हिन्दुस्तान वार्ता।
यह श्री ही है जिसे श्रीविद्या कहा गया हैं। पूर्ण ब्रह्म के साथ सहयोग के लिए तैयार खड़ी रहती है माया शक्ति है यह । यही आद्या शक्ति कहलाती है। सृष्टि की रचना में इसका ही सहयोग रहता है । भगवान स्वयं श्री के साथ विलास करते हैं। कुंडलिनी शक्ति का ज्ञान ही सब कुछ है । यही आगे चलकर माया का रूप धारण करती है । सृष्टि मेधा स्वयं श्री गणेश हैं। गणेश जी की मेधा है सृष्टि विद्या । यह मेधा अकेली काम नहीं करती। माया शक्ति की प्रेरणा से इसे तत्पर होना पड़ता है। सृष्टि के निर्माण में जहाँ माया से अधिक काम की आवश्यकता पढ़ती है वहाँ इस तरह की रचना में केवल माया ही पर्याप्त है।
यूं तो सभी मेधाएँ ईश्वर के अंदर निवास करती हैं पर प्रकृति की आवश्यकता को ध्यान में रखकर उसे कब और क्या करना पड़ेगा?...सब कुछ उसके ही हक में होता है। सृष्टि -निर्माण की सामर्थ्य को प्राप्त योग्यता वाले को ही यह संभव है । वह कुछ भी निर्माण कर सकता है। जगत का नहीं सारे ब्रह्मांड का कुछ अनोखा है। यह शक्ति स्वयं उस परमेश्वर की कृपा से मिलती हैं ।:पर इसका उपयोग जहाँ जिस रूप में निर्देशित होता है वह ईश्वर की अलग व्यवस्था है । सब कुछ नियंत्रित है ईश्वर की इच्छा के बिना कुछ भी नहीं हो सकता ।
अनंत ब्रह्मांड हैं । ब्रह्मांडों की सारी संरचना व्यवस्था सब सब कुछ उस अकेले ईश्वर के हाथ में है । जहाँ से वह सब कुछ नियंत्रक बनकर कर रहा है। माया ईश्वर की शक्ति है। इस माया शक्ति के बल पर वह कुछ भी कर सकता है। पर माया शक्ति से ही नहीं वातिक शरीर , दिव्य शरीर सब सब उसकी सहायता के लिए हैं जिनके बल पर वह कार्य करता है । इतना ही नहीं, परमात्मरूप की शक्ति जो ईश्वर के साथ घूम रही है यह स्वयं ही ऐसी शक्ति है जो नए-नए शरीर का निर्माण कर सकती है । पर यह सब ईश्वर की उपाधि को प्राप्त को नहीं ,सृष्टि निर्माण की सामर्थ्य को प्राप्त को संभव है। ईश्वर चाहे तो यह योग्यता किसी ईश्वर को दे सकता है । इस धरती पर अब सब कुछ अनोखा होने वाला है। सीता शक्ति स्वयं प्रकाश रूप है । दीपावली यह स्वयं है प्रकाश रूप है इसका । यह ज्ञान रखती है और अंधकार को भी दूर करती है ।
सीता के स्वयंवर के समय यही प्रकाश बन कर आई थी। धनुष को इसने ही तोड़ा था और प्रत्यंचा पर यही शक्ति चढ़ी थी । ज्ञान पर आरूढ़ होकर यह स्वयं डोरी में घुस गई थी । धनुष का रूप यह स्वयं ही थी ।
श्री सीता जी स्वयं कहती हैं -
अ प्त्यंचा को न समझो
समझो ज्ञान को भी।
ज्ञान का रूप है सब कुछ
ज्ञान का मान रखती हूँ।
टूट जाती हूँ मैं स्वयं
अलग होने का भाव नहीं मुझ में।
मैं सीता हूँ स्वयं
प्रत्यंचा का ज्ञान रखती हूँ।
इसलिए समझो प्रत्यंचा को
प्रत्यंचा को साधना होता है । इसलिए लक्ष्य रूप प्रभु राम को प्रणम करती हूँ।
राम का धनुष गांडीव नहीं, पिनाकी भी नहीं । यह धनुष स्वयंश्री राम का रूप है । सीता स्वयंवर से पूर्व ही श्री राम को इस धनुष का ज्ञान सीता ने स्वयं अपनी शक्ति से कराया था। यह धनुष सीता का ही रूप है। आशीर्वाद है यह स्वयं पिनाक रूप में प्राणों की रक्षा रूप में श्री राम के पास यह शक्ति रहती है । पिनाकी कहते हैं श्री राम के रूप को जो कि प्राण हैं । पिनाकी स्वयं श्री का रूप हैं।
सीता कहतीं हैं कि प्राणों की रक्षा धर्म है मेरा यह समझ मैं झुक गई थी अलग हो गई थी। प्राण प्राण पर
आरूढ़ नहीं होते इस मर्यादा को निभा रही हूँ अब तक। इसलिए श्री राम की जय ही बोलती हूँ। श्री मैं सीता रूप में प्राणों की रक्षा करती हूँ।
सीता स्वयंवर में श्री राम की शक्ति सीता का ही सब था। धनुष यज्ञ धनुष सब सब कुछ सीता का ही साम्राज्य था। सीता शक्ति है ज्ञान की। राम के अवतरित होने से पूर्व ही यह ज्ञान जिसकी आत्मा में स्थान बनाता है, वही राम की शक्ति को धारण करता है । राम कोई नहीं , सूर्य चंद्र का संपूर्ण ज्ञान ही राम है । राम के इस रूप को पहचानना ज्ञानियों के बस की बात नहीं । यह महायोग समाधि की परम अवस्था में ही जाना जाता है। आज तक जितने भी मेधावी हुए हैं उन्होंने इस ज्ञान को समझा है। तत्व-दृष्टा ही नहीं, तत्त्व -अन्वेषण में परिपूर्ण सीता तत्व अपनी योग्यता रखता है । श्री राम की चित्रकूट स्वयं भूमि है ज्ञान की। यहीं से ज्ञान का बीज उपजता है। सीता माता के चरणों की धूल का यहीं अनुभव कर सकते हैं। जय श्री राम।
प्राचार्य ,जसवंत सिंह भदौरिया डिग्री कॉलेज कोसी खुर्द मथुरा
दूरभाष:७३००५२४८०२