेद 14 एवं 16 का उल्लंघन है। यह विभेद कारी नीति है। अनुदेशक की सेवा नियमावली एवं कार्यदेशक की सेवा नियमावली जो पहले से अलग अलग विद्यमान है दोनों का संविलियन गलत है। पत्र में कहा गया कि नियमानुसार एक पद पर दो अहर्ता का नियम नहीं है। अनुदेशक के पद की अनिवार्य योग्यता सी.टी.आई प्रशिक्षण है जिसे भारत सरकार के द्वारा अनुदेशक पद पर नियुक्ति हेतु अनिवार्य अहर्ता निर्धारित किया है सी.टी.आई को अनिवार्य योग्यता की जाए और सभी पद सी.टी.आई प्रशिक्षित अनुदेशकों से ही भरा जाए। विभाग में कार्यरत कार्यशाला परिचर जो समूह ग के तकनीकी कर्मचारी हैं उन्हें पदोन्नति के मौके ही कभी नहीं दिए गए जबकि वे योग्य हैं। कार्यशाला परिचर का 5 प्रतिशत पदोन्नति अनुदेशक के पद होनी चाहिए लेकिन एक प्रतिशत ही देने का प्रस्ताव किया गया है। अप्रेंटिसशिप पूर्ति अभ्यर्थियों को नियुक्ति में वरीयता के अंक दिए जाएं जबकि विभाग ने इसको नजरअंदाज किया गया है। इस संबंध में माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का पालन किया जाए।  सी.टी.आई प्रशिक्षित अनुदेशक अभ्यर्थियों को वरीयता के 30प्रतिशत अंक प्रदान किए जाने की सिफारिश भारत सरकार प्रशिक्षण महानिदेशालय ने अपने पत्र सभी राज्य सरकारों से की है जिसका भी पालन विभाग नहीं किया जा रहा है। सी .आई .टी .एस.प्रशिक्षित अनुदेशकों को नियुक्ति में प्राप्त अंकों का 10 प्रतिशत अंक वरीयता के सभी अभ्यर्थियों को दिए जाने का प्रस्ताव वर्तमान में प्रस्तावित किया गया है जबकि भारत सरकार ने अपने दिशानिर्देशों में तकनीकी योग्यता आई.टी.आई ,डिप्लोमा, डिग्री के प्राप्त अंकों का 60 प्रशित अंक दिए जाने की सिफारिश की है ऐसा कुछ लोगों के दबाव में किया जा रहा है जो सी.टी.आई की योग्यता नहीं रखते हैं। जबकी नियुक्ति हेतु भारत सरकार ने सी.टी.आई अनिवार्य किया गया है।  बी.टेक.योग्यता धारी को 5 वर्ष की सेवा के बाद ही 25प्रतिशत कार्यदेशक के पद पर पदोन्नति किए जाने का प्रस्ताव प्रस्तावित सेवा नियमावली में किया गया है।इस प्रकार का मामला लोक निर्माण विभाग में भी उठा था जिसे उच्च न्यायालय लखनऊ खंडपीठ ने अपने फैसले में मुकदमा सिविल मिस. रिट पिटिशन नंबर 53133/2004 प्रमोद शंकर उपाध्याय बनाम उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य के मामले में दिए गए निर्णय दिनांक 3 नवम्बर 2006 के द्वारा संवैधानिक करार दिया गया है और फैसले में कहा है कि शैक्षिक योग्यता के आधार पर किसी को पदोन्नति नहीं दी जा सकती है यह असंवैधानिक है।