जटाशंकर,अम्मापानी, मोनासैया व हथिनीटोर में पर्यटन की अपार संभावनाएं :अध्ययन दल ।



हिन्दुस्तान वार्ता।मदन साहू

  छतरपुर। शासकीय महाराजा महाविद्यालय, छतरपुर की स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन योजना के तत्वाधान में अम्मापानी, मोनासैया, हथिनीटोर एवं जटाशंकर में पर्यटन की संभावनाओं को तलाशने के लिये अध्ययनदल भेजा गया था। यह अध्ययन दल प्राचार्य डॉ एल एल कोरी के निर्देशन में भेजा गया था। दल के संयोजक स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन योजना के जिला नोडल अधिकारी डॉ जे पी शाक्य बनाये गये थे, इस अध्ययन दल में डॉ ए के निगम , डॉ सी एल प्रजापति , श्री आर पी कुम्हार , डॉ के एल पटेल , श्री एस के छारी, डॉ आर एस सिसोदिया, श्री नंदकिशोर पटेल, श्री बी डी नामदेव तथा पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन में प्रशिक्षण प्राप्त तीन छात्र श्री आयुष खरे, श्री संजय खैरवार श्री सोमेन्द्र चतुर्वेदी अध्ययन हेतु अम्मापानी, मोनासैया, हथिनीटोर एवं जटाशंकर में पर्यटन की संभावनाओं को तलाशने के लिये गये। 

    जिला नोडल अधिकारी डॉ जे पी शाक्य ने बताया कि अध्ययन दल ने पाया कि अम्मापानी, मोनासैया, हथिनीटोर एवं जटाशंकर में पाषाणकालीन प्रागेतिहासिक शैलचित्रों एवं प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर पर्यटन के लिये आर्कषण का केन्द्र सैलानियों के लिये बन सकता है। इन चारों स्थानों पर लगभग दो हजार प्रागेतिहासिक गुफायें है। अम्मापानी में एक छलाग मारता हुआ हिरण का चित्र विशेष आर्कषण का केन्द्र है। इसकी तुलना फ्रांस की गुफाओं में बने हिरण के चित्र से की जा सकती है। हथिनीटोर में एक भैसे का चित्र बहुत सुंदर बनाया गया है। मोनासैया में भाला लेकर भागता हुआ एक शिकारी का चित्र सभी को आर्कर्षित करता है। जटाशंकर में बैल का शिकार करते शिकारी दौडते भागते दिखाये गये है। यही पर चतुर्भुज के अंदर कई ज्यामितिक रेखायें बनायी गई हैं, जो कि जादू टोना या आध्यात्म को दर्शाती हैं। इन सभी शैलचित्रों की विषय वस्तु शिकार पर आधारित है। जो आखेटयुग का रेखांकन प्रस्तुत करती है। इस काल में अग्नि का अविष्कार नहीं हुआ था , ना ही कोई भाषा या लिपि जन्मी थी। आदिमानवों की भाषा इन्ही शैलचित्रों के द्वारा समझी जाती थी। ये चारों स्थान सुरम्य वातावरण एवं वनाच्छिदत है प्रो. एस.के .छारी ने इन गुफाओं को 2008-2010 में खोजा था तथा इस पर शासकीय महाराजा महाविद्यालय छतरपुर ने चित्रकला विभाग के द्वारा राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। जिसमें पूरे देश के चित्रकला के विद्वानों ने सराहा था। भ्रमण दल ने इन स्थानों से पाषाण के कुछ औजार भी खोजे हैं। 

    अध्ययन दल ने यह पाया है कि अम्मापानी, मोनासैया, हथिनीटोर एवं जटाशंकर में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं जो ना केवल भारतीय बल्कि पूरे विश्व के पुरातत्वविद्, इतिहास प्रकृति-प्रेमी एवं रॉक पेन्टिंग में रूचि रखने वाले विद्वानों के लिये आर्कषण का केन्द्र बन सकता है। यदि इन्हें एक पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाये तो स्थानीय सैकडों लोगों को स्वरोजगार भी मिल सकता है।