मोतीलाल नेहरू जयंती पर विशेष। लुप्त हो गई मोतीलाल नेहरू की जन्म स्थली।


- जन्म -6 मई 1861 ई.। जन्म स्थान- आगरा।

हिन्दुस्तान वार्ता।आदर्श नंदन गुप्ता

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम व स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय क्षितिज पर देदीप्यमान रहे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू के पिता पं. मोतीलाल नेहरू का जन्म आगरा में माईथान की मुगल बेगम हवेली में हुआ था। अब तो माईथान वासियों को ही नहीं मालूम कि यहां कभी मोतीलाल नेहरू का जन्म हुआ था तथा नेहरू परिवार के अधिकांश लोगों ने बहुत लम्बा समय यहां बिताया।

ब्रिटिश साम्राज्यशाही की फौलादी जंजीरों से जकड़ी भारत माता को मुक्त कराने के लिए 1857 में हुए गदर से अंग्रेजी शासक और अधिक बौखला गये थे। देश की आजादी के लिए हुए इस प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का भारतवासी पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहते थे, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने इसे विभिन्न हथकंडे अपना कर कुचल डाला। इसके लिए उसनमें एसा दमन चक्र चलाया कि देशवासी कराह उठे। फिरगियों के क्रूर उत्पीड़न मानवता भी तड़़प उठी। लोगों को खुले आम तोपों से उड़ा देना और पेड़ों से लटका कर फांसी दे देना उन दिनों सामान्य सी बात हो गई थी। देशभक्तों को विभिन्न आरोपों में फंसा कर उनके साथ क्रूरता की जा रही थी।    

 पं. मोतीलाल नेहरू के पिता पं. गंगाधर नेहरू सन् 1857 में दिल्ली में कोतवाल थे। सीताराम बाजार के काश्तकारी मोहल्ले में रहते थे। वहां भी निरीह जनता के साथ अत्याचार हो रहे थे। पं. गंगाधर नेहरू में राष्ट्र भक्ति की भावना थी, अतः वे अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी बन गये। यही नहीं, एक दिन अंग्रेजी सेना की एक टुकड़ी ने उनके घर पर धावा बोल दिया और उन पर राजघराने की शहजादियों को शरण देने का आरोप लगाते हुए शहजादियों को सुपुर्द कर देने का निर्देश दिया। चेतावनी दी गयी कि शहजादियों को सुपुर्द न किया तो पेड़ पर लटका कर फांसी दे दी जायेगी।

ब्रिटिश नौकरशाही के इस आतंकपूर्ण रवैये से पं. गंगाधर नेहरू स्तब्ध रह गये। सारा परिवार चिन्तामग्न हो गया। अतः सभी ने निर्णय लिया कि वे पूरा परिवार रहस्यमय तरीके से दिल्ली छोड़ दे। इसी निर्णय के अन्तर्गत सभी लोग आगरा आ गये और माईथान में मुगल हवेली में रहने लगे। इन लोगों को दिल्ली छोड़ने पर अनेक संकटपूर्ण स्थितियों का सामना करना पड़ा। गंगाधर नेहरू के दिल्ली स्थित पैतृक आवास पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था और खुलकर लूटपाट की। सभी दस्तावेजों को नष्ट कर दिया।

आगरा आकर भी नेहरू परिवार को विपत्तियों से छुटकारा नहीं मिला। संघर्षो से जूझते-जूझते पं. गंगाधर नेहरू का देहावसान हो गया। पिता के निधन के लगभग तीन माह पश्चात सन् 1861 की 6 मई को इसी मुगल हवेली में पं. मोतीलाल नेहरू का जन्म हुआ। गंगाधर राव का निधन हो जाने के कारण उनके ज्येष्ठ पुत्र नन्दलाल नेहरू ने अपने छोटे भाई मोतीलाला नेहरू का पालन-पोषण किया। नन्दलाल राजपूताना खेतड़ी स्टेट में दीवान थे, लेकिन बाद में आगरा में वकालत करने लगे थे।

मोतीलाल व उनका परिवार एक लम्बे अरसे तक हवेली में गुप्त रूप से रहा। हवेली के निकट ही बने अखाड़े में मोतीलाल कभी कुश्ती लड़ते, दण्ड पेलते तो कभी छतों पर पतंगबाजी करते। धीरे-धीरे ब्रिटिश साम्राज्यशाही का आतंक नेहरू परिवार के दिमाग से हटता गया। अत: मोतीलाल स्वच्छंद वातावरण में जीने लगे। धीरे-धीरे वे आगरा की संस्कृति में रचते-बसते गये और सांस्कृतिक उत्सवों का निर्देशन करने लगे। उनके इस प्रयास से उन दिनों आगरा की संस्कृति भी समृद्ध हुई थी।

मौज-मस्ती वाला जीवन जीने वाले मोतीलाल कभी घाटों पर यमुना में पैर डाले बैठे रहते तो कभी नयों ताजमहल जाकर उसके सौन्दर्य को निहारते। ताजमहल तो उनके लिए शांति का स्थान बन गया। आगरा कालेज में जब वह अध्ययन कर रहे थे, तब एक प्रश्न-पत्र खराब हो जाने पर वे पूरे एक दिन ताजमहल में ही बैठे रहे। शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात मोतीलाल नेहरू के मन में देश भक्ति की भावना उमड़ने लगी थी। नेहरू परिवार जब यहां रहता था, तब यह हवेली अत्यन्त विशाल थी और शानदार ढंग से बनी थी। इसमें अनेक बरामदे आदि थे। विश्व हिन्दू परिषद कार्यालय से आगे सत्य नारायन मन्दिर के बगल में हवेली थी।  परंतु उसका स्वरूप अब पूरी तरह बदल चुका है।  

कांग्रेस नेता व सांसद रहे सेठ अचलसिंह ने ताजमहल के समीप बने विक्टोरिया पार्क से महारानी विक्टोरिया की प्रतिमा हटा कर मोतीलाल नेहरू की प्रतिमा स्थापित करायी थी, जहां हर वर्ष 6 मई को पं. मोतीलाल नेहरू का जन्म दिवस मना कर उनके जन्म स्थल की याद ताजा की जाती थी।

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आदर्श नंदन गुप्ता

ए-3,सीताराम कालोनी, फेस-1, बल्केश्वर, आगरा।