आने वाले चुनावों के सन्दर्भ में , सिविल सोसाइटी ऑफ़ आगरा की मुलाकात: कांग्रेस वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद से।




आगरा: राजनैतिक दलों के द्वारा अपनी चुनावी राजनीति में आगरा को भी शामिल कर यहां के विकास के मुददों के प्रति प्रतिबध्‍दता भी जतायी हुई  है,इसे दृष्‍टिगत उनके संज्ञान में आगरा की जरूरतों की तथ्यपरक जानकारी लाये जाने के लिये सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा  ने अभियान शुरू किया है। सोसायटी के जनरल सैकेट्री श्री अनिल शर्मा ने कांग्रेस के सैकेट्री एवं इंचार्ज उ प्र चुनाव एजेंडा  समिति श्री सालमान खुर्शीद से १२ सितम्‍बर 2021 को उनके आगरा आगमन पर मुलाकात की।

श्री शर्मा ने आगरा की अपेक्षाओं के अनुसार कांग्रेस से आग्रह किया है,कि आगरा में आटोमोबाइल एक्ट (National Automobile Scrappage Policy 2021) जो कि बजट 21-22 को प्रस्तुत करते हुए केंद्रीय वितमंत्री ने 13 August, को संसद में घोषित की हुई है का पूरी तरह से अनुपालन हो । इस नीति के तहत वाहनों जो 15 साल के बाद  फिटनेस चैक करने के बाद ही अगले पांच साल और चलाये जाने का प्रावधान है।

वर्तमान में लागू ऑटो मोबाइल पॉलिसी में भी फिटनेस सर्टिफिकेट पाये वाहनों को चलते रहने का प्रावधान है किन्‍तु आगरा में इनका इस्तेमाल 15 साल के बाद नहीं होने दिया जाता ,पुलिस चेकिंग कर इन्हें जब्त  कर देती है।

ताज संरक्षण के नाम पर की जाने वाली यह कार्यवाही वायु प्रदूषण रोकने में कितनी उपयोगी है या नहीं लेकिन ऑटो मोबाइल कंपनियों के डीलरों के लिये जरूर लाभकारी है। सामान्य नागरिक खासकर निजी क्षेत्र का कर्मचारी हर पन्द्रहवें साल के बाद नया वाहन खरीदने की स्थिति में नहीं होता   फलस्वरूप उसकी दुश्‍वारियां पिछले तीन साल में जबरदस्त बढी हैं।

ऑटो मोबाइल व्हीकल रिपेयर  करने वाले हजारों स्किल और नान स्किल वर्कर इस नीति से तात्कालिक  रूप से प्रभावित हो कार्य शून्‍यता की स्थिति का मुकाबला करने को मजबूर हैं।

आगरा की जनता मोटर व्‍हैकिल एक्‍ट के तहत जुर्मानों की बढ़ाई राशि से बेहद त्रस्‍त है।इन जुर्मानों की राशि इतनी अधिक है, कि छोटी आमदनी वाले परिवारों की अर्थव्यवस्था को सीधे तौर पर प्रभावित कर रही है। जुर्माना करने और वसूलने के नाम पर महानगर के चौराहों पर नागरिकों को मनमानी की स्थिति का सामना करना पड रहा है।महानगर के खराब ट्रैफिक सिग्नल सिस्टम  ने हालातों को और बद से बदतर  बना कर रख दिया है।

महानगर के पार्कों पर पिछले दस सालों में जमकर प्रवेश शुल्‍क लगाये गये हैं। पार्कों की हरियाली और  व्यवस्थाओं में सुधार को ये टिकट लगाये गये हैं किन्तु टिकट लगने के बाद किसी भी पार्क की व्यवस्था  में सुधार नहीं हो सका है। आगरा सीमित आमदनी वालों की बहुतायत वाला महानगर है,यू एच आई [An urban heat island (UHI)] मानक के अनुसार महानगर में 469 बस्तियां  है, जबकि डूडा के मानकों के अनुसार भी 213 सूचीबद्ध मलिन बस्तियां  हैं।इनमें रहने वालों के लिये पार्क ही इत्मीनान  से कुछ समय बिताने के ठिकाने रहते आये हैं। लेकिन टिकट लगाये जाने से खुली हवा में सांस लेने के अवसर व्‍यसाध्‍य (expensive) और सीमित हुए हैं।

सबसे  ज्यादा चिंता की बात यह है कि पार्कों में प्रवेश शुल्‍क या टिकट उस दौर में ठीक कोविड की लहर के बीच लगाये गये हैं,जब कि जन स्वास्थ के लिये कोविड से उबरने वालों के लिये पार्कों की  शुद्ध वायु सेवन के लिये विशेष आवश्यकता होगी।

वैसे भी छोटे मकान और अवस्‍थापना सुविधा विहीन बसावटों के लोगों के लिये पार्क हवाखोरी का स्थान नहीं अपितु जीवन के सामाजिक पक्षों से जुड़ी जरूरतों के स्थल भी हैं। अंग्रेज हुकूमत के समय पालीवाल  पार्क टिकट विहीन थे। कांग्रेस सरकारों के काल में भी पार्कों उत्कृष्ट इंतजामों के  बावजूद टिकट विहीन रखा गया। लेकिन बाद में गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों की सरकारों ने प्रदेश के ज्यादातर  पार्कों को टिकट लगाने के नाम पर ठेकेदारों को हंस्तरित कर डाला। जिस प्रदेश में कई करोड लोगों को राशन के इंतजाम तक के लिये सरकरी गल्ले की दुकानों पर लाइन मे लगना पडता हो , उसमें पार्कों पर टिकट लगाना न केवल गैर जरूरी है,बल्कि ज्यादती भी।

सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा  ने कांग्रेस के प्रदेश सचिव के समक्ष महानगर बस सेवा में सुधार को भी पार्टी के चुनावी एजेंडे में शामिल करने का आग्रह किया है। आगरा सहित प्रदेश के जितने भी नगर निगम प्रबंधित नगरों व महानगरों में सिटी बस संचालित है ,वे नागरिकों की जरूरत पूरी करने में नाकाम हैं। ये संपर्क की आधार भूत जरूरत हैं। खास कर के उन सभी के लिये जो आर्थिक और पार्किंग व गैराज जैसी जरूरी अवस्थापना सुविधा संभव न हो पाने के कारण निजी वाहन नहीं खरीद सकते।

बेहद कष्टकारी तथ्य है कि 1996 तक प्रदेश भर में प्रभावी सिटी बस सेवा  थी। इसकी बारंबारता भले ही सीमित हो लेकिन संचालन समय से और यात्रियों की जरूरतों व सुविधाओं को द्रष्टिगत  होता थे। लेकिन जब से सिटी बस सर्विस संचालन के लिये बाद में जितने भी प्रयास किये गये सभी आधे अधूरे ही साबित हुए। जेएनयूआरएम के तहत संचालित बसों के प्रबंधन को कंपनियां (स्पेशल परपज व्हीकल ) गठित की गयी किन्तु उत्तर  प्रदेश में ये आर्थिक एवं गुणवत्ता  पूर्ण सेवा की दृष्टि  से अब तक उपयोगी साबित नहीं हो सकीं।यही नहीं न तो इनमें नया निवेश ही हुआ और नहीं अपने संचालन अधिकारों के तहत अनुरक्षण व विस्तार को जरूरी राजस्व  ही जुटा सकीं।