पुरुषार्थ= "पुरु" आत्मा को कहा गया है : संकलन "गौसेवक" खोजी बाबा।



पुरुषार्थ= "पुरु" आत्मा को कहा गया है ,अर्थात् जो आत्मा के लिए कर्म करते हैं वह हुआ पुरुषार्थ और केवल शरीर पालन के लिए किया गया कर्म स्वार्थ हुआ !!

     क्योंकि हमारे पास स्वयं का (रथ) शरीर है और उस परमात्मा के पास अपना स्वयं का शरीर नहीं होता।

    इसीलिए गीता जी में आया है"मैं" प्रवेश करने योग्य हूँ।

 वह (शिव) ब्रह्मा में प्रवेश करके वेद वाणी सुनाता है और शंकर के द्वारा अज्ञान का नाश करता है,इसीलिए "ज्ञान रूपी सूर्य" भी "मैं" ही हूँ।

 इसलिए हे अर्जुन!( अर्जुन यानि ज्ञान का अर्जन करने वाला)

इस संसार में जो कुछ भी श्रेष्ठ से श्रेष्ठ है उसे मेरा ही स्वरूप जान!

  जै

        🙏🏻🕉️ ॐ नम:शिवाय🕉️🙏🏻


               "गौसेवक" पं मदन मोहन रावत

                                  "खोजी बाबा"

                                  ९८९७३१५२६६