हिन्दी में ब्रज संस्कृति की पहचान हैं : डॉ. गोपाल चतुर्वेदी।



हिन्दुस्तान वार्ता।

हिन्दी में ब्रज संस्कृति से सम्बंधित साहित्य की रचना करने वाले साहित्य-संस्कृति मनीषी डॉ. गोपाल चतुर्वेदी राष्ट्र भाषा हिन्दी के उन्नयन एवं संवर्धन के लिए पूर्णतः समर्पित हैं। उन्होंने हिन्दी की विभिन्न विधाओं में ब्रज संस्कृति परक साहित्य जम कर लिखा है। उनका जन्म महर्षि मयन की नगरी एवं महाकवि देव की जन्मभूमि मैनपुरी में 5 अगस्त सन 1956 को हुआ। चूंकि उनके पूर्वज भी हिन्दी सेवी व साहित्यकार थे, इसीलिए इन्हें भी हिन्दी सेवा व साहित्य सृजन के संस्कार अपने परिवार से विरासत में मिले हैं। यद्यपि यह राजनीति व कानून के विद्यार्थी रहे हैं। इनके पूज्य पितामह स्वर्गीय पण्डित सियाराम चतुर्वेदी ने ही ब्रज भाषा के मूर्धन्य कवि महाकवि देव की जन्मभूमि कुसमरा (मैनपुरी) में महाकवि देव के स्मारक की स्थापना कराई थी। साथ ही मैनपुरी में ब्रज साहित्य मण्डल का अधिवेशन कराया था, जिसमें महाप्राण कवि-श्रेष्ठ सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला", महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, स्वर्गीय श्री श्रीनारायण चतुर्वेदी, स्वर्गीय बलवीर सिंह "रंग" एवं स्वर्गीय हरिश्चंद्र देव वर्मा "चातक" आदि जैसे अनेक साहित्यिक महारथी शामिल हुए थे।डॉ. गोपाल चतुर्वेदी अपनी मात्र 13-14 वर्ष की आयु में ही शब्दों की दुनिया में आ गए थे। यह शब्दों के जादूगर हैं। प्रारम्भ में इन्होंने आगरा,लखनऊ, दिल्ली आदि स्थानों पर रहकर देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में संपादन कार्य किया। बाद को यह स्थायी रूप से वृन्दावन आकर बस गए।यहां पर इन्होंने निरन्तर पन्द्रह वर्षों तक श्रीकृष्ण कृपा धाम के संस्थापक महामंडलेश्वर गीता मनीषी स्वामी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज द्वारा संस्थापित मासिक पत्रिका "श्रीकृष्ण कृपा संजीवनी" का संपादन किया। सम्प्रति, वह श्रीहित परमानंद शोध संस्थान, वृन्दावन की मासिक पत्रिका "हित उत्सव" के प्रधान सम्पादक हैं। इसके अलावा वह देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं के लिए भी स्वतंत्र रूप से लिख रहे हैं। आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से भी सम्बद्ध हैं। जहां से उनकी कविताओं व वार्ताओं का प्रसारण प्रायः होता रहता है। सच तो यह है कि वह हिन्दी में ब्रज सम्बन्धी लेखन के आकाश हैं। उन्होंने अपने लेखन के शुरुआती दौर में कवितायें लिखीं। कविगोष्ठियों व कवि सम्मेलनों में भी अत्यधिक शिरकत की। परन्तु बाद को उन्होंने यह महसूस किया कि आजकल की जिंदगी इतनी खुरदरी व सम्वेदन हीन हो गयी है कि उसे कविता में ढाल पाना अत्यंत कठिन है। अतः वे अधिकतर गद्य में ही लिखने लगे। क्योंकि उनका यह मानना है कि " गद्य बहुत शक्तिशाली विधा है। यह हमारे जीवन व व्यवहार की भाषा है।" 

डॉ. गोपाल चतुर्वेदी वृन्दावन शोध संस्थान, वृन्दावन में केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा संचालित " ब्रज संस्कृति विश्व कोश परियोजना" में भी कार्य कर चुके हैं। वह हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में विगत लगभग 50 वर्षों से स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। देश-विदेश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में अब तक 1000 से भी अधिक रचनायें प्रकाशित हो चुकीं हैं। उनकी अनेक रचनाओं के अनुवाद न केवल अपने देश की अनेक भाषाओं में अपितु समूचे विश्व की विभिन्न भाषाओं में भी हुए हैं। इस समय वह ब्रज साहित्य सेवा मण्डल एवं अमरावती (महाराष्ट्र) की अखिल हिन्दी साहित्यिक सभा "अहिसास" के मथुरा-वृन्दावन शाखा के अध्यक्ष हैं। उनकी अविस्मरणीय साहित्यिक सेवाओं से प्रभावित होकर विक्रमशिला हिन्दी विद्या पीठ, भागलपुर (बिहार) ने उन्हें विद्या वाचस्पति, विद्यासागर, हिन्दी रत्न एवं भारत गौरव आदि की मानद उपाधियों से अलंकृत किया हुआ है। साथ ही उन्हें पद्मश्री रासाचार्य स्वामी स्वर्गीय रामस्वरूप शर्मा,पद्मश्री रासाचार्य स्वामी स्वर्गीय श्री हरगोविंद शर्मा, ब्रजनिधि सेवा ट्रस्ट (वृन्दावन) ब्रज कला केंद्र (मथुरा-दिल्ली), टीवी चैनल "भावना", श्रीनरहरि सेवा संस्थान (वृन्दावन), वृन्दावन बाल विकास मंच, साहित्य मण्डल (नाथद्वारा), अनमोल रत्न सेवा संस्थान(कानपुर), मानस संगम (कानपुर), श्रीकृष्ण कीर्ति फाउंडेशन (मथुरा-वृन्दावन) आदि के द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही उन्हें मिथिला रत्न, रामचन्द्र- शिवशंकर तुलस्यान स्मृति सम्मान, स्वामी मेघश्याम शर्मा स्मृति सम्मान, स्वर्गीय शिवचरण लाल मीतल ब्रज साहित्य पुरुस्कार, भावना उत्कृष्ट सम्मान, माताश्री मुन्नी देवी मीतल पत्रकारिता पुरुस्कार एवं संतोष साक्य स्मृति सम्मान आदि सम्मान भी प्राप्त हो चुके हैं।

राधाकांत शर्मा